कारोबार की नई श्रेणियां गढ़कर शून्य से शिखर तक पहुंचने वालों की स्वप्निल दास्तां से रूबरू करा रही हैं इंदुलेखा अरविंद'अपने ही भाई-बहनों के बीच मैं एक तरह से अछूत था'नितिन कामत, संस्थापक और सीईओ, जेरोधाबेंगलूरु स्थित जेरोधा के संस्थापक और मुख्य कार्याधिकारी नितिन कामत मुस्कराहट के साथ कहते हैं, 'मैं ऐसे परिवार से ताल्लुक रखता हूं जहां आपने आईआईटी या किसी क्षेत्रीय इंजीनियरिंग कॉलेज से पढ़ाई नहीं की तो समझिए अपने जीवन में कुछ नहीं किया। इसलिए मैं परिवार में ऐसा लड़का था, जिससे परिवार के सभी बच्चों को दूर रहने की हिदायत दी गई थी।' मगर अब शायद ऐसा नहीं होगा और यह खासा स्वाभाविक भी है, जो उस कंपनी के परिसर में दाखिल होने से नजर भी आ जाता है, जिसकी स्थापना उन्होंने वर्ष 2010 में की थी, जो देश में सबसे कम ब्रोकिंग शुल्क लेती है। काले रंग की एक ऑडी 6 जेपी नगर में उनके दफ्तर के बाहर खड़ी है, जबकि मुख्य इमारत के गलियारे में सुनहरे रंग की एक ऑडी क्यू 5 खड़ी है। जेरोधा की बुनियाद उन्होंने तब रखी थी, जब वह 17 साल के थे। कामत के अनुसार यह फर्म रोजाना 7,000 करोड़ रुपये का कारोबार कराती है, जिसमें 56,000 ग्राहकों को सेवाएं मुहैया कराई जाती हैं और पिछले साल उसका कर पूर्व लाभ 30 करोड़ रुपये था।वर्ष 2011 उन पर काफी मेहरबान रहा क्योंकि भारत में डेरिवेटिव कारोबार का आगमन हुआ और आईसीआईसीआई बैंक और इंडियाबुल्स ने अपने ऑनलाइन ट्रेडिंग इंटरफेस शुरू किए और कामत ने एक इंटरनेट कनेक्शन लिया ताकि वह उन दुकानों के बजाय अपने घर से ही इन सूचकांकों में कारोबार कर सकें। उनके माता-पिता ने कभी भी उनके इस कारोबारी दांव को हतोत्साहित नहीं किया, जबकि उनका ताल्लुक काफी परंपरागत परिवार से है। उनके पिता रघुराम कामत केनरा बैंक में अधिकारी थे जबकि मां रेवती वीणा बजाना सिखाती थीं। कामत के पिता कहते हैं, 'मुझे हमेशा उसमें भरोसा था।' उन्होंने कामत के 18 साल की उम्र को पूरा करने से पहले ही उन्हें अपने और अपनी पत्नी के नाम का कारोबारी खाता संचालित करने दिया। बेटा मजाक करते हुए कहता है कि उनके पिता को उनकी माली हालत का अंदाजा उनके शैंपू और शेविंग क्रीम से लग जाता था, जिसमें अगर बेटे ने पैसे नहीं कमाए तो वह अपने पिता की इन चीजों को इस्तेमाल करना शुरू कर देता था।मगर उनके द्वारा ऑनलाइन ट्रेडिंग कारोबार शुरू करने के तुरंत बाद इंटरनेट की दुनिया गिरावट की शिकार हो गई। 35 वर्षीय कामत कहते हैं, 'चार साल के दौरान मैंने जो 4 लाख रुपये बचाए थे, वे कुछ ही महीनों में बरबाद हो गए। उन दिनों यह बड़ी रकम हुआ करती थी।' फिर वह एक कॉल सेंटर से जुड़ गए क्योंकि इससे उन्हें कारोबार के लिए कुछ वक्त, जिसका इकलौता मकसद व्यापार के लिए अधिक से अधिक पूंजी जुटाना था। वह कहते हैं, 'मेरे ख्याल से उन साढ़े तीन सालों में मैं केवल सप्ताहांतों पर ही सो पाता था।' वे कॉल सेंटर क्षेत्र में तेजी के दिन थे लेकिन फिर भी उनकी कमाई उतनी नहीं थी कि वह नौकरी छोड़कर पूरी तरह से कारोबार में उतर