बंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई के उपनगरीय इलाकों में 1,000 एकड़ से अधिक जमीन पर किए जा रहे निर्माण कार्य को गैर-कानूनी बताते हुए उस पर रोक लगा दी।
अदालत ने कहा कि यह जमीन घोषित तौर पर वन भूमि है। एक अनुमान के मुताबिक अदालत के इस फैसले से करीब 10 लाख लोग और 1.5 लाख फ्लैट प्रभावित होंगे। बाजार सूत्रों की मानें तो इस प्रभावित संपत्ति की कुल कीमत करीब 25,000 करोड़ रुपये है। अदालत के इस आदेश से मौजूदा रियल एस्टेट परियोजनाओं के साथ ही आगामी परियोजनाएं भी प्रभावित होंगी।
आदेश के लागू होने से गोदरेज प्रॉपर्टीज, लोढ़ा समूह, रनवाल समूह, ओबेरॉय कंस्ट्रक्शंस जैसे डेवेलपर्स के प्रभावित होने का अनुमान है। इस फैसले के खिलाफ डेवेलपर सुप्रीम कोर्ट में अपनी गुहार लगा सकते हैं। एक स्वयं सेवी संगठन बांबे इनवायरनमेंटल एक्शन समूह ने 2002 में हाई कोर्ट में याचिका दायर कर वन भूमि को बिल्डर्स से बचाने के लिए कहा था।
इसके बाद 2006 में राज्य सरकार ने वन भूमि पर निर्माण कार्य को गैर कानूनी बताते हुए डेवेलपर्स को नोटिस जारी किया। यह नोटिस मुख्यत: घाटकोपर, भांडुप, मुलंड, ठाणे और कांदीवली इलाकों के डेवलपर्स को जारी किया गया।
इसके बाद इसके बाद डेवेलपर्स ने अदालत में याचिका दायर कर कहा कि बंबई नगर निगम (बीएससी) और ठाणे नगर निगम (टीएमसी) की नगरीय योजना में इस निर्माण कार्यों को या तो आवासीय परियोजना या फिर वाणिज्यिक परियोजना के तौर पर दर्ज किया गया है।
ताजा घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मुंबई स्थित एक बिल्डर ने बताया कि 'डेवेलपर्स किसी भी निर्माण से पहले ठीक से पड़ताल करते हैं। इसके अलावा 1967 और 1997 की नगर योजना में यह नहीं कहा गया है कि यह वन भूमि हैं। अब इसमें डेवेलपर्स की गलती नहीं है।'
ग्लोबल प्रॉपर्टी कंसल्टेंट के एक अधिकारी ने बताया कि मुंबई नगरीय क्षेत्र में मानचित्रण की सही-सही व्यवस्था नहीं है। उन्होंने कहा कि 'जानकारी का अभाव था और डेवेलपर्स ने उसकी उपेक्षा की। नगरीय प्रशासन राज्य का मामला है जबकि वन केन्द्र के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। इस कारण पूरी समस्या पैदा हुई है।'
उम्मीद अभी बाकी है
यदि इस क्षेत्र में आपने भी घर खरीदा है तो अभी से निराश होने की जरुरत नहीं है। फ्लैट मालिकों और बिल्डर्स के लिए उम्मीद की किरण अभी बाकी है। अदालत के फैसले के बाद राज्य के वन मंत्री बब्बनराव पाचपुते ने कहा कि सरकार अदालती फैसले के दायरे में रहते हुए जल्द ही इन घरों के नियमितीकरण के लिए नीति तैयार करेगी।
वन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कानून के तहत सरकार निर्माण कार्यों के नियमितीकरण के लिए डेवेलपर्स से जुर्माना देने के लिए कह सकती है। मुलुंड आवासीय संघ की तरफ से याचिका दायर करने वाले सांसद किरीट सोमय्या ने कहा कि 'सरकार को शीघ्र ही महाराष्ट्र निजी वन निर्माण कानून में संशोधन के लिए विधेयक लाना चाहिए और हजारों लोगों के हितों की रक्षा करनी चाहिए जिन्हें परेशानी का सामना करना पड़ेगा जबकि उनकी कोई गलती नहीं है।' उन्होंने कहा कि सरकार को ऐसे सभी निर्माण को नियमित करना चाहिए जिनकी अनुमति स्थानीय निकायों ने दी है।
सोमय्या ने दावा किया कि पूर्वी उपनगरीय क्षेत्र के विखरोली से लेकर मुलुंड और पश्चिमी उपनगरीय क्षेत्रों में कांदीवली और गोरेगांव इलाकों में करीब 1.25 लाख फ्लैट बने हैं। इनमें 10 लाख से अधिक लोग रहते हैं, जो अदालत के फैसले से प्रभावित होंगे। इसके अलावा करीब 25,000 करोड़ रुपये की संपत्ति नष्ट हो जाएगी।