‘सर, हम सब हर रोज दफ्तर कब से आ सकेंगे?’ मेरे मोबाइल फोन पर आने वाली इस आवाज में याचना थी जो मैंने इससे पहले कभी नहीं सुनी थी। वह हमारी कंपनी की सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले कर्मचारियों में से एक थीं और उन्हें उनकी परिपक्वता तथा आंतरिक सहयोगियों के साथ-साथ बाहरी पक्षों से संतुलित ढंग से निपटने के लिए जाना जाता था।
मैं चकित था। मैं यह मानकर चल रहा था कि उन महिला जैसा कोई व्यक्ति तो इस बात से खुश होगा कि कि उसे रोज मुंबई की भीड़भरी ट्रेनों में सहयात्रियों के साथ धक्का-मुक्की करते दो घंटे का सफर करके रोज काम पर नहीं आना पड़ रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो मैं यह आशा कर रहा था कि वे घर से काम करने की उस व्यवस्था से काफी खुश होंगी जिसके हम सब बीते कुछ समय में आदी हो गए हैं। निजी तौर पर मुझे इन दिनों वीडियो कॉन्फ्रेंस पर होने वाली समीक्षाएं और विचारोत्तेजक बैठकें बहुत रास आने लगी थीं। कई दिन तो मुझे 15-20 अलग-अलग सहकर्मियों के साथ पांच से साढ़े पांच घंटे तक की बैठक करनी पड़ीं। इतना ही नहीं रोज एक-एक घंटे गाड़ी चलाकर दफ्तर जाने और आने से मिलने वाली राहत भी मेरे लिए बहुत सुखद थी। परंतु जाहिर है कि घर से काम करने की व्यवस्था को हर किसी ने इसी नजर से नहीं देखा। इन बातों ने मुझे घर से काम करने की व्यवस्था के सामाजिक प्रभाव पर सोचने पर विवश किया।
महज एक वर्ष पहले यदि किसी ने मुझसे कहा होता कि वह कुछ दिनों तक घर से काम करना चाहता है तो हम सब यह मान बैठते कि वह कुछ आराम करना चाहता है, घर पर थोड़ा टेलीविजन देखना चाहता है, अपनी ईमेल देखना चाहता है और शायद दोपहर के खाने के बाद एक झपकी मारना चाहता है। जो लोग महीने में एक से ज्यादा बार ऐसा करते उनके बारे में यह राय बन जाती कि इन्हें समय से पहले सेवानिवृत्ति दे दी जानी चाहिए।
मेरा अंदाजा है कि हम कौन हैं इसके बारे में हमारी राय भी इस बात से तय होती थी कि हमारा कार्यालय शहर के किस हिस्से में है, हमारे कार्यालय या कंपनी ने किस तरह की पोशाक निर्धारित की है और यह भी कि हम किस मॉडल की कार से काम पर जाते हैं।
लोगों ने जो संपत्ति एकत्रित की उसमें अचल संपत्ति की आसमान छूती कीमतों का भी काफी योगदान था। अचल संपत्ति की कीमतें इसलिए बढ़ीं क्योंकि ऑफिस की जगह की मांग तेजी से बढ़ी। यदि घर से काम करने की व्यवस्था के कारण वह मांग 50 फीसदी भी कम हुई तो इससे लोगों की जुटाई गई संपत्ति में भी बड़े पैमाने पर कमी आएगी।
इससे पहले कि हम और अधिक निराश हो जाएं, यह ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है कि अमेरिका और यूरोप के शहरों से ऐसे संकेत सामने आ रहे हैं कि नीतिगत तौर पर लागू और सरकार द्वारा प्रवर्तित घर से काम करने की व्यवस्था से धीरे-धीरे निजात पाई जा रही है। दूसरी ओर दुनिया की शीर्ष कंपनियों ने ऐसी घोषणाएं करनी शुरू कर दी हैं कि वे अपने एक तिहाई या आधे कर्मचारियों से घर से काम कराने को स्थायी व्यवस्था में परिवर्तित करने जा रही हैं। कोरोनावायरस महामारी समाप्त होने के बाद भी यह व्यवस्था लागू रहेगी। मानवता के इतिहास पर नजर डालें तो पहले जब प्लेग और कॉलरा जैसी महामारी आईं, प्राकृतिक आपदाएं आईं और यहां तक कि विश्व युद्ध हुए तब भी दुनिया उसके बाद या कहें उसके कारण ही दुनिया नई दिशाओं में आगे बढ़ी।
