राह मे और भी हैं मुश्किलें
सुनील जिंदल
सीईओ, एसवीपी ग्रुप
मुझे लगता है कि बाजार में जब किसी भी चीज के लिए नकारात्मक संदेश फैल जाता है तब उसके लिए सकारात्मक दौर आने में थोड़ा वक्त तो लगता ही है, यह आप भी मानेंगे।
लोगों के दिमाग में रियल एस्टेट को लेकर नकारात्मक विचार तो बढ़ ही रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक ने लोन को सस्ता करने के लिए ब्याज दर को कम करने के जो कदम उठाए हैं, वे सही हैं। लेकिन उसके ज्यादा असर के लिए यह जरूरी है कि इस प्रक्रिया को लगातार बनाए रखा जाए।
अगर बैंकों की यह प्रक्रिया लगातार नहीं चलती रही, तो फिर कोई फायदा नहीं होगा। यह प्रक्रिया भले ही थोड़ी धीमी हो लेकिन लगातार यह खबर आनी चाहिए की लोन सस्ते हो रहे हैं। इसकी वजह से बाजार में भरोसा पैदा होगा। यह भरोसा ग्राहकों को भी होगा। अगर ऐसा होता है तो अगले महीने या आने वाले कुछ महीनों में ही स्थिति में सुधार नजर आएगा।
अभी तक रिजर्व बैंक ने जो राहत दी है उससे इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कंपनियों को राहत मिली है। बिल्डर्स के स्तर पर राहत का कोई असर महसूस तो नहीं हो रहा है। अगर बैंक राहत देने की प्रक्रिया को लगातार जारी रखते हैं तभी इसका फायदा मिल पाएगा।
अभी भारतीय रिजर्व बैंक ने जो कदम उठाएं हैं उससे इन्फ्रास्ट्रक्चर से जुड़ी बड़ी कंपनियों, मसलन स्टील कंपनी और ऑटोपार्ट मेकर जैसी कंपनियों पर इसका असर पड़ा है। अभी लोअर लेवल बिल्डर, मिडल क्लास मिड टाइम बिल्डर और स्मॉल टाइम बिल्डरों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। अगर यह प्रक्रिया जारी रहती है तो इसका असर स्मॉल और मिड टाइम बिल्डर पर भी दिखेगा और इन्हें भी राहत मिलेगी।
इस वक्त जिन कंपनियों के प्रोजेक्ट का निर्माण समय पर पूरा होने वाला है उनके लिए लोन मिलने में तो कोई दिक्कत नहीं है। जिन परियोजनाओं में अभी देरी है या जिन परियोजनाओं पर निर्माण कार्य अभी शुरू नहीं हुआ है उनके लिए मुश्किलें तो बहुत हैं। सारी बुनियादी समस्याएं तो उन्हीं बिल्डर्स के लिए होंगी।
देखिए रियल एस्टेट सेक्टर में समस्या तो एक ही है लेकिन उस समस्या के लिए हल भी कई तरह के हैं। अगर कोई 10 करोड़ रुपये का फ्लैट बेच रहा होगा उसकी समस्या का हल कुछ और होगा जो 50 लाख का फ्लैट बेच रहे हैं उनकी समस्या का हल दूसरा है और जो लोग 20 लाख का फ्लैट बेच रहें हैं उनकी समस्या का हल दूसरा है।
कहने का मतलब यह है कि इस एक समस्या के कई हल हो सकते हैं। जिसकी जितनी बड़ी देनदारी होगी उसके लिए मुश्किलें उतनी हीं ज्यादा होंगी। जितने भी बैंक हैं वे किसी भी बड़े प्रोजेक्ट के लिए पैसा नहीं लगाने की सोच रहे हैं।
यह दौर तो कभी भी खत्म हो सकता है। इसके लिए सरकार की पहल तो होनी ही चाहिए। लोग दुनिया में फैली आर्थिक मंदी की बात कर रहे हैं लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था में ऐसी कोई दिक्कत नहीं है।
बस बाजार में थोड़ा सकारात्मक संदेश जाना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि ब्याज दरों में कमी लाने की प्रक्रिया को निरंतर बनाए रखा जाए। इससे बाजार में तरलता आएगी। यह कहना कि रियल एस्टेट की प्राइवेट बैंक और विदेशी निवेशकों पर निभर्रता ही ऐसी मुश्किलों के लिए जिम्मेदार है यह सही नहीं होगा।
केवल कुछ बड़े खिलाड़ी ही ऐसे हैं जो विदेशी निवेशकों का कुछ सहारा लेते हैं। अब कुछ बड़े खिलाड़ियों के सामने समस्या आने से इस पूरे सेक्टर की मुश्किलें बढ़ जाएं, ऐसा तो नहीं हो सकता है न। हमारी दिक्कत यह है कि सबकी नजर बड़े खिलाड़ियों के ऊपर ही होती है और फिर उसी के हिसाब से विचार बना लिए जाते हैं जो बिल्कुल गलत है।
सरकार की यह कोशिश होनी चाहिए कि रियल एस्टेट में काम कर रही कंपनियों के आकार के मुताबिक उनको आ रही समस्याओं पर गौर करके ही नीतियां तय करें, तभी बदलाव मुमकिन है।
बातचीत: शिखा शालिनी
हालात में सुधार आना तय
एस. पी. गोयल
