बुनियाद के ढांचे को कोष करेगा आबाद | विनायक चटर्जी / February 16, 2016 | | | | |
बुनियादी ढांचागत विकास के लिए बनाए जा रहे राष्टï्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष के फायदों पर चर्चा कर रहे हैं विनायक चटर्जी
राष्टï्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (एनआईआईएफ) का मुख्य मकसद वित्तीय प्रतिफल नहीं बल्कि व्यापक आर्थिक हित में निहित होना चाहिए। यह अंतर करना बहुत महत्त्वपूर्ण है। अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना तकरीबन 50 वर्षों की अवधि में देश के लिए एक बहुत बड़े आर्थिक लाभ का सबब बनेगी। हालांकि इसके परिचालन के शुरुआती 10 वर्षों में निजी निवेशकों की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलने की उम्मीद बहुत कम है। मगर देश को सिंचाई, नदी-जोड़, अंतरदेशीय जलमार्गों, ग्रामीण विद्युतीकरण, बुनियादी सेवा अवसंरचना और रेलवे जैसे क्षेत्रों में भी राष्टï्रीय महत्त्व की इसी तरह की पहल वाली परियोजनाओं की दरकार है। ऐसा निवेश एक समय के बाद देश में बड़े आर्थिक लाभ का सबब बनेगा लेकिन बाजार के निवेशकों को लघु अवधि में उस पर उचित प्रतिफल नहीं मिलेगा।
इस प्रकार, एनआईआईएफ के वित्तपोषण का स्वरूप और उस तक पहुंच को लेकर साझेदारी का सवाल इस पर निर्भर करेगा कि सरकार इस दृष्टिïकोण से इत्तफाक रखती है या नहीं। अगर यह स्वीकार कर लिया जाता है तो इसका अर्थ यही होगा कि एनआईआईएफ को प्राइवेट इक्विटी (पीई) की तर्ज पर जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, जिसमें सात वर्षों की अवधि में अमूमन 20 फीसदी से अधिक वृद्घि दरों का लक्ष्य रखा जाता है। एनआईआईएफ के लिए निवेश साझेदारी लक्ष्य में बहुराष्टï्रीय और द्विपक्षीय संस्थानों, सॉवरिन वेल्थ फंड, पेंशन और भविष्य निधि और जापानी शैली वाले विकास कोष सरीखे लंबी दौड़ के घोड़े शामिल होने चाहिए। पीई निवेश को शामिल करने के लोभ से बचना ही चाहिए। पीई कोषों को व्यावसायिक बाजार में खेलते रहने के लिए ही छोड़ देना चाहिए।
इसमें जरा भी संदेह नहीं कि वर्ष 2015-16 के बजट में वित्त मंत्री द्वारा एनआईआईएफ का ऐलान एक दमदार घोषणा थी। इसने उस दृष्टिïकोण को आधार दिया कि सरकार वित्तीय पैमाने पर किफायत बरतने लगी है और अब परंपरागत बजटीय स्रेातों पर निर्भरता कम करके लुभावने तरीकों से बाहरी संसाधनों को जुटाया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सफल वैश्विक पहुंच का लाभ उठाने के लिहाज से भी यह अवधारणा एकदम मुफीद है। जुलाई, 2015 तक केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एनआईआईएफ को मंजूरी दे दी थी। दिसंबर, 2015 तक यह अस्तित्व में आ गया, उसके लिए संचालन परिषद बन गई और सार्वजनिक क्षेत्र की इंडिया इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनी लिमिटेड को अंतरिम निवेश सलाहकार नियुक्त किया गया। पूंजी बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड ने 28 दिसंबर, 2015 को उसे श्रेणी 2 वैकल्पिक निवेश कोष (एआईएफ) के तौर पर मंजूरी दी। अपने वैश्विक विज्ञापन के जरिये फरवरी, 2016 तक एनआईआईएफ को सीईओ पद के लिए पहले ही 70 आवेदन मिल चुके हैं। इसके अतिरिक्त राजमार्ग और रेलवे क्षेत्र में निवेश के लिए लगभग छह योजनाएं तैयार भी हैं। वहीं कुछ प्रमुख बैंक पहले से ही इन संभावनाओं के साथ लार टपका रहे हैं कि एनआईआईएफ उनके बहीखातों में अवसंरचना क्षेत्र से जुड़े कुछ फंसे हुए कर्जों का बोझ वहन करेगा! वर्ष 2015 के बजट में वित्त मंत्री ने 3पी इंडिया पहल के लिए जो 500 करोड़ रुपये आवंटित किए, उसकी तुलना में इसका क्रियान्वयन काफी तेज रहा।
