कच्चे माल की बढ़ती कीमत यानी लागत से परेशान कई भारतीय उत्पादक इसके लिए विदेशी बाजार नहीं बल्कि वहां के कच्चे माल के उत्पादक क्षेत्र को खरीदने में रुचि लेने लगे हैं ताकि उनका प्रॉफिट मार्जिन बना रहे।
इस तरह वे इस बाबत वहां संपत्ति बनाने लगे हैं। यह ट्रेंड स्टील और पेपर इंडस्ट्री में ज्यादा देखा जा रहा है, जहां बढ़ती लागत से कंपनियां काफी परेशान हैं। हरिशंकर सिंघानिया ग्रुप की कंपनी जे. के. पेपर पल्प के उत्पादन के लिए वियतनाम, इंडोनेशिया और मलयेशिया की ओर हसरत भरी निगाहों से देख रही है क्योंकि हाल में पल्प की बढ़ती कीमत ने कंपनी को परेशानी में डाल रखा है।
पिछले एक साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में पल्प की कीमत में 40 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है। पेपर के उत्पादन में आधा हिस्सा पल्प का है यानी इस इंडस्ट्री पल्प की जरूरत ज्यादा होती है। हालांकि ये कंपनियां बढ़ी हुई लागत का पूरा हिस्सा उपभोक्ताओं पर डालने में सक्षम नहीं होती।
जे. के. पेपर के वाइस प्रेजिडेंट (फाइनैंस) वी. कुमारस्वामी ने कहा - पल्प की कीमत लगातार बढ़ रही है और इसने कंपनी की लाभदायकता पर खासा असर डाला है। हम देश में पल्प के लिए प्लांटेशन नहीं कर सकते, लिहाजा ऐसी कवायद विदेशी धरती पर करने की सोच रहे हैं यानी वहां लगे-लगाए पल्प प्लांट को खरीदने की सोच रहे हैं।जे. के. पेपर कंपनी ने इस संबंध में गौतम थापर की कंपनी बल्लारपुर इंडस्ट्रीज से कुछ सीख ली है।
इस कंपनी ने 2006 में जे. पी. मॉर्गन के सहयोग से मलयेशिया में शाबा फॉरेस्ट इंडस्ट्रीज (एसएफआई) का अधिग्रहण 2610 लाख डॉलर में किया था और कंपनी का मकसद वही था, जो आज दूसरी कंपनियां सोच रही हैं। गौरतलब है कि बल्लारपुर इंडस्ट्रीज देश में पेपर उत्पादन की सबसे बड़ी कंपनी है। शाबा पल्प और पेपर मिल है और इसका प्लांटेशन 2.89 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है।
कंपनी के डायरेक्टर (फाइनैंस) बी. हरिहरन ने कहा - अगले साल जून में जब हम कपैसिटी में विस्तार करेंगे तो एसएफआई से करीब 60 हजार टन पल्प का आयात करेंगे। उन्होंने कहा कि वहां से आने वाला पल्प करीब 40 फीसदी सस्ता होगा और ग्रुप को उम्मीद है कि इस कदम से हम 200-250 लाख डॉलर बचा सकेंगे।पेपर के अलावा कुछ खाद्य तेल कंपनियां भी अपना सप्लाई चेन बनाए रखने के लिए विदेश में प्लांटेशन के अधिग्रहण पर विचार कर रही है।
इंदौर की कंपनी के. एस. ऑयल ने इंडोनेशिया में पाम प्लांटेशन के लिए 20 हजार हेक्टेयर जमीन 230 करोड़ की लागत से खरीदी है। कंपनी के एमडी संजय अग्रवाल ने बताया कि छठे साल में हमें इसका लाभ मिलने लगेगा और इस तरह हम करीब 80 करोड़ रुपये बचा सकेंगे। उन्होंने कहा कि तैयार तेल की कुल लागत का 80 फीसदी कच्चे माल पर खर्च होता है। उधर, वाराणसी की कंपनी झुनझुनवाला वनस्पति भी इंडोनेशिया में पाम प्लांटेशन के लिए 20 हजार हेक्टेयर जमीन खरीदने की इच्छुक है।
बढ़ती कीमत के कारण कच्चे माल की कमी से जूझ रही स्टील कंपनियां भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी डीलिंग में जुटी हुई है। अप्रैल 2007 से अब तक लौह अयस्क की नकदी कीमत में करीब 250 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सरकारी कंपनी स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय इस्पात निगम, नैशनल मिनरल डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन और नैशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन ने विदेश में मैटलर्जिकल कोयला और थर्मल कोयला असेट के लिए एसपीवी बनाया है।
विभिन्न देशों में उपयुक्त मौके की पहचान के लिए एसपीवी की प्रक्रिया जारी है।टाटा स्टील ने लौह अयस्क और कोयले के लिए हाल ही में अंतरराष्ट्रीय साझेदारी की है। टाटा स्टील के ग्लोबल मिनरल रिसोर्सेज के ग्रुप डायरेक्टर ए. डी. बैजल ने कहा - लौह अयस्क और कोयले के लिए हम विदेश में अधिग्रहण व साझेदार दोनों की तलाश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए सही होगा।
उन्होंने कहा कि स्टील बनाने में कच्चा माल मुख्य अवयव होता है। उन्होंने कहा कि हम उन सभी देशों पर नजरें टिकाए हुए हैं जहां पर्याप्त मात्रा में लौह अयस्क व कोकिंग कोल है। पिछले साल टाटा पावर ने इंडोनेशिया की थर्मल कोल उत्पादक पीटी काल्टिम प्राइमा कोल व पीटी ए. इंडोनेशिया में 30 फीसदी हिस्सेदारी अधिग्रहित की थी ताकि पश्चिमी तट पर 7000 मेगावॉट के पावर प्रोजेक्ट आसानी से पूरा किया जा सके।