सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकरों ने ऋण वृद्धि की गति में भरोसा जताते हुए कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के विलय ने विस्तार करने का एक आधार दिया है। उनका कहना था कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का निजीकरण बिना किसी जल्दबाजी के निवेशकों के व्यापक आधार के लिए सरकार की हिस्सेदारी का विनिवेश करके किया जा सकता है।
इस वक्त कर्ज की बढ़ती मांग को देखते हुए चिंता की कोई बात नहीं है क्योंकि निवेश से जुड़े जोखिम की गारंटी के मानक और जोखिम प्रबंधन की स्थिति काफी बेहतर है। इन बैंकों ने पिछले प्रकरण से सबक भी सीखे हैं। सरकारी बैंक मुश्किल दौर का सामना करते रहे हैं। महामारी के दो सालों के कम आधार की तुलना में कर्ज की मांग में वृद्धि (सालाना 17.5 फीसदी की वृद्धि) देखी जा रही है। महामारी के दौर में ऋण पोर्टफोलियो का विस्तार एकल अंकों में हुआ।
सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण विषय पर हुई परिचर्चा के दौरान बैंक ऑफ बड़ौदा के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी संजीव चड्ढा ने कहा कि 5 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य के मुताबिक हमारी बैंकिंग संरचना का तंत्र थोड़ा अलग होना चाहिए और सरकार को निजीकरण पर जोर देना चाहिए। उनके मुताबिक दो सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण के जरिये यह प्रक्रिया शुरू करना सही कदम होगा।
नैशनल बैंक फॉर फाइनैंसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर ऐंड डेवलपमेंट के प्रबंध निदेशक राजकिरण राय जी का कहना है कि निजीकरण की अवधारणा दो बिंदुओं के चलते आई कि सरकारी बैंकों को पूंजी की जरूरत है और बैंकों की क्षमता पर चर्चा की जाती है। फिलहाल इनका प्रदर्शन वृद्धि, क्षमता और मुनाफे के मोर्चे अच्छा है। इसकी दो वजह सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का विलय और कोविड महामारी है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का आधार मजबूत बना हुआ है और ये बैंक सभी समस्याओं से उबरे हैं। इन बैंकों ने तकनीक को अपनाने की प्रक्रिया को अच्छी तरह भुनाया है। मई 2022 तक यूनियन बैंक ऑफ इंडिया के प्रबंध निदेशक और सीईओ रहे राय ने कहा कि इस वक्त निजीकरण का दबाव कम है। वह वर्ष 2020 में यूनियन बैंक में आंध्रा बैंक और कॉरपोरेशन बैंक के विलय में शामिल थे।
उनका कहना है कि सरकार एक या दो बैंकों की निजीकरण प्रक्रिया को बढ़ाकर यह समझने की कोशिश कर सकती है कि यह कैसे काम करता है। राय ने कहा कि अर्थव्यवस्था में आर्थिक विषमता की स्थिति को देखते हुए बैंकों के पूर्ण निजीकरण की प्रक्रिया में 10-15 साल भी लग सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) के चेयरमैन दिनेश खारा का कहना है कि संस्था का सक्षम होना जरूरी है और देश के बैंकिंग क्षेत्र में ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जब निजी बैंकों को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने राहत पैकेज दिया है।
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वहीं यूको बैंक के एमडी और सीईओ सोम शंकर प्रसाद ने कहा, ‘निजीकरण पर जोर देने की शुरुआत इस विचार के साथ हुई है कि निजी क्षेत्र सक्षम और बेहतर है और सार्वजनिक संस्था सक्षम नहीं है जबिक यह सच नहीं है। अगर आप किसी के लिए सक्षम तरीके से काम करने के लिए बेहतर माहौल तैयार करते हैं तब चीजें बेहतर दिशा की ओर बढ़ेंगी चाहे वह सार्वजनिक या निजी उद्यम क्यों न हो।’ प्रसाद ने कहा कि निजीकरण का फैसला सरकार को करना है और इस पर अमल विनिवेश की प्रक्रिया, संसाधनों को बढ़ाने और बैंकिंग क्षेत्र में अपनी उपस्थिति कम करके किया जा सकता है।
एसबीआई के चेयरमैन खारा ने कहा कि वर्ष 2008 में स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र के विलय और 2017 में पांच सहयोगी बैंकों के विलय के साथ एसबीआई समूह को मजबूत बनाने की प्रक्रिया की शुरुआत हुई, जिससे मदद मिली। उन्होंने कहा, ‘ये सभी छोटी इकाईं थीं और मूल बैंक के साथ-साथ एक-दूसरे के साथ भी प्रतिस्पर्द्धा कर रही थीं। इस तरह इन बैंकों को शुद्ध ब्याज मार्जिन में भी नुकसान हो रहा था।’