धन की कमी से जूझेंगे
प्रो. बी. बी. भट्टाचार्य
कुलपति, जेएनयू
वैश्विक संकट पहले वित्तीय संकट से शुरू हुआ। अमेरिका में हाउसिंग लोन पूरी तरह से डिफॉल्ट होने की वजह से वहां सबप्राइम संकट शुरू हो गया। उसके बाद इसका असर बैंकों के साख पर भी पड़ा और फिर निवेश बैंक में भी यह संकट नजर आने लगा।
यह संकट फिर बढ़कर वित्तीय बाजार, स्टॉक मार्केट और म्युचुअल फंड तक आ गया। ऐसे में उद्योगों पर इस वैश्विक संकट का सीधा असर पड़ रहा है। कंपनियां भी इन बैंकों से अपने कारोबार के लिए पैसे लेती थीं। अब औद्योगिक ऋण के लिए मुश्किलें काफी बढ़ जाएंगी।
ऐसे में उन उद्योगों के शेयर पर भी प्रभाव पड़ेगा और उनके भाव कम होंगे। जब उद्योगों में निवेश की बेहतर गुंजाइश नहीं बन पाती तो दूसरे स्तर पर उसका सीधा असर औद्योगिक उत्पादन पर पड़ता है। जो लोग शेयर बाजार में पैसे लगाते हैं वही लोग उद्योगों में भी पैसे लगाते हैं अगर उनके पास पैसे की कमी होगी तो इंडस्ट्रियल फंड में भी कमी आ ही जाएगी।
दूसरी तरफ औद्योगिक विकास पर इसका असर ऐसे पड़ता है जब लोगों की खरीदने की क्षमता कम होने लगती है। लोग सबसे पहले जिंदगी के लिए जो बेहद जरूरी चीजें होती हैं उन्हीं के लिए खर्च करना चाहते हैं। ऐसे हालात में लोग लग्जरी चीजों की खरीदारी में बहुत कमी भी लाते हैं। जिन उद्योगों में लग्जरी चीजों का उत्पादन होता है वहां इस उत्पादन में कमी आने लगती है।
मंदी की स्थिति बनने से उद्योगों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है और कृषि क्षेत्र पर बहुत कम असर होता है। भारत में पिछले साल औद्योगिक उत्पादन दर इस महीने तक 10.9 थी और इस साल औद्योगिक उत्पादन दर बहुत कम होकर 1.3 प्रतिशत तक रह गई है। वैसे अब तक जो उद्योगों की स्थिति रही उसके लिए वैश्विक संकट ही बताया जा रहा है लेकिन उसके कुछ और भी घरेलू कारण हो सकते हैं।
सबसे ज्यादा इस संकट का असर कंज्यूमर डयूरेबल्स इंडस्ट्री पर पड़ने वाला है जैसे कि कार वगैरह की मांग घट रही है। आजकल बुनियादी ढांचे के विकास से जुड़ी जो योजनाएं हैं उसके ठप पड़ जाने से स्टील उद्योग की हालत बहुत खस्ता हो रही है। ये योजनाएं इसलिए बंद हो रही हैं क्योंकि बाजार में तरलता की कमी आ रही है। ऐसे में स्टील की मांग कम हो गई है।
स्टील एसोसिएशन का कहना है कि इस साल मांग में 20 प्रतिशत की कमी आ गई है। आप इस आर्थिक संकट के असर को हाउसिंग इंडस्ट्री पर भी देख सकते हैं। पैसे के अभाव में हाउसिंग प्रोजेक्ट का काम जब कम होगा तब इसका असर दूसरे चरण में सीमेंट इंडस्ट्री पर भी दिखने लगेगा।
कार में बड़े पैमाने पर स्टील का इस्तेमाल होता है। जब कार की मांग में कमी आएगी तो उससे स्टील की मांग भी प्रभावित होगी। निर्यात से संबंधित जो भी औद्योगिक उत्पादन हैं, वह बहुत प्रभावित होगी। यह असर धीरे-धीरे दिखने लगेगा। इससे जुड़े दूसरे उद्योग भी प्रभावित होंगे। यकीनन हमारे देश के कई ऐसे सेक्टर हैं जो वैश्विक अर्थव्यवस्था से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं तो उस पर आप असर देखेंगे ही।
शेयर बाजार से बड़े पैमाने पर विदेशी निवेशक पैसे निकाल रहे हैं ऐसे में कोई भी किसी कंपनी के आईपीओ पर पैसे नहीं लगाना चाहेगा। यही वजह है कि कई कंपनियां नए आईपीओ बाजार में नहीं ला रही हैं। अभी रिलायंस और टाटा के इश्यू के दाम भी बहुत कम पड़ गए हैं। अब छोटी कंपनियों को चलाने के लिए पैसों की कमी को झेलना पड़ेगा।
जब निवेश नहीं होगा तो अगले साल भी औद्योगिक उत्पादन में कमी आएगी। वैसे मंदी की व्यापकता कितनी है उस लिहाज से ही हमारे देश के उद्योगों पर इसका असर दिखेगा। वैसे अमेरिका के बारे में ऐसा कहा जा रहा है कि अगले साल दिसंबर तक मंदी की स्थिति बनी रहेगी तो ऐसे में हमारे देश के लिए अगले साल तक थोड़ी परेशानी का दौर तो बना ही रहेगा।
