सूरत में हीरे की पॉलिश के बड़े ठिकाने कतारगाम में नंदू दोशी वाड़ी की एक संकरी गली में पान की दुकान चलाने वाला मुकेश परेशान है। पिछले कुछ महीनों में उसकी आमदनी तीन चौथाई ही रह गई है। उसने बताया कि हीरा कारखानों में काम करने वाले कामगारों के नहीं आने से उसका कारोबार घट गया है। जो लोग आ रहे हैं, उन्हें कम मजदूरी मिल रही है, जिसे वे पान जैसे शौक पर खर्च नहीं करना चाहते।मुकेश की बात सूरत के 90,000 करोड़ रुपये सालाना के हीरा पॉलिश उद्योग की हालत बयां करने के लिए काफी है। दीवाली और क्रिसमस पर खरीदारी ही नहीं हो रही, जिससे यहां उत्पादन करीब 70 फीसदी घट गया है और 20,000 लोगों की नौकरी चली गई है। यहां के कारीगर अब कशीदाकारी आदि का काम तलाश रहे हैं। कतारगाम में हीरा पॉलिश करने की छोटी-बड़ी ढेरों इकाइयां हैं। बेहतर दिनों में यहां कई पुरानी इमारतों में 1,000 कारीगर लगे रहते थे। लेकिन अब इमारतें सूनी हैं। करीब 300 इकाइयां कुछ अरसे के लिए बंद हो गई हैं। दिक्कत यह है कि त्योहारों में भी कारोबार ठंडा है, जो हर साल तेज रहता है। सूरत में आम तौर पर दिवाली से लेकर क्रिसमस तक करीब 35,000 से 40,000 करोड़ रुपये के हीरे का कारोबार होता है।उद्योग से जुड़े लोग कहते हैं कि इस बार 2008 की वैश्विक मंदी से भी बदतर हालत है। पिछले साल अपने कर्मचारियों को दीवाली बोनस के तौर पर कार, फ्लैट और सोने के गहने देकर सुर्खियों में आए हरि कृष्ण एक्सपोट्र्स के मालिक सावजी ढोलकिया ने कहा, 'अभी काम करीब-करीब ठप है और बदतर वक्त के लिए तैयार रहना चाहिए। कम से कम छह महीने राहत की कोई उम्मीद नहीं दिखती।'कच्चे हीरे की आपूर्ति के मामले में अग्रणी डी बीयर्स ने हाल ही में कहा था कि उसके पास बहुत अधिक स्टॉक जमा हो गया है, जिसके कारण हीरा बाजार के सामने दिक्कत है। राम कृष्ण डायमंड के बाहर खड़े एक श्रमिक ने कहा कि बड़ी कंपनियों ने काम बंद नहीं किया है, लेकिन हजारों की छंटनी कर दी है। कई लोगों के वेतन में 40 फीसदी कटौती हो रही है और पिछले पांच महीनों में पांच कारीगरों ने खुदकुशी तक कर ली है। चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
