हिंदुस्तान जिंक में विनिवेश पर रोक | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली January 19, 2016 | | | | |
सर्वोच्च न्यायालय ने आज हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड में विनिवेश के लिए अगले आदेश तक यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया। हिंदुस्तान जिंक पहले सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी थी। सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश से कंपनी में वेदांत लिमिटेड द्वारा 29.5 फीसदी हिस्सेदारी के अधिग्रहण का रास्ता फिलहाल अवरुद्ध हो गया है। हालांकि 2002 में बड़ी हिस्सेदारी खरीदने के बाद कंपनी में वेदांत की बहुलांश हिस्सेदारी पहले से ही मौजूद है।
मुख्य न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाले पीठ ने नैशनल कॉन्फ्रेंस ऑफ ऑफिसर्स एसोसिएशन की याचिका पर सुनवाई के बाद यह आदेश जारी किया। याचिका में पहले हो चुकी 26 फीसदी हिस्सेदारी के विनिवेश को चुनौती दी गई है। उसी विनिवेश के तहत 2002 में वेदांत को 445 करोड़ रुपये में परिसंपत्ति बेची गई थी। एसोसिएशन ने शेयरों के मूल्यांकन में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए कहा है कि वेदांत को जिस मूल्य पर शेयर बेचे गए वह सीएजी के 119 रुपये के मूल्यांकन का करीब एक चौथाई है।
न्यायालय इससे पहले केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से इस मामले में स्थिति रिपोर्ट तलब किया था। इस पर सीबीआई ने एक बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट अदालत को सौंपी। एसोसिएशन के वकील प्रशांत भूषण को चार सप्ताह के भीतर विनिवेश से संबंधित कुछ दस्तावेज जमा करने की अनुमति दी गई। न्यायालय ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से पूछा कि कंपनी में शेष शेयरों के विनिवेश की जल्दबाजी क्यों है। शीर्ष अदालत पूरी विनिवेश प्रक्रिया को परखना चाहती है और तब तक सरकार अपनी हिस्सेदारी बरकरार रखे। न्यायालय ने कहा कि कंपनी में सरकार का स्वामित्व भले ही न हो लेकिन विनिवेश में अब भी उसकी भूमिका है। इसलिए विनिवेश प्रक्रिया की जांच जरूर होनी चाहिए। अटॉर्नी जनरल ने कहा कि यह नीतिगत निर्णय है और सरकार कंपनी के बाकी शेयर रखकर क्या करेगी।
रोहतगी ने कहा कि यह विचित्र स्थिति है। इस पर पीठ ने कहा कि सरकार के पास संसद में जाने और संबंधित कानून में संशोधन कराने के अलावा कोई अन्य रास्ता नहीं है। याचिकाकर्ता ने प्रस्तावित विनिवेश को चुनौती देते हुए कहा है कि यह निर्णिय तर्कहीन, गैरकानूनी और अनुचित है। वेदांता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सी ए सुंदरम ने कहा कि निजी कंपनी ने घाटे में चल रही हिन्दुस्तान जिंक लि. को 14 साल पहले अपने हाथ में लिया था और अब यह लाभ अर्जित करने वाली इकाई हो गई है।
केंद्रीय सार्वजनिक उपक्रमों के अधिकारियों के राष्ट्रीय महासंघ की ओर से वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि जब पहली बार इस कंपनी में विनिवेश किया गया था तो कानून का उल्लंघन हुआ था जो उस समय स्पष्ट हो गया था, जब शीर्ष अदालत की दो सदस्यीय पीठ ने एक अन्य सार्वजनिक उपक्रम में विनिवेश के मामले की सुनवाई की थी। इस दलील का संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा, 'पहले ही आप गलत कर चुके हैं और हम दोबारा उल्लंघन नहीं करने देंगे।' पीठ ने पहले के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि संबंधित कानूनी प्रावधानों में संशोधन के बगैर और विनिवेश नहीं किया जा सकता है।
|