सकें। और फिर चमत्कार हुआ, 'मैं अमेरिका से लौटे एक लड़के के साथ जिम में कसरत किया करता था। एक शाम को जब हम मिले तो मैंने उसे अपने प्रदर्शन और पिछले तीन वर्षों में उसे अपने काम के बारे में बताया। वह मुझसे इतना प्रभावित हुआ कि उसने मुझे उसकी ओर से कारोबार करने के लिए 25 लाख रुपये का चेक दे दिया। और ये सब पीने-पिलाने के पहले अवसर पर हुआ।' बाद में प्रकाश नाम के उस शख्स ने अपना उपनाम छिपाते हुए बताया, जो किसी बड़े जुए जैसा सुनाई पड़ता है।वह बताते हैं, 'वह मुझे बेहद बुद्घिमान लड़का लगा और मैंने सोचा कि उसकी मदद की जाए।' जैसे ही कामत को पैसे मिले, उन्होंने तुरंत नौकरी छोड़ दी और उस काम को गंभीरता देने के लिए घर से ही 'कामत एसोसिएट्स' नाम से अपना काम शुरू किया। उनके ग्राहकों का आधार बढ़कर 40 तक पहुंच गया। फिर, 2008 में रिलायंस मनी ने कामत एसोसिएट्स को अपना सब-ब्रोकर बनाया। जल्द ही उनका सालाना कारोबार, उन सभी फ्रैंचाइजी के कारोबार को मिलाने के बाद भी उससे बड़ा हो गया। रिलायंस मनी के पूर्व मुख्य कार्याधिकारी सुदीप बंद्योपाध्याय इसकी पुष्टि नहीं करते लेकिन कामत को लेकर इतना जरूर याद करते हैं कि वह एक 'युवा और प्रतिभावान लड़का' था, जिसने बेहतरीन प्रदर्शन किया। उसी वर्ष उन्होंने अपनी महिला मित्र सीमा पाटिल से शादी भी कर ली, जिनसे उनकी पहली बार मुलाकात कॉल सेंटर में काम करने के दौरान हुई थी। सीमा कहती हैं कि वह उनके कारोबार, विशेषकर जेरोधा को लेकर चिंतित नहीं थी। उनका कहना है, 'मुझे पता था कि अगर यह नहीं चल पाया तो वह किसी और चीज में हाथ आजमाएंगे।' हालांकि सीमा के माता-पिता को इस रिश्ते के लिए समझाना उतना आसान नहीं था क्योंकि अधिकांश मध्य वर्गीय लोगों की तरह वे भी चाहते थे कि उनका दामाद अधिक स्थायित्व वाली किसी नौकरी में रहे। सीमा कहती हैं, 'उनके लिए शेयर बाजार और कारोबार बहुत जोखिम भरा था क्योंकि उन्हें लगा कि जब बाजार गिरेगा तो नितिन सब कुछ गंवा देगा।' उनके पिता रिलायंस मनी के दफ्तर गए और यह पता लगाने की कोशिश की कि वे क्या कर रहे हैं।मई, 2009 में अपने उस फैसले को कामत अपना अब तक का सबसे वाहियात फैसला बताते हैं, जब उन्होंने आम चुनावों के नतीजों से पहले शेयर बाजार में अपने पूरे निवेश को बाहर निकाल लिया था क्योंकि वह जोखिम नहीं लेना चाहते थे।इसकी तुलना में बाजार चार दिनों में 40 फीसदी चढ़ गया। हताश कामत और उनकी टीम ने दफ्तर पर ताला लगाकर एक रिसॉर्ट का रुख किया, जहां जाकर उन्होंने फैसला किया कि वह ग्राहकों के लिए और खरीद नहीं करेंगे। इसके बजाय वह एक ऑनलाइन ब्रोकरेज फर्म शुरू करेंगे, जिसमें ग्राहकों को ऑनलाइन ब्रोकरेज सेवाएं मिलेंगी, जिसकी उन्हें खुद 10 साल पहले दरकार थी। इस तरह अगस्त, 2010 में जेरोधा की शुरुआत हुई, जिसने 20 फीसदी की बेहद कम एक तय ब्रोकरेज शुल्क की पेशकश की। वह कहते हैं, 'किसी कारोबार को संचालित करने की लागत उसके आकार के अनुसार नहीं लगती क्योंकि उसके लिए कोशिश वैसी ही करनी पड़ती है, इसलिए हम एक तय दर पेश कर सके।' क्या अब उनके रिश्तेदार उनके साथ आखिरकार गलबहियां करने लगे हैं? मुस्कराते हुए वह कहते हैं, 'जी, हां मैं घर में सबकी आंखों का तारा हूं। आईआईटी से पढ़े मेरे सभी चचेरे भाई-बहन अब स्टार्ट अप शुरू करना चाहते हैं और आप जानते ही हो उन्हें किसने प्रेरित किया।''