चल पड़ेंगे थमे कारोबार
धर्मकीर्ति जोशी
प्रमुख अर्थशास्त्री, क्रिसिल
छठे वेतन आयोग को लागू करने से भारतीय अर्थव्यवस्था पर जाहिर सी बात है असर तो पड़ेगा ही पड़ेगा। ज्यादा उम्मीद तो यही है कि यह असर उद्योग जगत के लिए राहत का सबब बनकर आएगा।
पहली बात तो यह है कि इसकी वजह से कंज्यूमर डयूरेबल्स यानी उपभोक्ता वस्तुओं और कारों व बाइक्स के बाजार का काफी भला हो सकता है। यह सेक्टर पिछले काफी वक्त से महंगाई और मंदी की मार झेल रहा है।
लेकिन अब छठे वेतन आयोग को लागू करने के बाद इसमें तेजी की उम्मीद जगी है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इसके तहत सरकारी कर्मचारियों के वेतन में तो इजाफा होगा ही होगा, साथ ही उन्हें 2006 के बाद से बकाया भी मिलेगा। इसे लेकर केंद्र सरकार में काफी खींच-तान मची थी।
वित्त मंत्रालय इस सिफारिश को इसी साल से लागू करवाना चाहता था। और तो और बकाए का पैसा भी वह कर्मचारियों को सीधे न देकर उनके पीएफ अकाउंट में जमा करवाना चाहता था, लेकिन सरकार ने उसकी दोनों बातों को नजरअंदाज कर दिया। अब सरकारी बाबुओं को बकाए का मोटा पैसा भी मिलेगा। साथ ही, त्योहारों का मौसम भी आने वाला है।
ऐसे में पूरी उम्मीद है कि दशहरे और दीवाली के सीजन में टीवी, फ्रिज और कारों की डिमांड में काफी तेजी आ सकती है। पिछले कई दिनों इस सेक्टर को काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा था। इसकी वजह है मंदी और महंगाई का दौर। लोगों के लिए पैसे बचाना काफी मुश्किल हो चुका है। महंगाई बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है और मंदी की वजह से लोन मिलना भी काफी मुश्किल हो गया है।
कई विश्लेषकों के मुताबिक इससे महंगाई और ज्यादा बढ़ जाएगी, लेकिन मेरी मानिए इससे ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। अगर पड़ेगा भी तो वह एक बार होगा। इसके साथ-साथ जो बाजार में पैसा आएगा, उसका भी रिजर्व बैंक की कड़ी मौद्रिक नीति की वजह से ज्यादा असर नहीं पड़ेगा। इस काम में बैंक द्वारा हाल में सीआरआर और रेपो रेट किया गया इजाफा काफी हद तक काम आ सकता है।
इनके जरिये रिजर्व बैंक बाजार में मौजूद ज्यादा तरलता को सोख सकता है। साथ ही, अब तो राज्य सरकारों ने भी केंद्र सरकार की तर्ज पर छठे वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक ही अपने कर्मचारियों की तनख्वाह में इजाफा करना शुरू कर दिया है।
इससे जाहिर सी बात है कि सरकारी खजाने पर बोझ तो पड़ेगा ही, लेकिन इसकी वजह से मांग में भी काफी इजाफा आ सकता है। इस बात का इंतजार कंपनियों को लंबे समय से था। हो सकता है कि सरकारी खजाने पर पड़े इस बोझ का असर अभी कुछ वक्त लोगों को महसूस होगा, लेकिन इसकी वजह से मांग में हुए इजाफे को नजर अंदाज करना काफी मुश्किल है। काफी वक्त से बाजार मंदा पड़ा हुआ है।
लोगों के पास पैसा नहीं है, जिससे वह खरीदारी या निवेश कर सकें। ऐसे में इस आयोग की सिफारिशों को मान लेने से कम से कम बाजार में कुछ पैसा तो आएगा। यह मंदी से परेशान कंपनियों के लिए राहत के झोंके के रूप में आ सकता है।
जहां तक बात सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने की है, तो ऐसा हर वेतन आयोग के साथ होता आया है। अभी पिछले ही वेतन आयोग की सिफारिशों को मानने से सरकार की हालत पतली हो गई थी। अब हर कदम के साथ कुछ खतरे तो जुड़े ही होते हैं।
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भरत झुनझुनवाला
