कोरोना की रफ्तार सुस्त पड़ते ही किसान आंदोलन की फिर से चर्चा जोर पकड़ने लगी। तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को किसानों के हित में न होने की बात करते हुए महाराष्ट्र सरकार ने इन कानूनों में बदलाव करने की घोषणा कर दी। कृषि कानूनों में संशोधन 5 जुलाई से शुरू हो रहे महाराष्ट्र विधानसभा सत्र में पेश किया जाएगा।
महाराष्ट्र के राजस्व मंत्री बालासाहेब थोराट ने कहा कि किसानों और कृषि उत्पाद विपणन समितियों (एपीएमसी) की सुरक्षा के लिए सरकार अपने कृषि कानून में संशोधन करेगी, क्योंकि तीन केंद्रीय कृषि कानून किसानों के हित में नहीं हैं। मसौदा कानून को 5 जुलाई से शुरू हो रहे महाराष्ट्र विधानसभा के मॉनसून सत्र में पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि हम राज्य कृषि कानून में संशोधन करना चाहते हैं, क्योंकि हमें लगता है कि केंद्र सरकार के कृषि कानून किसानों के हित में नहीं हैं। प्रस्तावित संशोधन कृषि उत्पाद विपणन समितियों (एपीएमसी) की सुरक्षा, किसानों की शिकायतों का निवारण और फसल व्यापार के दौरान किसानों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे।
पूर्व केंद्रीय मंत्री और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मुलाकात करके उन्होने कहा कि हम व्यापारियों के लिए लाइसेंस अनिवार्य करने का प्रावधान भी शामिल करेंगे, जो केंद्रीय कानूनों में नहीं था। उन्होंने कहा कि इस बारे में चर्चा की जा रही है। उन्होंने कहा कि इस बारे में सहकारिता मंत्री बालासाहेब पाटिल, कृषि मंत्री दादा भूसे और कृषि व सहकारिता राज्य मंत्री विश्वजीत कदम के साथ, मसौदा कानून पर चर्चा करने के लिए वे सभी शरद पवार से मिले और इसके बाद तय किया गया है कि मॉनसून सत्र में कानून संशोधन मसौदा पेश किया जाएगा। थोराट ने कहा कि हमने सहकारी बैंकिंग पर केंद्र के नए कानून पर भी चर्चा की, जो हमें लगता है कि सहकारी क्षेत्र को नुकसान पहुंचाएगा।
दूसरी तरफ आज पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से कोलकोता में मुलाकात करने के बाद भारतीय किसान संघ के नेता राकेश टिकैत ने कहा कि मुख्यमंत्री ने हमें आश्वासन दिया कि वह किसान आंदोलन का समर्थन करना जारी रखेंगी। बैठक के बाद ममता बनर्जी ने पिछले सात महीनों से उन्होंने (केंद्र सरकार) किसानों से बात करने की जहमत तक नहीं उठाई है। मेरी मांग है कि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं। उल्लेखनीय है कि केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कल कहा था कि सरकार आंदोलनकारी किसानों के साथ कृषि विधेयकों के अलावा अन्य विकल्पों पर बात करने को तैयार है। किसान पिछले साल नवंबर से तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं। तोमर ने कहा है कि किसान कृषि कानूनों पर तार्किक आधार पर अपनी चिंता लेकर आएंगे तो बात होगी।
नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद ने कहा है कि सरकार से बातचीत के लिए किसानों को तीनों कानूनों की वापसी की मांग के बजाय कानूनों में खामियां बताना चाहिए। चंद ने कहा कि अगर कोई दो चीज गलत है तो हमें बताएं, अगर कोई पांच चीजें, जो आपको स्वीकार नहीं हैं, तो वह भी हमें बताएं। मेरा मानना है कि अगर किसान यूनियन कानूनों पर चर्चा की इच्छा जताते हैं, तो यह किसान नेता राकेश टिकैत की ओर से बड़ा बयान होगा। गौरतलब है कि राकेश टिकैत ने 29 अप्रैल को कहा था कि किसान केंद्र सरकार से बातचीत के लिए तैयार हैं, मगर उन्होंने कानूनों की वापसी पर चर्चा का भी समर्थन किया।