लंबे समय तक घर से काम करने की इस व्यवस्था के कारण क्या कुछ अच्छे बदलाव भी आ रहे हैं? यकीनन। कोरोनावायरस के कारण लागू सामाजिक पृथक्करण और व्यापक तौर पर घर से काम करने पर बढ़ते जोर के कारण इंटरनेट आधारित तकनीक अपनाने की गति बहुत तेज हुई है। अब सामाजिक, आधिकारिक और मनोरंजक कार्यक्रम भी ऑनलाइन आयोजित हो रहे हैं। इसके साथ ही वित्तीय सेवाओं को ऑनलाइन अपनाने का काम भी बहुत तेजी से हो रहा है। फिर चाहे मामला भुगतान व्यवस्था को या शेयर कारोबार का। छोटे कारोबारी ऋणों का भी ऑनलाइन विस्तार हो रहा है। इसका अर्थ यह भी है कि आने वाले दिनों में हमारी बैंक शाखाओं की तादाद कम हो सकती है लेकिन इससे यह संकेत भी निकलता है कि बड़ी तादाद में लोग कम लागत वाली बेहतर सेवाओं का इस्तेमाल कर पाएंगे।
जब घर से काम करने और कृत्रिम मेधा आधारित इन तकनीक का मिश्रण चिकित्सा सेवा उद्योग और न्याय व्यवस्था में भी राह बनाएगा और तब हम अधिक उपयुक्त दर पर स्वास्थ्य सेवा और तेज गति से न्याय हासिल कर सकेंगे।
कारोबारों के पास भी अवसर होगा कि वे न केवल अपने शहर और देश की प्रतिभाओं का इस्तेमाल करें बल्कि वे दुनिया में कहीं से भी लोगों को काम पर रख सकते हैं। दुनिया न केवल आपको प्रतिभा मुहैया कराएगी बल्कि पूरी दुनिया एक बाजार में बदल जाएगी। मैं यह कल्पना नहीं कर पा रहा हूं कि वीजा और पासपोर्ट की मौजूदा व्यवस्थाओं का क्या होगा क्योंकि कई देश इनका इस्तेमाल अपने नागरिकों के रोजगार सुरक्षित करने के लिए करते हैं।
इन सारी बातों पर विचार करते हुए मुझे अपने परिवार का एक उदाहरण ध्यान आया जो शायद घर से काम करने को लेकर एक सच्चा और बड़ा सकारात्मक संकेत देता है। मेरी छोटी मौसी ने मद्रास विश्वविद्यालय से गणित में बीए किया और उन्हें उस वर्ष शीर्ष स्थान पाने के लिए स्वर्ण पदक दिया गया। जल्द ही उनका विवाह हो गया और उन्होंने अपना जीवन बच्चे पालने में बिता दिया। वह किसी नौकरी की तलाश नहीं कर सकीं क्योंकि वह और 1950 के दशक का कस्बाई भारत किसी विकल्प के बारे में सोच भी नहीं सकता था।
मैं सोचता हूं कि अगर मौसी आज किसी शीर्ष विश्वविद्यालय की गणित की सबसे बेहतरीन छात्रा होतीं तो उन्हें आसानी से ऐसा जीवन मिलता जहां वे बच्चों का ध्यान भी रख सकती थीं और घर से काम करने की बदौलत बेहतरीन नौकरी भी कर सकती थीं जहां उनकी बुद्धिमता का पूरा इस्तेमाल होता।
ऐसे में शायद घर से काम करने की व्यवस्था सही मायनों में लाखों भारतीय महिलाओं के लिए अवसरों का भंडार ला रही है जबकि अब तक उन्हें अपने मां होने के दायित्व और पेशे में से किसी एक को चुनना होता था। भारतीय समाज में एक नया सबेरा हो रहा है जहां महिलाओं के लिए ज्यादा और नए अवसर हैं।
(लेखक इंटरनेट उद्यमी हैं)