एनआईआईएफ को घरेलू सॉवरिन कोष कहा जा रहा है, जिसकी शुरुआत 40,000 करोड़ रुपये की आरंभिक पूंजी के साथ हो रही है, जिसमें सरकार ने 20,000 करोड़ रुपये का बंदोबस्त बजट के जरिये किया। शेष 20,000 करोड़ रुपये साझेदार निवेशकों के जरिये आने की उम्मीद है। रूस, सिंगापुर, कनाडा, कतर और संयुक्त अरब अमीरात पहले ही इसे लेकर अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं। हाल में 4 फरवरी, 2016 को वित्त मंत्री ने भारत निवेश सम्मेलन में संभावित निवेशकों के समक्ष एनआईआईएफ को औपचारिक रूप से पेश किया।
इसके परिचालन और कामकाज में सरकार को ज्यादा परेशानी न आए, इसका ध्यान रखते हुए इस अवधारणा को बहुत सावधानी के साथ विकसित किया गया है। वित्त राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने औपचारिक रूप से कहा, 'हम एनआईआईएफ के लिए सरकार की ओर से, न केवल इस सरकार की बल्कि सभी सरकारों की ओर से रक्षा कवच बना रहे हैं।' यह आकांक्षा सराहनीय है और सरकार खुद यह जाहिर कर रही है कि वह 49 फीसदी की अल्पांश हिस्सेदारी रखने के साथ ही बाजार से एक पेशेवर सीईओ को नियुक्त करेगी। हालांकि सरकारी खजाने से इतनी बड़ी राशि के योगदान को देखते हुए कुछ चिंताएं भी बढ़ रही हैं कि क्या रोजमर्रा का कामकाज केंद्रीय सतर्कता आयोग, केंद्रीय जांच ब्यूरो और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की त्रिमूर्ति के जांच दायरे में आएगा। यह सुझाव काफी उपयोगी होगा कि इसके पूरी तरह व्यावसायिक रूप से परिचालन में आने से पहले इस मसले पर राय स्पष्टï हो जानी चाहिए।
एनआईआईएफ की संरचना 'कोषों के कोष' की तरह होगी। मुख्य कोष के नीचे बहुस्तरीय निवेश कोषों का संजाल होगा। ऐसे कोषों की पांच उप-श्रेणियां होंगी, जिनमें परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कोष (दबाव वाली मौजूदा परिसंपत्तियों के लिए), ब्राउनफील्ड कोष (सार्वजनिक क्षेत्र की परिसंपत्तियों में हिस्सेदारी बिक्री के लिए), हरित कोष (सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की नई परियोजनाओं के लिए), सामाजिक अवसंरचना कोष (व्यापक आवासीय परियोजनाओं, शहरी उन्नयन और ग्रामीण ब्रॉडबैंड आदि) जैसी श्रेणियां हो सकती हैं। एनआईआईएफ का अधिकार पत्र 'मुख्य और सामाजिक अवसंरचना' तक ही सीमित होना चाहिए और उसमें विनिर्माण को शामिल कर उसमें भटकाव नहीं लाना चाहिए।
सरकार को एनआईआईएफ में हर साल भारत की संचित निधि से 20,000 करोड़ रुपये निवेश करने की योजना बनानी चाहिए। अगर इसे 10 गुना तक बढ़ाया जा सका तो हर साल यह कोष 2 लाख करोड़ रुपये के आंकड़े तक पहुंच सकता है। इसके अतिरिक्त 'सॉवरिन गारंटी' का भी उल्लेख नहीं है, जो दर्शाता है कि राज्य 'साख संवर्धन कदम' उठा सकता है, जो बाहरी निवेशकों की रेटिंग ग्रेड को बढ़ाने की दिशा में हो सकती है।
वित्त मंत्रालय के त्वरित अनुमानों के अनुसार 12वीं पंचवर्षीय योजना (2012-17) के दौरान अवसंरचना निवेश में 30 फीसदी कमी रहने का अनुमान है। इन पांच वर्षों के दौरान अवसंरचना क्षेत्र में 39 लाख करोड़ रुपये निवेश होने की संभावना है, जबकि पूर्ववर्ती योजना आयोग ने इस अवधि के लिए 56 लाख करोड़ रुपये निवेश की उम्मीद जताई थी। असल में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के मोर्चे पर भारी कमी ने यह हालात पैदा किए हैं, जो निजी निवेश का स्थानापन्न है। लिहाजा अवसंरचना निवेश के लिए सार्वजनिक निवेश की रणनीति अभेद्य साबित होने जा रही है। राजकोषीय घाटे की चुनौतियों को देखते हुए बजट से बाहर वाले विकल्प इसका जवाब हैं। कई कालखंडों के लिए एनआईआईएफ आदर्श समाधान साबित होने वाला है।
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