कृषि मंत्रालय के तहत आने वाला सहकारिता विभाग अब सीबीआई, ईडी, एसएफआईओ और सेबी से मिलकर काम करेगा, जिससे सहकारी समितियों के माध्यम से होने वाली धोखाधड़ी पर काबू पाया जा सके। कानून की खामियों का लाभ उठाकर तमाम समितियां धोखाधड़ी करती हैं, जिसे रोकने के लिए यह कवायद की जा रही है। इसके पीछे सभी वित्तीय एजेंसियों के ऐसे प्रमोटरों, प्रोपराइटरों के बारे में जानकारी साझा करना है, जो किसी खास कानून का लाभ उठाकर धोखाधड़ी करती हैं, लेकिन कुछ अन्य प्रावधानों का लाभ उठाकर दंड से बच जाती हैं। समितियों के पंजीयक को भी इसमें शामिल किया गया है।केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), एसएफआईओ, प्रवर्तन निदेशालय और सेबी के साथ कंपनी के रजिस्टार के साथ कृषि विभाग के प्रमुख अधिकारियों ने हाल ही में बैठक की थी, जिसमें वित्तीय धोखाधड़ी को रोकने के लिए मिलजुलकर प्रयास शुरू करने की बात हुई थी। सहकारिता विभाग ही सहकारी समितियों का केंद्रीय पंजीयक है, जो कई राज्यों में काम करती हैं। उन्हें मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट के तहत परिचालन का लाइसेंस लेना होता है। केंद्रीय अधिनियम के तहत इस समय कई राज्यों में चलने वाली 1,400 से ज्यादा सहकारी समितियां पंजीकृत हैं। वहीं राज्यों में 6,00,000 से ज्यादा सहकारी समितियां हैं, जो राज्यों के प्राधिकरण में पंजीकृत हैं।अधिकारी ने कहा, 'सूचनाओं को साझा करने का मूल विचार यह है कि जांच तेजी से हो सके और विभिन्न वित्तीय इकाइयों के साथ संदेहास्पद लेन देन पर नजर रखी जा सके।' उन्होंने कहा कि मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटीज ऐक्ट में भी संशोधन किया जाएगा, जिससे अधिनियम की खामियों को दूर किया जा सके और इसे ज्यादा ताकतवर बनाया जा सके। अधिकारी ने कहा कि सभी संबंधित प्राधिकारियों और एजेंसियों के साथ अब इस मसले पर नियमित रूप से संपर्क रखा जाएगा।अधिकारी ने कहा, 'हमने प्रवर्तन निदेशालय से भी मदद मांगी है, कुछ समितियों के धन शोधन और पीएमएलए ऐक्ट के उल्लंघन के मामले भी सामने आए हैं।' पुणे की एक प्राइवेट लिमिटेड फूड कंपनी ने 400 करोड़ रुपये मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी को स्थानांतरित कर दिए थे, जो उसी नाम से चलती थी। कंपनी का मकदद सेबी के नियमों से बचना था। ऐसे मामलों में इस तरह की बहुपक्षीय बैठकें खास अहम हैं। यह लेन देन मल्टी स्टेट कोऑपरेटिव सोसाइटी ऐक्ट के तहत तो पूरी तरह कानूनी था, लेकिन सेबी अधिनियम के तहत संदेहास्पद था। जांच में पाया गया कि फूड कंपनी ने इसी उद्देश्य से समिति बनाई थी, जबकि उसमें कोई वास्तविक सदस्य भी नहीं था और सबकुछ कागजों पर ही था। अधिकारी ने कहा, 'कृषि विभाग ने इस मामले को आगे की जांच के लिए सीबीआई को सौंप दिया।' इस तरह के तमाम मामले विभिन्न इलाकों में सामने आए हैं, जिसमें तमाम संदेहास्पद वित्तीय लेन देन होते हैं।