डीजीएम, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
निश्चित रूप से कर्ज के सस्ता होने से रियलिटी सेक्टर की स्थिति में सुधार आएगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने इसके लिए कवायद भी शुरू कर दी है।
कर्ज की उपलब्धता से रियल एस्टेट कंपनियों की एक बड़ी समस्या हल हो ही गई है। हालांकि यह देखना होगा कि यह वास्तव में कर्ज मिलने के रूप में यह कितना कारगर होता है। इसकी वजह यह है कि यह अलग-अलग बैंकों पर निर्भर करेगा।
बैंकों ने हाउसिंग सेक्टर, शिक्षण संस्थान, होटल, अस्पताल, कमर्शियल एस्टेट- मसलन मॉल के विकास पर ध्यान देते हुए ही पीएलआर और ब्याज दर में कटौती की है। सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों ने उधारी दरों में 0.5 से 0.75 फीसदी की कटौती की है। ब्याज दरों में भी कमी की गई है, इससे लोन की मांग बढ़ेगी। मांग अच्छी होगी तो इसका सीधा असर बुनियादी सुविधाओं के विकास और हाउसिंग प्रोजेक्ट पर भी पड़ेगा।
इससे जो आर्थिक मंदी आई है उसका असर भी कम होगा। ऐसे कदम से होम लोन सस्ता होना तय है ही। दरों में कटौती से मध्यमवर्गीय परिवारों पर ब्याज का बोझ कम होगा। रिजर्व बैंक के कदमों की वजह से ही बाजार में अब नकदी की कोई कमी नहीं है। वैसे रिजर्व बैंक ने पब्लिक सेक्टर के बैंक को सभी सेक्टर के लिए एक्सपोजर लिमिट तय की है।
रियल एस्टेट के लिए एक्सपोजर लिमिट को बढ़ाया नहीं गया है। इसकी वजह है कि हमारी अर्थव्यवस्था में नियामक नीतियों को बहुत तवाो दी जाती है। रिजर्व बैंक ने कमर्शियल प्रॉपर्टी पर बैंकों के रिस्क वेटेज को 150 फीसदी से घटाकर 100 फीसदी कर दिया है।
अब 20 लाख से ऊपर के हाउसिंग लोन के लिए प्रोविजनिंग की जरूरत को भी 1 फीसदी से घटाकर 0.4 फीसदी कर दिया है। पब्लिक सेक्टर के बैंक तो हर तरह से सहायता देने के लिए तैयार हैं। प्राइवेट बैंकों के बारे में तो कुछ कहा नहीं जा सकता है। हालांकि मुझे लगता है कि जिस तरह के विश्वास बहाली के उपाय किए जा रहें हैं उससे छह महीने में सुधार जरूर नजर आएगा।
आज बैंकों से खुदरा लोन मसलन पर्सनल लोन, कार लोन या होम लोन पर कोई रोक नहीं है। पहले भी छोटे और मझोले उद्योग और कृषि क्षेत्र के लिए न कोई समस्या नहीं थी और न ही अब है। बैंक तो रियल एस्टेट की स्थिति के सुधार के लिए हर तरह से सहयोग करने के लिए तैयार ही है।
लेकिन यह तो सबको समझना ही होगा कि जो नए प्रोजेक्ट जोखिम भरे होंगे या जिन कंपनियों की साख अच्छी नहीं होगी उनके लिए तो दिक्कत होगी ही। ऐसी हालात में बैंक जो भी कदम उठाते हैं वह तो सबके फायदे के लिए ही होगा। आजकल बैंकों के लिए यह जरूरी है कि उनके ग्राहक ऐसे प्रोजेक्ट लेकर आएं जिसकी साख अच्छी है।
अगर किसी कंपनी की अच्छी साख है तो बैंक अच्छे प्रोजेक्ट के लिए पैसा देने के लिए हमेशा ही तैयार हैं। बैंक भी कोई जोखिम तो नहीं उठाना चाहेगी न। आजकल कैपिटल मार्केट पर नियंत्रण तो है ही। ऐसा नहीं है कि कोई भी लोन लेने के लिए आए तो उसे लोन मिल जाएगा।
रियल एस्टेट की कंपनियां जो महंगे फ्लैट बना रही हैं उनके लिए लोन पाना मुश्किल होगा। मान लीजिए कोई कंपनी 10 करोड़ का फ्लैट बनाना चाहती है तो उसे 60 करोड़ का कर्ज तो लेना ही पड़ेगा जो आज के दौर में थोड़ा मुश्किल है। पूरी दुनिया में आर्थिक मंदी की वजह से लोगों के पास पैसा कम है तो जाहिर सी बात है महंगे फ्लैट के खरीदार इस वक्त बहुत कम हैं।
ऐसी हालात में महंगे फ्लैट वाले प्रोजेक्ट में पैसा लगाने वाली रियल एस्टेट कंपनियों के पैसे तो फंसेंगे ही और उनका नुकसान होने की संभावना भी ज्यादा होगी। इन कंपनियों को लोन मिलना भी बहुत मुश्किल हो जाएगा।
ऐसे में रियल एस्टेट कंपनियां अगर मध्यम वर्ग के लिए घर बनाएं जो थोड़े सस्ते हों तो लोग उसे हाथों-हाथ लेंगे। ऐसे फ्लैट के खरीदार अधिक होंगे तो रियल एस्टेट कंपनियों को नुकसान भी नहीं होगा और उन्हें लोन भी आसानी से मिलता रहेगा।
बातचीत: मनीश कुमार मिश्र