बातचीत: शिखा शालिनी
काबू में है वित्तीय हालत
चंद्रकांत बनर्जी
महानिदेशक, सीआईआई
इस बात की कम ही संभावना है कि उद्योगों के लिए वित्तीय संकट और ज्यादा हो जाएगा। हां थोड़े वक्त के लिए कुछ ठहराव आ सकता है। वैश्विक वित्तीय संकट से इनकार नहीं किया जा सकता। और दुनिया भर में इसका असर देखने को भी मिल रहा है।
ऐसे में भारत पर भी इसका कुछ न कुछ असर तो पड़ना ही है। बाजवूद इसके यहां पर हालात काबू में हैं। सरकार और नियामक संस्थाओं में बैठे लोग भी वक्त की नजाकत को देखते हुए सभी जरूरी कदम उठा रहे हैं। सरकार भी इसको लेकर खासी चिंतित नजर आ रही है।
दरअसल पिछले कुछ साल से चल रही विकास एक्सप्रेस पर सरकार किसी भी तरह से ब्रेक लगते नहीं देख सकती है और इसलिए हर मोर्चे पर कदम उठाए जा रहे हैं। पिछले दिनों दुनिया भर के बाजारों को धराशायी होते देखा गया। भारतीय बाजार भी इससे अछूते नहीं रहे। देसी सेंसेक्स भी घटकर आधा रहा गया है।
दरअसल, वैश्विक संकट के कारण अपनी स्थिति को संभालने की कोशिश में लगे विदेशी फंड मैनेजरों ने भारतीय शेयर बाजार में लगे पैसे यहां से निकाल लिए। नतीजतन, बाजार में गिरावट आना तय था। मौजूदा दौर में कई सेक्टरों की हालत खराब है। बैंकिंग क्षेत्र में उन बैंकों को नुकसान हुआ जिनका अमेरिका और ऐसे बाजारों में ज्यादा एक्सपोजर है जहां सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है।
बाजार में बहुत से लोगों ने एक बैंक के बारे में भी यही अफवाह उड़ाई क्योंकि उस बैंक का अमेरिकी बाजार में बड़े पैमाने पर एक्सपोजर है। हालांकि, दूसरे बैंकों का एक्सपोजर भी अमेरिका में है, लेकिन उस बैंक की तुलना में कम है। वैसे जिन लोगों ने भी उस बैंक के बारे में अफवाहें उड़ाई थीं, वे सब निर्मूल साबित हुईं। बैंक पूरी तरह सुरक्षित हैं।
और इस बात का आश्वासन न केवल बैंक बल्कि केंद्रीय बैंक और वित्तीय व्यवस्था से जुड़े दूसरे अधिकारी भी दे चुके हैं। जहां तक तरलता की बात है तो वह भी कम नहीं दिख रही और अगर कहीं भी कुछ कमी है तो उसको दुरुस्त भी किया जा रहा है।
जहां तक नकदी के संकट की बात है तो सरकार ने पिछले कुछ दिनों में इस समस्या को समझते हुए कुछ कदम उठाए हैं। साथ ही कि इस समस्या से निजात पाने के लिए और भी जरूरी कदम उठाने का आश्वासन दिया है। केंद्रीय बैंक ने पिछले कुछ दिनों में नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) और फिर रेपो रेट में कमी की है।
इस कदम को उठाए जाने की बेहद सख्त जरूरत थी और उद्योग जगत ने भी इस कदम का स्वागत भी किया। वास्तव में इस पूरी कवायद के चलते उद्योग जगत को फायदा पहुंचेगा। कुछ जानकार पहले दो चीजों को संकट की अहम वजह मान रहे हैं। पहला तो यह कि बाजार में नकदी की कमी है और दूसरा यह कि बैंक कर्ज देने में डरे हुए हैं।
लेकिन सीआरआर और रेपो रेट में कमी से बाजार में तरलता बढ़ेगी और इस तरह की आशंकाएं बाजार से खत्म होंगी। इसके अलावा सरकार हर मोर्चे को चाक-चौबंद करने में जुटी है। हाल ही में सरकार ने म्युचुअल फंडों के भुगतान के लिए भी 20,000 करोड़ रुपये की नकदी का इंतजाम किया है। इस कदम की भी सराहना की जानी चाहिए।
कर्ज सस्ता होने से रियल एस्टेट जैसे क्षेत्र को कुछ सहारा मिलने की उम्मीद है। जिन कंपनियों ने अपने पेंशन फंड को बाजारों में लगा रखा था, उनकी स्थिति भी खराब रहेगी। वैसे आमतौर पर कम कंपनियां ही ऐसा करती हैं। जहां तक आम निवेशकों की बात है तो फिलहाल वे ‘देखो और इंतजार करो’ की नीति को ही अपनाएंगे।
आखिर में औद्योगिकी जगत की बात करें तो जो ‘नकदी का संकट’ चल रहा है, वह जल्द खत्म हो जाएगा और फिर से ‘अच्छे दिन’ आएंगे। मुझे नहीं लगता कि आने वाले दिनों में उद्योग जगत के सामने कोई बहुत बड़ा वित्तीय संकट गहराने वाला है।
बातचीत: प्रणव सिरोही