हिंदुस्तान जिंक पर छाए मूल्यांकन के बादल | अरूप रायचौधरी / नई दिल्ली January 21, 2016 | | | | |
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में केंद्र सरकार की शेष 29 फीसदी हिस्सेदारी की बिक्री पर रोक लगाए जाने से कंपनी का मूल्यांकन सुर्खियों में आ गया है। साथ ही चर्चा यह भी होने लगी है कि क्या सरकार ने सरकारी खजाने को उचित रिटर्न सुनिश्चित किया। सर्वोच्च न्यायालय ने मंगलवार को हिंदुस्तान जिंक में सरकार की हिस्सेदारी के विनिवेश पर अगले आदेश तक रोक लगा दी थी। इससे कंपनी पर पूर्ण नियंत्रण हासिल करने संबंधी वेदांत रिसोर्सेज पीएलसी की योजना में देरी हो सकती है।
मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर, एके सीकरी और आर भानुमती के पीठ ने सरकार की खिंचाई करते हुए पूछा, 'अब विनिवेश की क्या मजबूरी हो गई? आप इतनी जल्दबाजी में क्यों हैं? 2002 में विनिवेश के दौरान आप पहले ही नियमों को ताक पर रख चुके हैं और इसका मतलब यह नहीं हुआ कि हम आपको कानून (धातु निगम (राष्टï्रीयकरण एवं प्रकीर्ण उपबंध) अधिनियम 1976) में बदलाव के बिना शेष हिस्सेदारी बेचने की अनुमति दे देंगे।' हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में सरकार के पास अभी भी महत्त्वपूर्ण अधिकार होने पर जोर देते हुए पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता नैशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑफिसर्स एसोसिएशन सरकार की विनिवेश नीति पर सवाल नहीं उठा रहा है बल्कि विनिवेश की प्रक्रिया पर आपत्ति जताई गई है।
याचिकाकर्ता ने करीब दो साल पहले एक जनहित याचिका दायर कर हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में प्रस्तावित विनिवेश को चुनौती दी थी। याचिका में कहा गया था कि सरकार का यह निर्णय असंगत, बेतुका, अवैध, अनुचित और मनमाना है। केंद्र में राष्टï्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के कार्यकाल के दौरान 2003 में वेदांत रिर्सोसेज ने हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड और बालको में बहुलांश हिस्सेदारी का अधिग्रहण किया था। सरकार की इन हिस्सेदारियों जिस मूल्यांकन पर वेदांत रिर्सोसेज को हस्तांतरित की गई उसकी जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो ने 2013 में शुरू की थी। विनिवेश विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के अनुसार, साल 2002-03 और 2003-04 के दौरान सरकार ने हिंदुस्तान जिंक में बहुलांश हिस्सेदारी की बिक्री से 769 करोड़ रुपये और 2000-01 में बालको में बहुलांश हिस्सेदारी के विनिवेश से 551.5 करोड़ रुपये जुटाए थे।
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