मेरे काम को लेकर मां को हुई फिक्र'ऋचा कर, संस्थापक, जिवामीजिवामी की संस्थापक ऋचा कर जब अपने उपक्रम की स्थापना करने जा रही थीं तो उनकी गृहिणी मां को यह चिंता सता रही थी, 'अपनी सहेलियों को मैं क्या बताऊंगी? यही कि मेरी बेटी कंप्यूटर पर अंत:वस्त्र बेच रही है?' कर ने बिट्स पिलानी से इंजीनियरिंग करने के बाद नरसी मोंजी इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए करने के बाद अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी और अपना ऑनलाइन लॉन्जरी स्टोर खोला। कर हंसते हुए याद करती हैं, 'उन्हें इस बात की भी चिंता थी कि मुझे नियमित रूप से वेतन भी नहीं मिलेगा।' वह बताती हैं कि उनके पिता जमशेदपुर में टाटा स्टील से सेवानिवृत्त हुए, वह समझ नहीं पाए कि वह असल में क्या करना चाहती हैं लेकिन उनके माता-पिता में से किसी ने भी उन्हें हतोत्साहित नहीं किया, जिसके लिए वह उनकी शुक्रगुजार हैं।तीन साल बाद कर की मां और उनकी तमाम सहेलियां जिवामी की 5,00,000 खरीदारों में शामिल हैं। जिवामी ने दिसंबर, 2013 में वित्तीय संसाधन जुटाने की कवायद के दूसरे दौर में 60 लाख डॉलर जुटाए थे। 33 वर्षीय कर के जीवन में उद्यमिता ने अचानक ही दस्तक दी। परिवार में तो कोई ऐसा आदर्श नहीं था और उनके दिमाग में केवल उसका ही खाका खिंच रहा था, जिसे आज हम जिवामी के रूप में देखते हैं। दरअसल एसएपी में काम करने के दौरान उनका वास्ता वैश्विक दिग्गज लॉन्जरी ब्रांड विक्टोरियाज सीक्रेट की एक ग्राहक से पड़ा, जिसने उनका ध्यान इस ओर खींचा कि भारत में अभी तक इस क्षेत्र पर उतना ध्यान नहीं दिया गया है। बेंगलूरु के डोमलूर स्थित अपने दफ्तर में बैठी वह कहती हैं, 'मैंने नंबर और अन्य ब्योरा देखा और फिर मेरे दिमाग में यह विचार आया कि यह एक संभावनाशील श्रेणी है।' शहर में लॉन्जरी की विभिन्न दुकानों के दौरे ने उनकी इस धारणा को और मजबूत भी किया। वह कहती हैं, 'भारतीय महिलाओं का शारीरिक ढांचा बहुत अलग होता है और रिटेलर शेल्फ स्पेस की कमी के चलते केवल कुछ मानक आकारों के ही कपड़े रखते हैं और अगर आप उसमें कुछ फैशनेबल उत्पादों की मांग करती हैं तो आप सेल्स गर्ल की हंसी की पात्र भी बन सकती हैं।'इसलिए कॉर्पोरेट क्षेत्र में आठ साल गुजारने के बाद उन्होंने किसी और काम को शुरू करने का फैसला किया और और एक ऐसा पोर्टल शुरू किया, जिसमें विभिन्न आकार की ब्रा बेचनी शुरू कीं, जिसमें सही आकार को लेकर सुझाव के साथ-साथ उससे संतुष्टï न होने की स्थिति में पैसे वापस करने की पेशकश की। कर कहती हैं कि वह खुद का उपक्रम शुरू करने को लेकर जरा भी नहीं घबराईं। वह कहती हैं, 'मुझे पता था कि अगर किसी भी वजह से ये कारगर नहीं रहा तो