'डॉक्टर के पर्चे पर दवाओं की ऑनलाइन बिक्री खतरनाक प्रवृत्ति'
संजय जोग / May 13, 2015
महाराष्ट्र एफडीए ने स्नैपडील के खिलाफ तेजी से कार्रवाई करते हुए डॉक्टर के पर्चे पर लिखी दवा की बिक्री के मामले में प्राथमिकी दर्ज करा दी। संजय जोग के साथ बातचीत में एफडीए के आयुक्त हर्षदीप कांबले ने बताया कि ऐसे मामले से कैसे निपटा जा सकता है। प्रमुख अंश..
ई-कॉमर्स कंपनी के खिलाफ एफडीए को क्यों त्वरित कार्रवाई करनी पड़ी, खासकर स्नैपडील द्वारा दवा की बिक्री के मामले में?
दवा एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम 1940 को व्यापक तौर देखने पर साफ होता है कि डॉक्टर द्वारा पर्चे पर लिखी गई दवा की ऑनलाइन बिक्री को अनुमति नहीं है। सिर्फ डॉक्टर जानता है कि कौन सी दवा दी जाए और मरीज को किस चीज की जरूरत है। इसकी बिक्री सिर्फ अधिकृत और लाइसेंंस प्राप्त फार्मासिस्ट ही डॉक्टर की पर्ची के आधार पर कर सकते हैं। इस मामले में कानून सख्त है, क्योंकि यह मानव जीवन से जुड़ा मसला है।
स्नैपडील के खिलाफ कार्रवाई करने के बाद भी कई कंपनियां वेबसाइट के माध्यम से दवाएं बेच रही है?
हमने इस मामले की गहराई से छानबीन की है। एफडीए को इस सिललिसे में शिकायत आई है कि एस्कोरिल कप सिरप और विगोरा टैबलेट्स जैसी दवाएं बिक रही है। शिकायतकर्ता ने स्नैपडील को दवाओं के ऑनलाइन ऑर्डर दिए थे और उन्हें कूरियर के जरिये दवाएं मिलीं। एफडीए ने इसके लिए विशेष जांच दल (आईटी) गठित कर ई कॉमर्स वेबसाइटों को खंगालना शुरू कर दिया है। एफडीए ने पाया कि कुछ ऑनलाइन कंपनियां अपनी वेबसाइट में दवाएं दिखा रही हैं। दवा एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम के मुताबिक दवाओं की बिक्री, यहां तक कि उनकी प्रदर्शनी भी प्रतिबंधित है, जब तक कि इसके लिे कुछ निश्चित प्रक्रिया का पालन न किया जाए। इसलिए एफडीए ने स्नैपडील, फ्लिपकॉर्ट, एमेजॉन और 2-3 अन्य वको नोटिस भेजे हैं। तमाम ने जवाब में कहा है कि वे उन दवाओं को अपनी वेबसाइट से हटा रही हैं। एफडीए ने इस तरह की गतिविधि का तरीका जानने और साक्ष्य जुटाने की कवायद की। बाद में एफडीए ने अपने कर्मचारियों के माध्यम से कुछ दवाइयों के ऑर्डर दिए और उनको स्नैपडील से दवाएं मिलीं। उसके बाद हमने प्राथमिकी दर्ज कराई।
लेकिन ई कॉमर्स कंपनियों का कहना है कि वे वर्चुअल मार्केट प्लेस हैं। आपका क्या कहना है?
जहां तक फार्मासिस्ट का सवाल है, उनके पास लाइसेंस व पंजीकरण होता है। एफडीए के अधिकारी नियमित रूप से जाते हैं, और दवा की दुकानों की निगरानी व जांच करते हैं, इसकी वजह से गुणवत्ता की कुछ जांच हो जाती है। ई कॉमर्स कंपनियों के मामले में कोई जांच या फिर से जांच की व्यवस्था नहीं है। एफडीए को डर है कि इस तरह से फर्जी दवाएं भी मुहैया कराई जा सकती हैं, क्योंकि व्यक्तिगत लोग ऑनलाइन दवाएं मंगाते हैं। इसे मरीज पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। ई-कॉमर्स कंपनियों का तर्क है कि वे सुविधा प्रदाता हैं। बहरहाल डॉक्टर या फार्मासिस्ट के रूप में काम करने की अनुमति उन्हें नहीं दी जा सकती। दूसरी बात यह है कि कपड़े या अन्य चीजों से दवाओं की बिक्री अलग है। यह सीधे लोगों के स्वास्थ्य पर असर डालता है।
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