भोपाल बीएचईएल के खराब हाल! | शशिकांत त्रिवेदी / भोपाल October 16, 2015 | | | | |
वर्ष 2013 में गोविंदपुरा औद्योगिक क्षेत्र के स्थानीय उद्यमियों से बात करते हुए बीएचईएल भोपाल के कार्यकारी निदेशक एस आर प्रसाद ने चेतावनी देते हुए कहा था कि उनकी कंपनी परमाणु ऊर्जा, यातायात और रक्षा जैसे नए क्षेत्रों में संभावनाएं तलाश रही है। उन्होंने गोविंदपुरा और मंडीदीप के स्थानीय उद्योगपतियों से भी बाजार की मंदी और प्रतिस्पर्धी माहौल से उबरने के लिए बीएचईएल से हाथ मिलाने की अपील की थी।
उन्होंने चेतावनी दी थी कि तब हालात इस क्षेत्र के माकूल नहीं थे और कंपनी के सामने अपना 'महारत्न' दर्जा बरकरार रखने की राह में तमाम चुनौतियां मौजूद थीं। अब वह कंपनी का हिस्सा नहीं रहेंगे क्योंकि इस साल वह सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं लेकिन कंपनी के मुनाफे के आंकड़े उनके डर की आशंका पर मुहर लगाते हैं क्योंकि वर्ष 2012-13 के दौरान हुआ कंपनी का 689 करोड़ रुपये का मुनाफा वर्ष 2014-15 में घटकर 264 करोड़ रुपये रह गया।
वर्ष 1974 में बीएचईएल की भोपाल इकाई की स्थापना हुई थी, जिसमें हाइड्रो टरबाइन यूनिट, ट्रांसफॉर्मर यूनिट, इलेक्ट्रिक मोटर यूनिट और स्विचगियर यूनिट नाम के चार उप-प्रभाग हैं। अगर बीएचईएल में उच्च पदस्थ सूत्रों पर यकीन करें तो बाजार के हालात, मुद्रास्फीति, परिचालन की बढ़ती लागत और नीतिगत मसलों के चलते भोपाल इकाई को नियोजित विविधीकरण का कोई लाभ नहीं मिल पाया। एक वरिष्ठï अधिकारी ने बताया, 'बीएचईएल, केंद्र सरकार की कंपनी और निजी कंपनी के बीच त्रिपक्षीय समझौते के तहत एक परमाणु टरबाइन विनिर्माण इकाई लगाने की योजना बनाई गई थी। इसके लिए निजी क्षेत्र की कोई कंपनी आगे नहीं आई, जबकि बीएचईएल के पास नई इकाई लगाने के लिए वित्तीय संसाधनों और जगह की कोई कमी नहीं थी।'
इसके तहत कंपनी की 750 मेगावॉट क्षमता वाली परमाणु ईंधन चालित टरबाइन संयंत्र बनाने की योजना थी। इसी तरह कंपनी के पास एल्सटॉम और भारतीय परमाणु बिजली निगम लिमिटेड से तकनीक लेने की अच्छी संभावनाएं थीं। मगर संयुक्त उपक्रम साझेदारी की कवायद सिरे नहीं चढ़ पाई। 'कोल-गेट', पयावरणीय मसलों के चलते इस महारत्न कंपनी की भोपाल इकाई का कारोबार प्रभावित हुआ। पिछले पांच वर्षों के दौरान कंपनी के प्रदर्शन में निरंतरता नहीं रही है। वर्ष 2011-12 में इसका सालाना कारोबार 4,800 करोड़ रुपये था, जो वर्ष 2014-15 में घटकर 3,678 करोड़ रुपये रह गया।
भोपाल इकाई के कार्यकारी निदेशक एम वी युगांधर ने बिज़नेस स्टैंडर्ड के सवालों का जवाब नहीं दिया लेकिन कंपनी प्रवक्ता की ओर से कहा गया, 'हालात बहुत अनुकूल नहीं हैं लेकिन भोपाल इकाई के पास आने वाले तीन वर्षों में प्रत्येक वर्ष के लिए 1,000-1,500 करोड़ रुपये के हाइड्रो टरबाइन और ट्रांसफॉर्मर और स्विचगियर के 1,000 से 1,200 करोड़ रुपये के ऑर्डर हैं। अन्य इकाइयां भी अगले तीन वर्षों में 1,000 से 1,500 करोड़ रुपये का करोबार दिलाएंगी। फिलहाल कंपनी का मुख्य कारोबार भूटान की पुनातसांगछू परियोजना और तेलंगाना में एक बिजली परियोजना के दम पर चल रहा है।'
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