भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास का कहना है कि महंगाई दर लगातार ऊंचे स्तर पर बनी रहने से आर्थिक वृद्धि दर के लिए चुनौती खड़ी हो सकती है। दास ने आज कहा कि इस चुनौती से निपटने के लिए दक्षिण एशियाई देशों को मिलकर मूल्य स्थिरता के लिए काम करना चाहिए।
दास ने ‘दक्षिण एशिया की विकास की राह’ पर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के एक सम्मेलन में कहा, “हाल में जिंसों की कीमतों में नरमी और आपूर्ति व्यवस्था में सुधार होने से आने वाले समय में महंगाई में कमी आ सकती है। मगर महंगाई लगातार ऊंचे स्तरों पर बनी रही तो आर्थिक वृद्धि एवं निवेश के लिए जोखिम पैदा हो सकते हैं।” RBI गवर्नर ने कहा कि इस जोखिम को ध्यान में रखते हुए दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए मूल्य स्थिरता बनाए रखना एक जरूरी नीति होनी चाहिए।
महंगाई पिछले कई महीनों से आरबीआई के सहज दायरे के ऊपर रही है। बढ़ती महंगाई से चिंतित होकर आरबीआई ने भी 2022 में दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह ब्याज दरों में इजाफा शुरू कर दिया। RBI ने मई 2022 से ब्याज दरें बढ़ानी शुरू कर दी थी और पिछले कैलेंडर वर्ष में रीपो रेट में 225 आधार अंक का इजाफा कर चुका है।
दास ने कहा, ‘2022 की पहली तीन तिमाहियों में दक्षिण एशियाई देशों में खाद्य महंगाई औसतन 20 प्रतिशत से अधिक रही। इस क्षेत्र की तेल आयात पर काफी निर्भरता है जिस वजह से तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव से महंगाई दर भी घटती-बढ़ती रहती है।’
दास ने कहा, ‘महंगाई पर प्रभावी ढंग से काबू पाने के लिए विश्वसनीय मौद्रिक नीति के साथ आपूर्ति व्यवस्था निर्बाध बनाने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है। इनके अलावा राजकोषीय व्यापार नीति और प्रशासनिक उपाय भी काफी अहम हो गए हैं। हालांकि महंगाई नियंत्रित करने के लिए ये उपाय करने के साथ ही हमें कमजोर होतीं वैश्विक वृद्धि एवं व्यापारिक गतिविधियों के बीच आर्थिक वृद्धि की राह में पेश होने वाली चुनौतियों को लेकर भी सतर्क रहना चाहिए।’
दास ने माना कि कोविड महामारी और रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध के कारण दक्षिण एशिया की अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक असर हुआ है। उन्होंने कहा कि इन तमाम चुनौतियों से निपटने के लिए क्षेत्रीय सहयोग अहम हो जाता है। आरबीआई गवर्नर ने कहा, ‘ इस क्षेत्र के सभी देशों के लिए क्षेत्रीय सहयोग फायदेमंद हो सकता है। दक्षिण एशियाई देशों के बीच आपसी क्षेत्रीय व्यापार कुल क्षमता का केवल 20 प्रतिशत है। विश्व बैंक की गणना के अनुसार इस क्षेत्र में सालाना 44 अरब डॉलर का और व्यापार होने की गुंजाइश है।’
दास ने कहा कि दक्षिण एशिया के कुछ देशों के लिए भारी भरकम बाह्य ऋण भी एक बड़ी समस्या साबित हो रही है। कोविड महामारी से पहले निम्न एवं मध्य आय वाले देशों पर विदेशी ऋण का बोझ पहले ही अधिक था मगर महामारी के बाद यह और बढ़ गया। दक्षिण एशियाई देशों पर बाह्य कर्ज 2021 में बढ़कर 9.3 लाख करोड़ डॉलर हो गया, जो 2019 में 8.2 लाख करोड़ डॉलर था।