नागरिक विमानन मंत्रालय नीतिगत सुधार के जरिये देश में वैमानिक विनिर्माण और एमआरओ सेवाओं को बढ़ावा देना चाहता है। एयरबस इंडिया के प्रबंध निदेशक श्रीनिवासन द्वारकानाथ ने अनीश फडणीस से बातचीत में विमान बनाने वाली इस यूरोपीय कंपनी की आउटसोर्सिंग और भारत में विमानों की आपूर्ति संबंधी योजनाओं पर चर्चा की। पेश हैं मुख्य अंश:
मेक इन इंडिया कार्यक्रम को बढ़ावा देने के लिए एयरबस किस प्रकार के नीतिगत बदलाव की उम्मीद कर रही है?
ऑफसेट नीति में बदलाव से मदद मिलेगी खासकर तब जब हम रक्षा खरीद को पूरा करने के लिए अपनी नागरिक वैमानिक विनिर्माण क्षमता का इस्तेमाल करेंगे। नागरिक क्षेत्र में अपेक्षाकृत अधिक काम होते हैं और ऐसे में नीतिगत सुधार से मदद मिलेगी। दूसरी चीज जो हम देखना चाहते हैं वह है कौशल विकास। इसके विभिन्न चरणों पर हम सरकार के साथ बातचीत कर रहे हैं जिन्हें व्यावसायिक संस्थानों में शामिल किया जा सकता है। हम भारत में एयरबस की आपूर्ति शृंखला के साथ प्रशिक्षुओं के जरिये इस कार्यक्रम का समर्थन कर सकते हैं। यदि हम गुणवत्तायुक्त उत्पादों का विनिर्माण करना चाहते हैं तो हमें सही कौशल के साथ अपने श्रमबल को प्रशिक्षित करने की जरूरत है।
एयरबस ने चीन में एक असेंबली संयंत्र स्थापित किया है। इस साल के आरंभ में उसने अमेरिका में एक संयंत्र स्थापित किया। भारत के लिए ऐसी कोई योजना?
फिलहाल भारत में किसी अंतिम असेंबली संयंत्र स्थापित करने की योजना नहीं है। लेकिन हमारी नजर एयरोस्ट्रक्चर असेंबली विकसित करने और उसे अन्य इकाइयों के साथ एकीकृत करने पर है। अभी हम विनिर्माण क्षेत्र में रोजगार के अवसर सृजित करने पर ध्यान दे रहे हैं और इसके लिए हमें वैमानिक कलपुर्जों और वैमानिक असेंबली के साथ शुरुआत करने की जरूरत है। मैं समझता हूं कि यह कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है। भारत में हम कई कंपनियों के साथ काम कर रहे हैं। बेंगलूरु की डायनामैटिक टेक्नोलॉजिज ने हमारे लिए फ्लैप ट्रैक बीम (विंग उपकरण) के दूसरे दर्जे के आपूर्तिकर्ता के रूप में काम शुरू किया था जो अब ए330 विमानों के लिए प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन चुकी है। इसका मतलब यह है कि वे न केवल असेंबली करते हैं बल्कि असेंबली के लिए आपूर्ति शृंखला का भी प्रबंधन करते हैं।
एयरबस भारत से कितना आउटसोर्सिंग करती है?
इस साल हमने 40 करोड़ डॉलर का आंकड़ा पार कर लिया है। इसमें हमारी इंजीनियरिंग सेवाओं का मूल्य और भारत से खरीदे गए उपकरण एवं कलपुर्जों की लागत दोनों शामिल हैं। पिछले नौ साल के दौरान आउटसोर्सिंग में 12 गुना वृद्धि हुई है। सालाना 40 करोड़ डॉलर के लक्ष्य को बरकरार रखना आसान नहीं है लेकिन अगले पांच साल में कुल मिलाकर हम 2 अरब डॉलर की आउटसोर्सिंग करेंगे।
भारतीय बाजार में आपूर्ति संबंधी क्या योजना है?
एयरबस इस साल के अंत तक भारतीय विमानन कंपनियों को हर सप्ताह औसतन एक विमान की आपूर्ति अगले दस साल तक करना चाहती है। यानी सालाना करीब 50 विमानों की आपूर्ति। इसके तहत इंडिगो, गोएयर और विस्तारा को ए320नियो विमानों की आपूर्ति की जाएगी। यहां तक कि एयर इंडिया भी अपने बेड़े में विमानों की संख्या बढ़ाने और पुराने विमानों को बदलने के लिए पट्टïे पर ए320नियो विमान लेने की संभावनाएं तलाश रही है।
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