होटल-ट्रैवल पर पड़ेगा असर
धर्मकीर्ति जोशी
प्रमुख अर्थशास्त्री, क्रिसिल
निस्संदेह स्वाइन फ्लू से देश की आर्थिक गतिविधियों पर असर पड़ेगा। अगर स्वाइन फ्लू लंबे समय तक बना रहता है तो फिर पूरी दुनिया भर में इसका दूरगामी प्रभाव देखने को मिलेगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की मानें तो स्वाइन फ्लू यानी एच1एन1 इन्फ्लूएंजा 21 देशों में घुसपैठ कर चुका है। दुनिया भर में अब तक इसके 1124 मामले सामने आए हैं। फिलहाल भारत स्वाइन फ्लू की चपेट से बाहर है। हमारे देश की आर्थिक गतिविधियों पर स्वाइन फ्लू का बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ रहा है।
अगर मान लेते हैं कि कुछ क्षेत्रों पर इसका असर पड़ भी रहा है तो वह नगण्य है। लेकिन यह आशंका जताई जा रही है कि इससे यहां पर्यटकों की आवाजाही पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो जिस तरह स्वाइन फ्लू पूरी दुनिया भर में हड़कंप मचाए हुए है, उससे पर्यटकों ने अपनी यात्राओं पर रोक लगा दी है।
पर्यटन उद्योग के साथ-साथ स्वाइन फ्लू का प्रतिकूल असर होटल इंडस्ट्री पर भी देखने को मिल सकता है। चूंकि विदेशों से आने वाले पर्यटकों की संख्या में कमी आ गई है, उस वजह से होटलों में होने वाली बुकिंग में भी गिरावट दर्ज की जा सकती है। इसके अलावा, स्वाइन फ्लू के कहर से ट्रैवल इंडस्ट्री भी हलकान है।
लोगों को यह हिदायत दी जा रही है कि अगर उनके पास कोई बहुत जरूरी काम नहीं है तो उनके लिए विदेश यात्राएं टालना ही बेहतर होगा। इससे आप सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि इन हिदायतों का ट्रैवल इंडस्ट्री पर क्या असर पड़ सकता है।
बहरहाल, अब देखने वाली बात यह है कि स्वाइन फ्लू का कहर कब तक जारी रहता है। अभी की मौजूदा परिस्थितियों को देखें तो स्वाइन फ्लू एक देश से दूसरे देश और दूसरे से तीसरे देश में प्रवेश कर रहा है। अगर इसी तरह इस फ्लू का कहर जारी रहा तो आने वाले दिनों में स्थिति और भी भयावह हो सकती है।
स्वाइन फ्लू कुछ वैसा ही मामला है जैसा कि कुछ साल पहले सार्स वायरस ने दस्तक दी थी और उसके बाद जिस तरह बर्ड फ्लू का आगमन हुआ था। आपको याद होगा कि जब सार्स और बर्ड फ्लू का कहर बरपा था उस दौरान भी दुनिया भर की आर्थिक गतिविधियों पर बेहद प्रतिकूल असर पड़ा था। बर्ड फ्लू को रोकने के लिए कई लाख मुर्गियों को मारा गया था।
हालांकि यहां देखने वाली बात यह है कि स्वाइन फ्लू कितने देर तक रहता है। अगर स्वाइन फ्लू कुछ दिनों का मेहमान रहता है तो उससे बहुत ज्यादा असर नहीं पड़ेगा लेकिन अगर यह लंबे समय तक बना रहता है तो निश्चित रूप से हमारे देश की आर्थिक गतिविधियों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।
स्वाइन फ्लू इस लिहाज से भी खतरनाक है क्योंकि यह न केवल मांस (सुअर) के सेवन से फैलता है बल्कि यह एक व्यक्ति से दूसरे में संक्रमण से भी फैल सकता है। एक तो हम लोग पहले से ही वैश्विक आर्थिक मंदी की मार झेल रहे हैं और उस पर इस तरह की बीमारी का फैलना किसी दुर्भाग्य से कम नहीं है। स्वाइन फ्लू ने आग में घी डालने का काम किया है।
स्वाइन फ्लू का विपरीत असर पर्यटन, होटल इंडस्ट्री और ट्रैवल इंडस्ट्री पर निश्चित रूप से देखने को मिलेगा। लेकिन इसके अलावा और किन क्षेत्रों पर स्वाइन फ्लू का प्रतिकूल असर पड़ेगा, इसके बारे में अभी बता पाना थोड़ी जल्दीबाजी होगी। कुछ दिनों के बाद ही पता चल पाएगा कि और कौन-कौन से सेक्टर प्रभावित होंगे।
कुल मिला कर कहा जाए तो स्वाइन फ्लू का असर कुछ वैसा ही देखने को मिलेगा जैसा कि सार्स और बर्ड फ्लू के दौरान देखने को मिला था। यह आशंका जताई जा रही है कि स्वाइन फ्लू का प्रतिकूल असर व्यापार पर भी पड़ सकता है। सरकार को चाहिए कि वे विदेशों से आने वाले यात्रियों की उचित चिकित्सकीय जांच कराएं, हवाईअड्डों पर रेडअलर्ट कर दें और साथ ही स्वाइन फ्लू के बारे में लोगों को आवश्यक जानकारियां मुहैया कराएं।
(बातचीत: पवन कुमार सिन्हा)
देश में फ्लू का नहीं होगा असर
डॉ. चरण जाधव
चिकित्सा निदेशक, बालाजी हॉस्पिटल
