अत्यधिक रॉयल्टी का भुगतान करना एक बड़ी चुनौती : सुनील दुग्गल | दिलीप कुमार झा / January 03, 2016 | | | | |
वर्ष 2015 में जस्ते की कीमतों में करीब 30 फीसदी गिरावट से दुनिया भर के उत्पादक प्रभावित हुए हैं और हिंदुस्तान जिंक भी कोई अपवाद नहीं है। कंपनी के मुख्य कार्याधिकारी सुनील दुग्गल ने दिलीप कुमार झा को दिए साक्षात्कार में कहा कि उत्पादन का स्तर बनाए रखने के लिए समस्याएं हल करनी होंगी। कंपनी ने मार्जिन बरकरार रखने के लिए लागत में कटौती के कई उपाय किए हैं लेकिन भारी-भरकम रॉयल्टी भुगतान कंपनी के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है। पेश हैं मुख्य अंश:
धातुओं की गिरती कीमत का एचजेडएल पर कैसा असर हुआ है?
धातुओं की गिरती कीमत से हमारी कमाई सीमित हुई है और मार्जिन घटा है। हमारे देश में रॉयल्टी की दरें दुनिया में सबसे अधिक हैं जिससे नई चुनौती पैदा हो गई है। जस्ते पर रॉयल्टी की दर 10 फीसदी, सीसे पर 14.5 फीसदी और चांदी पर 7 फीसदी है। एचजेडएल ने रॉयल्टी के रूप में राज्य सरकार को 1,243 करोड़ रुपये का भुगतान किया और राजकोष में 3,915 करोड़ रुपये का अंशदान दिया। हम बाजार में आई गिरावट के दौर में पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर इस चुनौती से निपटने की कोशिश कर रहे हैं। गिरावट की वजह से कई नए अवसर उभरे हैं। हम संसाधन बचाने, कचरे को कम करने और गुणवत्ता सुधारने के अवसर तलाश रहे हैं।
मुकाबले में बने रहने के लिए क्या करेंगे?
हमारे लिए मुकाबले में बने रहने की कुंजी बड़े पैमाने पर उत्पादन, कम लागत और बाजार में अधिक हिस्सेदारी के साथ ही बढ़ती दक्षता और लागत अनुशासन पर ध्यान देना है। हम एकीकृत खननकर्ता हैं। हमारे पास खदानों से निकाले गए अयस्क को प्रसंस्कृत धातु में बदलने वाले स्मेल्टर हैं। इस वजह से हम कच्चे माल की उपलब्धता और वाणिज्यिक बाधाओं के लिहाज से बाजार की अनिश्चितताओं से बच जाते हैं। हमारी खदानों और स्मेल्टरों की निकटता और बिजली के लिहाज से हमारी आत्मनिर्भरता की वजह से हम दूसरों पर भारी पड़ते हैं। हम जानते हैं कि सुधार ही सफलता की कुंजी है, इसलिए हमने उत्पादकता और दक्षता में सुधार के कई कदम उठाए हैं जिससे आने वाले समय में भी लागत स्थिर रहेगी। दुनिया भर में कंपनियां खनन पोर्टफोलियो की समीक्षा कर रही हैं क्योंकि बाजार में कुछ खनन परिसंपत्तियों को प्रतिस्पर्धा से चुनौती है।
भारतीय धातु उत्पादक भविष्य में वृद्घि के लिए स्थानीय मांग पर जोर दे रहे हैं। आपकी क्या योजना है?
एचजेडएल हमेशा से ही जस्ते की देसी आपूर्ति को पूरा करने और इसके बाद शेष का निर्यात करने में भरोसा करती है। ग्राहकों की बदलती जरूरत पूरी करने के लिए हम अपने उत्पाद पोर्टफोलियो को बढ़ा रहे हैं। स्थानीय मांग के लिहाज से भारतीय विनिर्माण क्षेत्र के लिए वृद्घि और सकारात्मक दृष्टिïकोण के संकेत देखने को मिल रहे हैं। सरकार द्वारा घोषित ऊर्जा एवं बुनियादी ढांचा क्षेत्र की परियोजनाएं जोर पकड़ रही हैं। जैसे-जैसे बुनियादी ढांचा क्षेत्र में तेजी आएगी, गैल्वेनाइज्ड इस्पात क्षेत्र जस्ते के लिए सबसे उपयोगी होगा। वाहन क्षेत्र से जस्ते की मांग में तेजी आएगी क्योंकि गैल्वेनाइज्ड कार बॉडी के फायदों के बारे में जागरूकता बढ़ रही है और अधिक से अधिक विनिर्माता इस विकल्प पर विचार कर रह हैं। इसके अलावा उर्वरक या गैल्वेनाइज्ड रबर का विनिर्माण क्षेत्र में इस्तेमाल जैसे जस्ते के नए-नए उपयोग देखने को मिल रहे हैं। हमारा मानना है कि एचजेडएल देसी मांग का लाभ उठाने के लिए पूरी तरह तैयार है।
जस्ते और सीसे की कीमतें सुस्त रहने का अनुमान है। फंडामेंटल में बदलाव का आपके कारोबार पर कैसे असर पड़ता है?
लंबी अवधि के कीमत रुझान पर धातु के फंडामेंटल का बड़ा असर पड़ता है। जस्ते के फंडामेंटल मजबूत बने हुए हैं। हमारा अनुमान है कि जस्ते की कीमतों में फिर से सुधार आएगा क्योंकि ग्लेनकोर और चीन की कुछ कंपनियों के उत्पादन में कटौती करने से 10 लाख टन आपूर्ति कम होने के आसार हैं। वहीं कुछ बड़ी खानें (सेंचुरी और लीशीन) इस साल बंद होने जा रही हैं।
मुनाफा मार्जिन की सुरक्षा के लिए आपकी रणनीति क्या होगी?
जिंस बाजार न केवल अस्थिरता बल्कि ज्यादा सटोरिया गतिविधियों के दौर से गुजर रहा है। ऐसे बाजार में परिचालन अनुशासन बनाए रखना और जरूरी हो जाता है। मार्जिन को बचाने के लिए हमारी रणनीति इस समय और आगे शुद्ध लाभ में सुधार लाना होगा।
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