मुझे कॉर्पोरेट नौकरी में वापस जाना पड़ सकता है। यह महज एक साल के मुझे खुद को सहारा देने का सवाल था।' कर ने मार्च 2011 में नौकरी छोड़ दी और अगस्त में जिवामी की शुरुआत की। दरअसल हिब्रू भाषा में 'जिवा' का अर्थ 'बेहतरीन' होता है, जिसमें 'मी' को संस्थापक ने अपनी ओर से जोड़ा। अपने कारोबार की शुरुआत उन्होंने डोमलूर के एक घर की पहली मंजिल से की, जिसमें उन्होंने बिट्स पिलानी की अपनी सहपाठी के साथ व्यावसायिक परमिट साझा किया, जो सामाजिक उपक्रमों के लिए एक सलाहकार फर्म चला रही थीं। संयोग से उनकी कंपनी का पहला ग्राहक इंदौर का एक आदमी था, जिसने 7,000 रुपये का ऑर्डर दिया था।उन दिनों कर्मचारियों के नाम पर उनके दफ्तर में सिर्फ एक लड़का ही था, जबकि अगले महीने कॉल का जवाब देने के लिए एक लड़की की नियुक्ति भी की गई। इसमें तकनीकी पक्ष को बाहर से आउटसोर्स किया गया था। वहीं जब उस लड़की ने इन्फोसिस में नौकरी शुरू करने के लिए उनका साथ छोड़ दिया तो कर ने खुद सिंधु नाम से कॉल का जवाब देना शुरू कर दिया। नवंबर में पांच और कर्मियों की भर्ती की गई। तब के पुरुष मित्र रहे और अब पति बन चुके केदार गवने कहते हैं कि जब भी कर को मदद की जरूरत पड़ी तो उन्होंने अपना हाथ बढ़ाया और वह ऑनलाइन कंपनियों को लेकर उन्हें कुछ सलाह दे सकते थे क्योंकि वह इंटरनेट एलालिटिक्स फर्म कॉम्सकोर से ताल्लुक रखते थे।जिवामी की शुरुआत उनकी अपनी बचतों, मित्रों और परिवारों की मदद से संभव हुई लेकिन कुछ खिंचाव के चलते नकदी तुरंत खर्च हो गई और कर को एहसास हुआ कि उन्हें संस्थागत वित्त की दरकार होगी। वित्तीय संसाधन जुटाने की पहली पहल के तौर पर कालारी कैपिटल और आईडीजी वेंचर्स के जरिये पूंजी का प्रवाह हुआ। कालारी की प्रबंध निदेशक वाणी कोला ने जल्द ही इस कारोबार की संभावनाओं को समझ लिया। भले ही उन्होंने हाल में ही कंपनी शुरू की थी लेकिन कर और गवने के परिवार इस बात को लेकर भी बेकरार थे कि दोनों जल्द से जल्द शादी के बंधन में बंध जाएं, उस वक्त कर 29 साल की थीं। मगर इस मौके पर भी उनका पूरा ध्यान अपने काम पर ही था। वह कहती हैं, 'मैंने शुक्रवार को छुट्टी ली, शनिवार को शादी की और सोमवार को वापस काम पर लौट आई।' जिवामी ने फरवरी में पहले दौर की वित्तीय रकम जुटाई और अप्रैल में कर की शादी हुई, इसलिए उनका पूरा ध्यान कंपनी के विस्तार और भर्तियों पर था न कि शादी और हनीमून पर। वह कहती हैं, 'चूंकि मैं कारोबार विस्तार करने का लुत्फ उठा रही थी, इसलिए मैं कोई शिकायत नहीं करती।' अगले दौर में 33 करोड़ रुपये का पूंजी प्रवाह हुआ, जो मौजूदा निवेशकों और रॉनी स्क्रूवाला के यूनिलेजर वेंचर्स के जरिये हुआ। स्क्रूवाला कहते हैं, 'कर को खुद में जबरदस्त भरोसा है और वह अपने काम को लेकर बेहद समर्पित हैं और जिस बात ने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वो थी उस क्षेत्र की जानकारी, जिसकी उन्होंने खोज की थी।' अब कर का एकमेव लक्ष्य यही है कि जिवामी को कैसे बड़ा ब्रांड और बड़ी कंपनी बनाया जाए।