पिछले दिनों मैक्सिको में स्वाइन फ्लू के मामले सामने आने के बाद यह फ्लू अब तक अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, न्यूजीलैंड, कनाडा, स्पेन, इजरायल, स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया जैसे देशों में फैल चुका है लेकिन भारत में अभी तक स्वाइन फ्लू का एक भी मामला देखने को नहीं मिला है और न ही भारत में इसके फैलने के कोई आसार दिखाई दे रहे हैं।
रही बात कारोबारी गतिविधियों पर पड़ने वाले असर की तो इसका भारतीय अर्थव्यवस्था में कोई खास असर नहीं पड़ने वाला है। स्वाइन फ्लू सुअर के मांस खाने से होने वाली संक्रामक बीमारी है जिसका वायरस प्रभावित व्यक्ति के द्वारा तेजी से फैलता है लेकिन भारत में यह वायरस तेजी से नहीं फैल सकता है क्योंकि इस समय भारत के ज्यादातर हिस्सों में ताममान 40 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच रहा है, गरम हवाएं चल रही हैं।
ऐसे में इन वायरस के फैलने की संभावनाएं न के बराबर है। क्योंकि ये वायरस ठंडी जलवायु वाले इलाकों में तेजी से फैलते हैं। दूसरी बात भारत में सुअर के मांस या उससे बनी हुई दूसरी चीजों का बहुत ही कम इस्तेमाल किया जाता है। भारतीय सुअर के मांस को पसंद नहीं करते हैं। मैक्सिको या दूसरे पश्चिमी देशों में लोगों को खाने के लिए रोज मांस चाहिए।
दूसरे मांस की अपेक्षा सुअर का मांस सस्ता पड़ता है इसलिए भी लोग सुअर का मांस ज्यादा खाते हैं। फिर भी यह नहीं कहा जा सकता है कि भारत में तो यह आ ही नहीं सकता है। इसके लिए भारत सरकार ने समय रहते पर्याप्त सतर्कता बरती है। मसलन हवाई अड्डों और दूसरी संभावित जगहों पर इसकी जांच और उपचार की व्यवस्था की गई है।
भारत में स्वाइन फ्लू पर असरदार दवाइयां उपलब्ध हैं। भारत ने इस तरह की बीमारियों से निपटने के लिए करीब पांच साल पहले ही दवाइयां बना ली थी। देश के अंदर करीबन 5 वर्ष पहले जब स्वाइन फ्लू का खतरा आया था उसी समय भारत सरकार ने कई दवा कंपनियों के साथ मिलकर इसकी दवा बनवा ली थी। सरकार के पास आज भी स्टाक में इस फ्लू से निपटने के लिए करीबन दो से तीन लाख कैप्सूल मौजूद हैं।
भारतीय दवा कंपनियां इस तरह के कैप्सूल बनाने में पहले से ही निपुण हैं इसलिए सरकार या दूसरी एजेंसियों के ऑर्डर मिलने पर और भी दवाइयां बनाई जा सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस मामले पर कुछ भारतीय कंपनियों और सरकार से मदद भी मांगी है जो भारत के लिए एक बहुत बड़ी बात है। भारत सिर्फ आईटी में नहीं बल्कि मेडिकल क्षेत्र में भी दुनिया का नेतृत्व करने की क्षमता रखता है।
दुनिया आज एक ग्लोबल विलेज हो गई है। सभी देशों के कारोबार एक दूसरे पर निर्भर करते हैं। अमेरिकी बाजार गिरता है तो भारत का सेंसेक्स भी लुढक़ जाता है। इसीलिए यह फ्लू महामारी का रूप ले ले तो भारत के ऊपर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
यह तो कहना थोड़ा मुश्किल जरूर होगा लेकिन वैश्विक आर्थिक मंदी होने के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया को मजबूती की राह बता रही है, इसका मतलब यह हुआ कि भारतीय अर्थव्यवस्था आज किसी भी तरह की परेशानियों से निपट सकती है। हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। यह फ्लू ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाला है।
सबसे पहले प्रभावित होने वाले मैक्सिको में भी होटल और दफ्तर खुलने लगे हैं। दुनिया के बड़े देशों में जब स्वाइन फ्लू का खतरा मंडरा रहा है तो सैलानी भारत की ओर ज्यादा रुख करेंगे। दूसरे देशों की अपेक्षा भारतीय सुअरों की मांग ज्यादा होगी। इसलिए हमारे लिए आर्थिक रूप से भी यह अच्छा ही साबित हो सकता है।
अंत में एक बात जरूर मैं यह कहना चाहूंगा कि हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है लेकिन कोई हौव्वा बनाने की नहीं। किसी भी अस्पताल में कोई बुखार या जुखाम से पीड़ित व्यक्ति आता है तो उसका सही इलाज किया जाए और जांच के बाद ही कोई निष्कर्ष निकाला जाना चाहिए।
(बातचीत: सुशील मिश्र)
