कोलकाता में रहनेवाले एस मोकैया ने नागार्जुन फाइनैंस लिमिटेड में 20,000 रुपये का निवेश किया था। मोकैया ने यह निवेश पर ऊंची ब्याज दरों को देखकर किया था।
लेकिन जब निवेश भुनाने का समय आया तो एनएफएल जमा राशि लौटाने में आनाकानी करने लगी जिससे मोकैया का अपने बेटे को एमबीए पढाने का सपना चकनाचूर हो गया।
मोकैया के एक रिश्तेदार वेंकटराव ने बताया कि उसने 16 अक्टूबर 1996 को प्रति वर्ष 15 फीसदी की ब्याज दर पर 20,000 रुपये का निवेश किया था।
यह निवेश तीन साल केलिए और अपने बेटे नीलकंठम की पढाई केलिए किया गया था। राव केअनुसार मोकैया के परिवार के लोग अपने पैसे वापस लेने के लिए एनएफ एल के कोलकता कार्यालय भी गए लेकिन इससे उन्हें कोई फायदा नहीं हुआ।
गौरतलब है कि एनएफएल के पहले कोलकाता में भी दो कार्यालय थे लेकिन दोनों कार्यालयों को वर्ष 2001 में बंद कर दिया गया।
मोकैया केनिवेश की अवधि जब अक्टूबर 1999 में पूरी हो गई और अपना पैसा वापस लेने को मौका आया तो उन्हें जमा राशि के लिए हैदराबाद आने को कहा गया।
इसके बाद मोकैया के परिवारवाले दो बार हैदराबाद कार्यालय आए जहां एनएफएल कार्यालय के एक अधिकारी के एस चंद्रशेखर ने उन्हें लिखित आश्वासन दिया और दोबारा सितंबर में आने को कहा।
इस वाकये से दुखी वेंकटराव ने कहा कि अगर समय पर उन्हें अपना पैसा मिल गया होता तो वित्तीय तंगी का सामना कर रहे परिवार को काफी राहत मिल सकती थी।
एक जूट मिल में काम क र रहे मोकैया की कारखाना बंद हो जाने से नौकरी जाती रही। वह किसी छोटे-मोटे कारोबार तक के लिए पैसे का जुगाड़ तक नहीं कर पाए।
पैसा नहीं था, सो बेटे की पढ़ाई भी छूट गई। मोकैया का परिवार अपनी जमा राशि की वापसी को लेकर मशक्कत कर रहा था कि अचानक उन्हें एक दिन एनएफएल के अध्यक्ष और प्रवर्तक के एस राजू और एक अन्य निदेशक पी के महादेवन की गिरफ्तारी की सूचना मिली।
इसके बाद तो मोकैया के परिवार के पैरों तले जमीन खिसक गई। पता करने पर जो सच्चाई सामने आई, वह बिल्कुल ही निराश कर देनेवाली थी।
गैर-बैकिंग वित्तीय कंपनी एनएफएल की 1999 में हालत बहुत खराब हो गई। गंभीर रूप से आर्थिक परेशानियों का सामना कर रही कंपनी निवेशकों के पैसे हजम कर गई।
इसके बाद जमाकर्ताओं ने इसकी शिकायत दीवानी अदालत, थानों और उपभोक्ता फोरम में दर्ज कराई जिसके परिणामस्वरूप कंपनी और इसके निदेशक मंडल के खिलाफ कार्रवाई की गई।
कंपनी के प्रवर्तक और अध्यक्ष और अन्य लोगों की गिरफ्तारी पर अपनी प्रतिक्रिया जताते हुए वेंकटराव ने कहा कि अब हमें इससे नहीं मतलब कि अदालत एनएफएल के अधिकारियों का क्या करती है, हमें सिर्फ हमारा पैसा वापस चाहिए।
मोकैया की तरह ही कई ऐसे लोग हैं जो इस तरह की धोखाधरी का शीकार हुए हैं। गुंटूर निवासी वी वेंकटेश्वर राव ने मई 1997 में यह सोचकर 6,000 रुपये का निवेश किया था कि उन्हें चौथे साल के अंत में 12,000 रुपये मिलेंगे। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ।
एनएफएल के अधिकारियों की खबर सुनते ही वो भी तुरंत हैदराबाद पहुंच गए। पुलिस के अनुसार केवल आंध्रपदेश में कंपनी ने वर्ष 1997-98 में 85,160 लोगों से 98.3 करोड रुपये जुटा लिये थे। कंपनी ने बाद में निवेशकों को फिर पैसे लौटाने से इनकार कर दिया।