शुल्क में बदलाव के बाद श्रीलंका को मारुति का निर्यात घटा | अजय मोदी / नई दिल्ली January 20, 2016 | | | | |
पिछले साल मारुति सुजूकी के लिए सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य रहा श्रीलंका अब कंपनी के लिए वैसा बाजार नहीं रह गया है। इसकी वजह दो महीने पहले इस देश में बढ़ाया गया आयात शुल्क है। सरकार की तरफ से शुल्क घटाए जाने के बाद पिछले साल श्रीलंका ने मारुति के लिए चिली व फिलीपींस जैसे अग्रणी निर्यात बाजार की जगह ले ली थी। यह कदम मांग के लिहाज से बेहतर रहा था और भारत सबसे ज्यादा फायदा हासिल करने वाले के तौर पर उभरा।
मारुति सुजूकी के एक प्रवक्ता ने कहा, पिछले साल शुल्क घटाए जाने के बाद पैदा हुई मांग पूरी कर ली गई है। साथ ही वहां ग्राहकों ने समय से पहले खरीद की और श्रीलंकाई बाजार में बढ़त की रफ्तार असामान्य रूप से ऊंची थी। आयात शुल्क की वापसी के बाद अल्पावधि के लिहाज से मांग में हुई बढ़ोतरी समाप्त हो गई। प्रवक्ता ने कहा, चूंकि नया आयात महंगा हो गया है, लिहाजा बिक्री घट गई लेकिन इसके जल्द सामान्य होने की संभावना है। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि श्रीलंका को कितनी इकाइयां बेची गईं। नवंबर में 1000 सीसी वाले वाहनों पर आयात शुल्क 50 से बढ़ाकर 70 फीसदी कर दिया गया, जिससे वैगन आर जैसी कार पर असर पड़ा। वैन पर आयात शुल्क 85 फीसदी से बढ़ाकर 150 फीसदी कर दिया गया था।
मारुति के मॉडल मसलन ऑल्टो व सिलेरियो की श्रीलंका में काफी मांग है। श्रीलंका में मारुति का निर्यात कर ढांचे में बदलाव के साथ प्रभावित हुआ है। साल 2011-12 में श्रीलंका मारुति का सबसे बड़ा बाजार हुआ करता था। श्रीलंका में कंपनी के वितरक हैं, जो 20 रिटेल आउटलेट व 15 वर्कशॉप के नेटवर्क के जरिए परिचालन करते हैं। विगत में मारुति ने श्रीलंका में असेंबली यूनिट लगाने की योजना बनाई थी। यह हुंडई के बाद श्रीलंका का यात्री कारों का निर्यात करने वाली दूसरी सबसे बड़ी कंपनी है। कंपनी के कुल उत्पादन का करीब 10वां हिस्सा एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के बाजारों को निर्यात होता है। यात्री वाहन निर्यात बाजार में कुछ देशों में मांग में कमजोरी की भरपाई कभी-कभी दूसरे देशों की मांग से हो जाती है। सामान्य तौर पर बिक्री के आंकड़ों में ऐसे उतारचढ़ाव आर्थिक व राजनीतिक बदलाव के चलते आते हैं। ऐसे में पिछले साल मारुति के लिए श्रीलंका का बाजार चढ़ा जबकि अल्जीरिया व ब्रिटेन में घट गया।
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