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दिल्ली से लेकर पटना तक रियल एस्टेट के पुर्वाई झोंके

Last Updated- December 07, 2022 | 2:03 AM IST

भले ही दिल्ली सरकार ने आम आदमी को छत का सुख देने के लिए राजीव रतन विकास योजना के तहत 1 लाख मकान बनाने की घोषणा कर दी हो, लेकिन दिल्ली की बढ़ती जनसंख्या को देखते हुए 4 से 5 लाख मकानों की जरुरत है।


गौर किया जाए तो दिल्ली की 55 फीसदी जनसंख्या आज भी झुग्गी-झोपड़ी अनधिकृत और पुनर्वासित कालोनियों में बसर करती है। यही नहीं मकानों की कुल मांग में से 50 फीसदी से ज्यादा की मांग यमुना के दोनों किनारों से ही उठ रही है।

दिल्ली में प्रॉपर्टी के दाम आसमान छू रहे हैं। इसलिए आम आदमी की जेब में छत का नसीब लाने के लिए सरकार ने अब पहल करने का मन बनाया है। कुछ दिन पहले ही दिल्ली सरकार ने राजीव रतन आवास योजना शुरु की है। इस योजना में उन व्यक्तियों को आवास सुविधा प्रदान की जाएगी, जिनकी वार्षिक आय 60 हजार रुपये से कम हो।

इस बाबत दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का कहना है कि यह योजना आम आदमी के लिए है। इससे दिल्ली में हो रही आवासीय समस्या को कम किया जा सकेगा। हमारा लक्ष्य दिल्ली को 2010 तक झुग्गी-झोपड़ी मुक्त बनाना है। इस योजना के तहत बवाना और अन्य 11 स्थानों पर कम कीमत वाले 1 लाख मकानों का निर्माण किया जाएगा।

मकानों का निर्माण परंपरागत तरीके से हटकर मोनोलिथ कंक्रीट निर्माण तकनीक से किया जाएगा। इन मकानों का निर्माण चार मंजिलों वाले कॉम्प्लेक्स में किया जाएगा। इन मकानों में दो कमरे, एक बाथरुम और किचन होगा। निर्माण विशेषज्ञों का मानना है कि इस तकनीक से 1 लाख मकान बनाने पर सिर्फ 6 महीने लगेंगे जबकि परंपरागत तरीके से इतने ही मकान बनाने पर लगभग डेढ़ वर्ष का समय लगेगा। इस योजना में बनाए जा रहे मकानों का पंजीकरण जून में शुरु भी हो जाएगा।

लेकिन पंजीकरण केवल वही लोग कर सकेंगे जो दिल्ली की झुग्गी-झोपड़ियों में 1998 के बाद से रह रहे हैं। दिल्ली नगर निगम की स्थायी समिति के अध्यक्ष विजेन्द्र गुप्ता ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि इस तरह की योजनाओं से दिल्ली की आवासीय समस्याओं को खत्म नहीं किया जा सकता है। इस तरह की योजनाओं को चलाकर वास्तविक समस्या में पर्दा डालने का प्रयास किया जाता है।

शीला सरकार के चार साल पूरे हो चुके हैं और अगले साल उन्हें चुनाव में उतरना है । इसलिए इस तरह की योजनाओं को चलाकर आम आदमी के बीच में अपनी पैठ बनाने की कोशिश की जा रही है। इस बाबत दिल्ली में कार्यरत सशक्त नाम के एनजीओ के पदाधिकारियों का मानना है कि राष्ट्रमंडल खेलों के नजदीक आने के साथ भारी रोजगार और जीविका की तलाश में लोग बड़ी संख्या में दिल्ली आएंगे। इससे दिल्ली में आवासीय समस्या एक बार फिर से उठ खड़ी होगी।

इसके अलावा सरकार इस तरह की योजनाओं को चलाकर इन समस्याओं का स्थायी समाधान के बजाय तात्कालिक हल कर रही है। गुप्ता का कहना है कि इस तरह की योजनाएं तो पहले से ही डीडीए के एंजेंडे में थी। इनको चलाकर सरकार कोई नया काम नहीं कर रही है। वैसे तो दिल्ली सरकार ने अपने पिछले साल के बजट में भी संस्थागत कामगारों के लिए 26 हजार मकानों के निर्माण की योजना बनाई थी। लेकिन आज इनका कुछ अता-पता नहीं है। 

आंकड़ो की तरफ अगर गौर किया जाए तो दिल्ली की जनसंख्या आधिकारिक तौर पर 1991 की 85 लाख से बढ़कर 2007 में लगभग 166 लाख हो गई है। इसके 2012 तक  2 करोड़ के आंकड़े को पार करने की संभावना है। निश्चित तौर पर आने वाले समय में मकान की मांग में तीव्र वृद्धि होनी है। पिछली जनगणना में दिल्ली का जनसंख्या घनत्व 9294 व्यक्ति प्रति किलोमीटर था। जिसके 2010 के अंत तक बढकर 12 हजार होने की संभावना है।

First Published - May 28, 2008 | 10:56 PM IST

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