कोयला कीमतों में नरमी बरकरार रहने के आसार | राजेश भयानी / मुंबई December 27, 2015 | | | | |
भारत आने वाले आयातित कोयले की कीमतों में इस साल अभी तक 30 फीसदी की गिरावट आई है। हालांकि मौजूदा कीमतों में और गिरावट का अनुमान है क्योंकि रुपये में कमजोरी से भारत में आयातित कोयले की मांग सुस्त पड़ेगी, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में आपूर्ति बढ़ेगी और कीमतों पर दबाव पड़ेगा। प्लैट्स के मुताबिक 1 जनवरी 2015 को भारत के पश्चिमी तट पर पहुंचने वाले 5,500 किलोकैलोरी प्रति किलोग्राम वाले तापीय कोयले की कीमत सीएफआर (लागत एवं मालभाड़ा सहित) 67.35 डॉलर प्रति टन थी। यह तब से 9 दिसंबर तक 30.4 फीसदी गिरकर 46.85 डॉलर प्रति टन पर आ गई है।
इस वजह से जो लोग सोच रहे थे कि कोयला कीमतें गिरावट से उबर रही हैं, मगर उनको इस पर दुबारा सोचना होगा। अल्पावधि में कोयला कीमतों में और अधिक गिरावट के आसार से इनकार नहीं किया जा सकता और गिरावट के संबंध में प्रमुख जोखिम मौद्रिक कमजोरी से जुड़ा है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया सर्वाधिक निचले स्तर से बहुत अधिक दूर नहीं है। इसका ताप कोयला क्षेत्र में अल्पावधि खरीदारी रुझानों पर प्रभाव पड़ा है और इससे न सिर्फ खरीदारी की मात्रा प्रभावित हो सकती है बल्कि कोयले के ग्रेड पर भी असर पड़ सकता है।
प्लैट्स में संपादकीय निदेशक (कोयला) गैरेथ कारपेंटर ने कहा, 'भारत आने वाले आयातित तापीय कोयले की हाजिर कीमतें वर्ष के शुरू से अब तक लगभग 30 फीसदी तक गिर चुकी हैं। इसकी मुख्य वजह विश्व में समुद्र तट पर स्थित बाजारों में अधिक आपूर्ति, उभरते देशों में धीमी वृद्घि और कमजोर रुपये की वजह से डॉलर मुद्रा में कोयले की कम घरेलू मांग होना है।'
विद्युत संयंत्रों के पास कोयले का भंडार उच्च स्तर पर है। मुद्रा में कमजोरी के कारण बढ़ती लागत से वे स्टॉक कम करेंगे। इस साल देश की विद्युत इकाइयों में कोयले के जमा भंडार नई ऊंचाई पर पहुंच गए हैं। 30 सितंबर 2015 को पूरे देश के सभी बिजली संयंत्रों के पास कोयला स्टॉक 2.6 करोड़ टन था जो 22 दिन का स्टॉक है। इसके मुकाबले 30 सितंबर 2014 को कोयला स्टॉक सिर्फ 85.8 लाख टन यानी 5 दिन का स्टॉक था। इसकी वजह कोल इंडिया से अधिक उत्पादन, ई-नीलामी में बिजली क्षेत्र की कोयला खरीद और इकाइयों से मांग में सुस्ती मुख्य रूप से शामिल हैं।
गैरेंथ ने कहा, 'हालांकि लंबी अवधि के लिहाज से ऐसी कई वजह हैं, जिनके कारण भारत में तापीय कोयले की कीमतें मजबूत हो सकती हैं।' चीन में आर्थिक मंदी की वजह से कमजोर मांग के मद्देनजर इंडोनेशिया, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया से कोयला आयात की मांग मुख्य रूप से भारतीय बाजार पर निर्भर करेगी। प्लैट्स के विश्लेषकों ने अनुमान जताया कि वर्ष 2018 के अंत तक कोयला क्षमता में 48 फीसदी वृद्घि होगी और मध्यावधि में बिजली की खपत में गिरावट रुकने की संभावना है, जिससे भारत में कोयले की औसत खपत में बड़ा सुधार आने का अनुमान है।
कोल इंडिया भारत में कुल कोयले का 81 फीसदी उत्पादन करती है और कंपनी के अनुसार वर्ष 2014-15 के दौरान कोयला उत्पादन 49.424 करोड़ टन था। वित्त वर्ष 2016 में कोल इंडिया को 55 करोड़ टन का उत्पादन लक्ष्य हासिल होने की उम्मीद है। प्लैट्ïस का मानना है, 'अगर भारत को वित्त वर्ष 2018-19 तक अपना कोयला आयात घटाकर 10 करोड़ टन तक लाना है तो कोल इंडिया को न केवल उत्पादन लक्ष्य हासिल करना होगा बल्कि देश के निजी क्षेत्र के कोयला उत्पादन की सालाना वृद्घि भी औसतन 32 फीसदी करनी होगी। खनन क्षेत्र में सुधार के बावजूद ऐसा होने की संभावना नहीं है और आयात वृद्घि को मजबूती मिल सकती है।'
वुड मैकेंजी के निदेशक (धातु एवं ख्रनन सलाह) एंड्रयू लीलैंड ने कहा, 'कोयले की खपत बढ़ेगी, लेकिन चीन को समुद्री तटों पर स्थित देशों से कोयला मंगाने की जरूरत नहीं होगी। आपूर्ति को संतुलित भारत करेगा और भारत की वृद्धि से तापीय कोयले की मांग और परिदृश्य तय होगा।' भारत में कोकिंग कोल के लिए स्थिति ठीक नहीं है, क्योंकि इसकी सबसे अधिक खपत वाला इस्पात उद्योग मुश्किल दौर से गुजर रहा है।
|