चाहे आप ए. आर. रहमान के बहुत बड़े प्रशंसक न भी हों तो भी आपके लिए यह मुश्किल होगा कि आप इस संगीत निर्देशक की धुनों से प्रभावित हुए बिना रह सकें।
संगीत की दुनिया में इनके महत्त्व को दरकिनार करना मुमकिन नहीं। म्यूजिक चैनलों और रेडियो स्टेशनों में जब रहमान का संगीत बजता है तो यह लोगों को किस कदर झूमने पर मजबूर कर देता है, इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके संगीत की लोकप्रियता कितनी है।
देर रात रेडियो पर अक्सर रहमान का वह गीत ‘तू ही रे…’ गुदगुदाने के लिए तैयार होता है जिसे मणिरत्नम की फिल्म बॉम्बे से लिया गया है। और सुबह की शुरुआत होती है रहमान के लेटेस्ट गीत ‘पप्पू कांट डांस…’ से जिसे सुनते ही पांव खुद ब खुद थिरकने लगते हैं।
मैंने इन्हीं सब बातों के दम पर कहा कि चाह कर भी रहमान को संगीत की दुनिया में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पर शायद मेरी यह दलील मेरे साथ काम करने वाले एक शख्स को सही नहीं लगी। उन्होंने सिर हिलाते हुए कहा, ‘रहमान में अब पहले की तरह जादू नहीं रह गया है। उनके संगीत में अब दोहराव देखने को मिलता है। इसमें कोई नयापन नजर नहीं आता।’
उसकी इस बात को काटने के लिए मेरे मन में पहला जो विचार कौंधा वह खुद रहमान का ही बयान था जो उन्होंने एक संगीत मैगजीन को दिया था, ‘मुझे कोई एक ऐसा उदाहरण दीजिए जहां मेरे गीतों में पुराने गीतों का दोहराव नजर आता हो।’ इसी मैगजीन को दिए गए साक्षात्कार में रहमान ने कहा था कि किसी संगीत निर्देशक के स्टूडियो में तैयार हरेक धुन उसके लिए खास मायने रखता है और उसे तैयार करने में पूरी टीम घंटों तक मेहनत करती है।
म्यूजिक और प्रोडक्शन कंपनी फैटफिश बैंड पर एक रियल्टी शो तैयार कर रही है और इसके प्रचार के लिए रहमान पिछले दिनों दिल्ली आए थे और तब उन्होंने हमसे मिलने के लिए हामी भरी थी। पर इससे पहले उन्होंने हम से एक वादा भी लिया ‘आप आए दिन पूछे जाने वाले सवाल नहीं करेंगे और कृपया कर सवालों की लड़ी न लगाएं यानी सवाल कम ही होने चाहिए।’
पर जब मैं उनके पास पहुंची तो मेरे पास सवालों की लंबी सूची थी और यह देखकर वह थोड़े नाखुश थे और इसका अंदाजा मैं आसानी से लगा सकती थी। कई बार वह झांक कर यह देखने की कोशिश भी कर रहे थे कि मैं उनसे आगे कौन से सवाल पूछने जा रही हूं।
सवाल के बीच में मैंने उनसे एक बार कहा कि यह तो बस एक शुरुआत हैं और मैंने अब तक उनसे असल सवाल पूछने शुरू ही नहीं किए हैं। यह सुनकर उन्हें बड़ा अचरज हुआ और वह तपाक से पूछ बैठे, ‘तो आपके पास और कितने सवाल बचे हैं?’ रहमान के बारे में एक बात जिक्र करने लायक है जिसे वह खुद भी मानते हैं कि मीडिया के लोगों से मिलने में वह खुद को बहुत सहज नहीं पाते।
संगीत के यह उस्ताद धुनों के साथ खेलने में भले ही कितने ही माहिर क्यों न हो पर मीडिया के सवाल उन्हें बोल्ड कर ही देते हैं। यही वजह है कि बात के दौरान मैंने कई दफा कोशिश की कि वे अपने निजी जीवन के बारे में, अपने बारे में, संगीत के बारे में खुलकर बात करें, कुछ बताएं, लेकिन उन्होंने काफी सोच समझकर कम ही जवाब देना बेहतर समझा।
रहमान भूरे रंग की जैकेट और जींस में काफी फब रहे थे और हमने उनसे यह पूछा कि जब उन्हें मीडिया के सामने आने में इतना संकोच होता है तो आखिर उन्होंने हाल के दिनों में रियल्टी कार्यक्रमों, टेलीविजन प्रोग्राम और पीआर गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू क्यों किया? इस सवाल के जवाब में उनके चेहरे पर बस एक हंसी दिखी और कुछ नहीं।
फिलहाल वह फैटफिश के एक कार्यक्रम ‘द बिग बैंड’ को प्रमोट करने में जुटे हैं जिसका प्रसारण दूरदर्शन पर किया जाएगा और इसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, मलेशिया, सिंगापुर और श्रीलंका के बैंड को शामिल किया गया है।
मैंने उनसे पूछा कि आखिर क्या वजह है कि वह टेलीविजन के साथ अधिक जुड़ना चाह रहे हैं? उन्होंने जवाब दिया कि ऐसे कार्यक्रम उनके लिए यादगार की तरह रहेंगे जिसमें देश के 15 शहरों में मौजूद प्रतिभाओं को चुनने का उनके पास मौका होगा। उन्होंने कहा कि अगर ऐसे खास कार्यक्रम हों तो टेलीविजन से जुड़ना उन्हें पसंद है।
कुछ महीनों पहले भी उन्होंने एक टेलीविजन कार्यक्रम में हिस्सा लिया था जिसका प्रायोजन संयुक्त राष्ट्र ने किया था और इस कार्यक्रम का उद्देश्य संगीतकारों की चार टीमों को एक मंच पर लाना था जो अपनी खुद की बनाई धुनों के साथ लोगों से जुड़ सकें और स्त्री भू्रण हत्या, अशिक्षा, गरीबी और भुखमरी जैसे विषयों पर चर्चा कर सकें।
पर इस मुद्दे पर मैं खुद को उनसे यह पूछने से रोक नहीं पाई कि क्या यह अचरज वाली बात नहीं है कि ऐसे गंभीर मसलों पर चर्चा के लिए भी ग्लैमर का सहारा लेना पड़ता है? उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘मैं जितना समझता हूं शायद संगीत इसी का नाम है। यह किसी अपराधी को भी हंसने या रोने के लिए मजबूर कर सकती है। तो फिर इस माध्यम का इस्तेमाल गंभीर विषयों के हल के लिए क्यों न किया जाए?’
रहमान नई पीढ़ी के गीतकार और संगीतकारों को खुद से ज्यादा भाग्यशाली मानते हैं। वह कहते हैं, ‘अपने कॉलेज के दिनों में मैंने बैंड बनाया था। मैंने जब संगीत को अपने करियर के तौर पर चुना तो लोग मुझ पर हंसते थे कि क्या इससे रोजी रोटी कमाई जा सकती है। खुद मेरे परिवार को भी मेरे भविष्य को लेकर चिंता होती थी जबकि मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि संगीत से जुड़ी हुई है।’ उनका मानना है कि नए दौर के लिए कम से कम ऐसी कोई परेशानी नहीं है और संगीत में भविष्य कितना बेहतर हो सकता है, यह सभी समझते हैं।