आतंकियों की गोलीबारी और ग्रेनेड के हमले झेलने के कुछ दिनों बाद लियोपोल्ड कैफे में एक बार फिर से चहलकदमी देखी जा सकती है।
दुनिया के अलग-अलग कोनों से आए लोगों और इस 'मायानगरी' के बाशिंदे फिर से इसे गुलजार करने में लगे हैं। कैफे में चीजें पहले जैसी ही हैं। सिवाय दीवारों पर गोलियों के निशान और क्षतिग्रस्त खिड़कियों के। यहां हुए हमले में सात लोग बेवक्त मौत के शिकार हो गए।
इनमें से दो विदेशी नागरिक और दो यहीं पर काम करने वाले बैरे थे। बावजूद उस वाकये के लोग अपने दिल के बेहद करीब इस कैफे से दूरी बनाए हुए नहीं हैं। कैफे पिछले रविवार को खुला था। लेकिन खुलने के कुछ देर बाद ही इसको बंद करना पड़ा था।
खैर, सोमवार को इसके शटर फिर से उठा दिए गए। कैफे की दीवारें सिडनी हार्बर, आगरा के ताजमहल, मिस्र के पिरामिडों, पेरिस के एफिल टावर और चीन की महान दीवार की पेंटिंगों से सजी हैं। दूसरी दीवार पर एल्विस प्रेस्ली जैसे दुनिया के जाने-माने रॉक स्टारों के पोस्टर भी लगे हैं।
इसके अलावा चीनी पेंटिंग भी दीवार पर लगी है। हालांकि, अब कैफे में दीवारों, दरवाजों और खिड़कियों पर बने गोलियों के कम से कम सात निशान सबसे ज्यादा कौतुहल का केंद्र बन गए हैं। आयरलैंड से यहां आए पर्यटक मेग ओहिगिन्स अपने लिए एक सेंटर टेबल चुनते हैं।
मेग ने अपने लिए बियर ऑर्डर किया। वह कहते हैं, 'यहां आकर मुझे डर नहीं लग रहा है। लियोपोल्ड सुरक्षित जगह है और मैं जब भी मुंबई आता हूं तो यहां जरूर आना चाहता हूं।'
आतंकियों को इससे स्पष्ट संदेश और नहीं मिल सकता है। 26 नवंबर की रात आतंकियों ने अपनी काली करतूतों की शुरुआत यहीं से की थी।
यहां पर अंधाधुंध गोलीबारी करके वे सर्विस एंटे्रंस के रास्ते ताज महल होटल में घुस गए। एक तरफ जहां ताज को फिर से खुलने में एक साल का वक्त लगेगा, वहीं लियोपाल्ड फिर से खुल गया है। इस रेस्तरां के एक पार्टनर फरहांग जहानी कहते हैं, 'हम आतंकियों को बताना चाहते हैं कि हम डरे नहीं हैं।
इससे भी अहम यह कि इसमें जीत हमारी ही हुई है। यहां पर लगी ग्राहकों की भीड़ भी इस बात को बताने के लिए काफी है।' जेहानी अपने भाई फरहाद और दूसरे साझेदारों के साथ मिलकर इस कैफे को चलाते हैं।
लगभग 137 साल पुराने इस कैफे का जिक्र ऑस्ट्रेलियाई लेखक ग्रेगरी डेविड रॉबर्ट ने भी अपनी मशहूर उपन्यास, 'शांताराम' में भी करके उसे अमर बनाया है। ऐसा माना जाता है कि इसकी कहानी हेनरी शैरियर के क्लासिक नॉवेल, 'पैपिलियन' से काफी हद तक मिलती-जुलती है।
इस नॉवेल का प्लॉट 1980 के दशक के शुरुआती सालों पर आधारित है। इस उपन्यास में लियोपोल्ड कैफे का जिक्र है, जहां हीरो ड्रग और जाली नोटों के कारोबारियों से मिलता है।
जेहानी कहते हैं, 'हमें इस बात का कोई अंदाजा नहीं है कि लियोपोल्ड को हमले के लिए आखिर क्यों निशाना बनाया गया। जब यह घटना हुई उस वक्त में ऊपर बैठा क्रिकेट देख रहा था। जब मैं नीचे आया तो हर तरफ मलबा बिखरा हुआ था। मैंने देखा कि हर ओर लाशें ही लाशें थीं।'
इस कैफे को खास तौर पर पुराने जमाने का लुक दिया गया। यहां के पंखों को देखकर आपको भी बीते जमाने के उन भारी और गोल-मटोल पंखों की याद आ जाएगी, जो लंबे डंडों से टंगे रहते थे। यहां खाना खाने के लिए पूरी जगह है, जहां आप बड़े आराम से खा सकते हैं।
यहां खाना और शराब की कीमत भी काफी हाई-फाई नहीं है। यहां के खाने की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें किसी तरह के मसाले का इस्तेमाल नहीं किया जाता। इसी वजह से यहां का खाना विदेशी पर्यटकों को खासकर भाता है।
यहां से आप चाय की कप और टीशर्ट भी खरीद सकते हैं, जिस पर लियोपोल्ड कैफे लिखा होता है। शायद मुंबई में यह एकमात्र ऐसा कैफे है, जहां ऐसा भी होता है।
लियोपोल्ड तो आम दिनों की तरह ही चलने लगा है, लेकिन ऊपर मौजूद पब अभी तक खुला नहीं है।