बिहार विधानसभा चुनाव से तय होगी भाजपा की पतवार | आदिति फडणीस / April 24, 2015 | | | | |
छोटे एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के लिए वित्तीय सुविधा मुहैया कराने के लिए बने सूक्ष्म इकाई विकास एवं पुनर्वित्त अभिकरण (मुद्रा) के उद्घाटन के अवसर पर क्या किसी ने उस मौके पर उतारी गई तस्वीरों पर गौर किया? आपको यही उम्मीद होगी कि इस मौके पर एमएसएमई मंत्री कलराज मिश्र भी मंच पर मौजूद होंगे। मगर उन्हें तो आमंत्रित तक नहीं किया गया। मंच पर केवल दो शख्स मौजूद थे, एक खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और दूसरे वित्त मंत्री अरुण जेटली। जरा कुछ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की बेंगलूरु में आयोजित राष्टï्रीय कार्यकारिणी की बैठक को याद कीजिए। मंच पर केवल चार लोग मौजूद थे: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वित्त मंत्री अरुण जेटली, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और पार्टी के वयोवृद्घ नेता लालकृष्ण आडवाणी। जरा खुद से सवाल कीजिए कि मंच पर किन राज्यों का प्रतिनिधित्व था। जेटली और आडवाणी, दोनों गुजरात से ही सांसद हैं और वहां से कई बार चुने जाने के कारण एक तरह से उसी राज्य के हो गए तो वहीं मोदी और शाह दोनों जन्म से गुजराती हैं। इस तरह के वरीयता क्रम के निहितार्थों में भाजपा में किसी ने आवाज नहीं उठाई। यह पार्टी में खामोश भिनभिनाहट का विषय है।
मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति (एसीसी) में केवल प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ही हैं। मगर कुछ लोग जानते हैं कि पीएमओ जाने की राह में गृह मंत्री फाइलों को नहीं देखते। वह केवल पीएमओ से बाहर आने वाली फाइलों पर रस्म अदायगी के लिए हस्ताक्षर करते हैं, जब प्रधानमंत्री किसी पद पर अपनी पसंद से नियुक्ति कर देते हैं। मंगलवार को भाजपा संसदीय दल की बैठक होती है। कम से कम दो मौकों पर पार्टी के वरिष्ठï सदस्यों, जिनमें मंत्री भी शामिल हैं, उन्हें सार्वजनिक रूप से शर्मसार होना पड़ा। प्रधानमंत्री ने खुद सदन के पटल पर कहा कि उन्होंने स्वयं साध्वी निरंजन ज्योति को उनके रामजादे/हरामजादे वाले बयान के लिए लताड़ लगाई। यह सुलूक उस शख्स के साथ है, जिसने लोकसभा का चुनाव जीता। उनके पास खुद से यह सवाल पूछने का पूरा वाजिब हक है कि सरकार में आधे मंत्री वहां किस हैसियत से बने हुए हैं, रक्षा मंत्री राज्यसभा से हैं। मानव संसाधन विकास मंत्री, वित्त मंत्री, रेल मंत्री, वाणिज्य मंत्री, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री, तेल एवं प्राकृतिक गैस मंत्री, कोयला और बिजली मंत्री, वन एवं पर्यावरण मंत्री और सूचना प्रसारण मंत्री, ये सभी राज्यसभा से हैं।
कुछ सरसराहट सी होने लगी है।
आखिर इंडिया फाउंडेशन नाम के एक एनजीओ द्वारा आयोजित सम्मेलन में इतने सारे मौजूदा मंत्री क्या कर रहे थे? इंडिया फाउंडेशन के निदेशक शौर्य डोभाल एक देशभक्त भारतीय हैं। वह ज्यूस कैप के निदेशक भी हैं, जो खुद को उभरते हुए बाजारों में अवसंरचना निवेश पर केंद्रित प्रमुख वित्तीय माध्यम के तौर पर पेश करती है और डोभाल को भारत में प्रमुख निवेश कवायदों और सौदों की कमान संभालने वाला करार देती है। कंपनी की वेबसाइट पर उल्लेख है, 'हम निवेशकों को ऊंचा प्रतिफल देने और कंपनियों को उनके लिए बेहतरीन रणनीतिक सलाह देने की पूरी कोशिश करते हैं। अपने गठन के समय से अब तक हम 800 एमएम डॉलर से अधिक के शेयरों के लेनदेन को अंजाम दे चुके हैं। हम निवेशकों और कारोबारियों दोनों को उभरते हुए बाजारों की चुनौतियों और अवसरों के लिए एक साथ समाधान मुहैया कराते हैं।' आपके ऊपर लानत है, अगर आपने हितों के टकराव को लेकर आवाज उठाई।
यहां तक कि बहुत अजीब चीजें हो रही हैं। सुब्रमण्यन स्वामी ने भी राफेल विमान सौदे में सरकार को अदालत में घसीटने की धमकी दी। क्या वह झंडेवालान के संघ कार्यालय की शह के बिना ऐसा कहेंगे? एक ऐसा सौदा, जिसे मोदी सरकार अपनी खास उपलब्धियों में से एक मान रही है। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा, 'जब मैं वित्त मंत्री था तो वित्तीय सुदृढ़ीकरण के लिए मैंने वर्ष 2003 में एफआरबीएम अधिनियम पेश किया था। अगर अब इस कानून को कचरे की पेटी में डालने की जरूरत है तो डाल दीजिए।' उन्होंने कोलकाता में उस बजट के बारे में यह बात कही जिसमें वित्त मंत्री अरुण जेटली ने तीन वर्षों में राजकोषीय घाटे को 3 फीसदी के दायरे में लाने की योजना को ठंडे बस्ते में डालने का निश्चय किया। अब आगे दो घटनाक्रम पर सभी की निगाहें लगी हुई हैं। एक तो बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव, जो इस साल नवंबर में होने हैं। उसके बाद पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के लिए एक और कार्यकाल। इन दोनों में परस्पर संबंध हैं।
हर किसी का कहना है कि बिहार चुनाव पार्टी और सरकार के गणित को बदल देगा। पिछले दो-तीन चुनाव पार्टी के लिए बहुत अच्छे नहीं रहे हैं। जम्मू कश्मीर को लेकर खुद भाजपा नेताओं का कहना है कि टिकटों के गलत वितरण से कम से कम पांच सीटों का नुकसान हुआ, दिल्ली के बारे में कुछ न कहा जाए तो ही बेहतर है और महाराष्टï्र, जहां शिव सेना से अलग होकर अकेले चुनाव लडऩे के लिए मोदी और शाह को श्रेय दिया गया लेकिन पार्टी वहां भी बहुमत के आंकड़े से पीछे ही रह गई। लेकिन तब क्या होगा, जब भाजपा बिहार में सरकार बनाने में नाकाम होगी?
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