अर्थशास्त्री
यह सही है कि लोगों के पास ज्यादा पैसा आने से बाजार में मांग बढ़ जाएगी लेकिन जो पैसा कर्मचारियों को दिया जाता है, वह टैक्स वसूलने के लिए दिया जाता और टैक्स वसूला जाएगा तो मांग घट जाएगी। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि मैं 100 रुपये की जगह अब 150 रुपये टैक्स दूंगा तो जाहिर सी बात है मेरी क्रय शक्ति घटेगी।
बहरहाल, देश की अर्थव्यवस्था पर इस छठे वेतन आयोग का जो भी प्रभाव पड़ेगा वह इस बात पर निर्भर करेगा कि जिससे टैक्स वसूला जा रहा है, उसे कितना घाटा होता है और जिसे पैसा भुगतान किया जा रहा है, उसे अधिक आय मिलने से बाजार में मांग कितनी बढ़ती है।
मेरा मानना है, क्योंकि सरकारी कर्मचारियों की खपत में वृध्दि होगी और टैक्स वसूलने से खपत में कटौती ज्यादा होगी इसलिए कुल मिलाकर छठे वेतन आयोग का प्रभाव नकारात्मक ही रहेगा। छठे वेतन आयोग के लागू होने के बाद साल 2008-09 में देश के राजकोष पर लगभग 12,561 करोड़ रुपये का भार पड़ेगा। यह रकम काफी कम अनुमानित की गई है।
इस साल सिंतबर महीने से सिफारिशें लागू की जाएंगी और अगर इस रकम को सही मान कर चले तो अगले साल सहज ही यह दोगुना हो जाएगा। दूसरी बात कि इस रकम में पेंशन नहीं शामिल किया गया है। तीसरी बात जो काफी महत्वपूर्ण भी है वह यह कि केंद्र सरकार द्वारा वेतन वृध्दि करने के साथ-साथ राज्य सरकारें और सार्वजनिक इकाइयां भी वेतन वृध्दि करेंगी।
इस साल राजकोष पर 12 हजार करोड़ रुपये का भार पड़ता है तो वह अगले साल 24 करोड़ रुपये हो जाएगा और इसमें पेंशन की रकम जोड़ दी जाए तो वह करीब 33 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगी। इसके अलावा, इसमें राज्य सरकार द्वारा वेतन वृध्दि को भी जोड़ दिया जाए तो वह करीब 100 हजार करोड़ रुपये के आसपास पहुंच जाएगा।
आप इस अनुमानित आंकड़े से सहज ही यह अंदाजा लगा सकते हैं कि इस वेतन आयोग का देश की अर्थव्यवस्था और किस तरह और कितना प्रभाव पड़ेगा। निस्संदेह इससे बुनियादी ढांचे और सामाजिक क्षेत्रों से जुड़ी भविष्य की परियोजनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। लेकिन हमें यहां बुनियादी संरचना को दो हिस्सों में बांट कर समझने की जरूरत है।
ग्रामीण व अर्ध्दशहरी इलाकों में पानी, बिजली, टेलीफोन, सफाई आदि बुनियादी सुविधाएं सरकारी खर्चों पर ज्यादा निर्भर करती हैं। यहां सार्वजनिक निजी भागीदारी यानी पीपीपी मॉडल नहीं चलता है। ऐसे में ग्रामीण इलाकों और देश की आम जनता पर वेतन आयोग का नकारात्मक प्रभाव पड़ना लाजमी है। लेकिन शहरी इलाकों में सरकार पीपीपी मॉडल पर काम करती है, जिस पर उतना असर नहीं पड़ेगा।
सरकारी कर्मचारियों को कार्यकुशलता के आधार पर वेतन बढ़ोतरी करना चाहिए। सिर्फ वेतन आयोग के जरिए वेतन बढ़ोतरी करना खतरनाक साबित हो सकता है। सरकार को चाहिए कि वह कर्मचारियों के काम का सही आकलन कर, उसके प्रदर्शन के आधार पर वेतन बढ़ोतरी करे। देश की औद्योगिक विकास दर और आर्थिक विकास दर पर भी इस छठे वेतन आयोग का प्रतिकूल असर पड़ेगा।
अगर सरकार वेतन बढ़ाने के बजाए देश में सड़क बनवाने और बुनियादी सुविधाओं पर खर्च करती तो वह ज्यादा फायदेमंद होता और इससे समाज और देश की अर्थव्यवस्था ज्यादा विकास करती। इस वक्त सरकार पूरी तरह चुनावी तैयारी में जुटी हुई है और वह सरकारी कर्मचारियों को नोट देकर वोट बनाने का काम कर रही है।
बातचीत: पवन कुमार सिन्हा