बाहर आईं नेताजी से जुड़ी 64 फाइलें | बीएस संवाददाता / कोलकाता September 18, 2015 | | | | |
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 'नेताजी' सुभाषचंद्र बोस से जुड़ी 64 फाइलें सार्वजनिक कर एक राजनीतिक चाल चल दी है, जिसका तोड़ शायद ही किसी के पास हो। कोलकाता और पश्चिम बंगाल पुलिस के पास मौजूद इन फाइलों का खुलासा कर उन्होंने केंद्र पर भी ऐसा करने का दबाव बढ़ा दिया है। कोलकाता के पुलिस आयुक्त सुरजीत कर पुरकायस्थ ने करीब 12,744 पृष्ठïों की ये फाइलें नेताजी के भाई के पौत्र चंद्र कुमार बोस और पूर्व सांसद तथा शिशिर कुमार बोस (शरत चंद्र बोस के पुत्र) की पत्नी कृष्णा बोस को सौंपीं। इन फाइलें डिजिटल शक्ल में मीडिया को भी दी गईं। मूल फाइलों को शीशे में रखा गया है और अगले सप्ताह से आम जनता इन्हें पुलिस संग्रहालय में देख सकेगी।
इन फाइलों में अधिकतर पुलिस द्वारा बीच में ही प्राप्त की गई सूचनाएं (इंटरसेप्ट) और नोट हैं, जिनसे पता चलता है कि नेताजी के परिवार और आजाद हिंद फौज (आईएनए) से जुड़े लोगों पर कितनी नजर रखी जाती थी। मुख्यमंत्री ने कहा, 'मैंने पत्रों पर सरसरी निगाह डाली है। इनसे पता चलता है कि नेताजी के परिवार की जासूसी हो रही थी, जो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है। कुछ पत्रों से पता चलता है कि नेताजी 1945 के बाद भी जीवित थे।' बनर्जी ने केंद्र से भी नेताजी से जुड़ी सभी फाइलें सार्वजनिक करने की अपील की ताकि सच्चाई लोगों के सामने आ सके।
उन्होंने कहा, 'यह तो शुरुआत है। केंद्र सरकार को भी सभी फाइलें सार्वजनिक करनी चाहिए और लोगों को फैसला करने देना चाहिए। अगर कुछ छिपाने लायक नहीं है तो फाइलों का खुलासा क्यों न किया जाए।' उसके बाद उन्होंने बुलंद आवाज में कहा, 'आप सच्चाई छिपा नहीं सकते।' कृष्णा बोस ने कहा कि जो फाइलें केंद्र सरकार के पास हैं, वे अधिक महत्त्वपूर्ण हो सकती हैं। इस साल की शुरुआत में जो फाइलें सार्वजनिक की गई थीं, उनसे पता चला था कि खुफिया विभाग 1948 से 1968 के बीच नेताजी के रिश्तेदारों पर नजर रखता था। लेकिन 70,000 पन्नों में से महज 10,000 पन्ने ही सार्वजनिक किए गए थे। उस खुलासे से यह बहस भी शुरू हो गई कि आजाद भारत में 'नेताजी' के बारे में जासूसी का फरमान किसने सुनाया था। इसके बाद मोदी सरकार ने यह फैसला करने के लिए समिति गठित की कि फाइलें सार्वजनिक की जाएं अथवा नहीं।
कोलकाता और पश्चिम बंगाल पुलिस ने आज जो फाइलें सार्वजनिक की हैं, उनसे पता चलता है कि खुफिया विभाग नेताजी के रिश्तेदारों को भेजे गए पत्रों की 'हूबहू' प्रतियां बनाता था और उसके बाद असली चि_ïी को सही पते पर भेज दिया करता था। प्रतियों का इस्तेमाल आगे की जांच के लिए किया जाता था। यही नहीं उस समय आईएनए से जुड़ी हर चीज पर नजर रखी जा रही थी फिर चाहे वह किसी व्यक्ति की आवाजाही हो, गलियों में बैठक हो, पत्रों का आदान-प्रदान हो।
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