मामूली राहत ही मिलेगी
दिलीप शेनॉय
महानिदेशक, सियाम
सरकार ने केंद्रीय उत्पाद शुल्क (सेनवैट) में 4 फीसदी की कटौती का जो ऐलान किया है, वह स्वागत योग्य है और सही दिशा में है, लेकिन मौजूदा हालात में यह नाकाफी है।
अगर हम मान रहे हैं कि इससे खस्ताहाल उद्योग जगत का रातोंरात कायाकल्प हो जाएगा, तो ऐसा सोचना ही बेमानी है। दरअसल यह देर में लिया गया निर्णय है क्योंकि इस समय ज्यादातर विनिर्माताओं के पास तैयार माल का भंडार पड़ा हुआ है।
वाहन उद्योग की ही बात की जाए, तो डीलरों के पास पहले से ही स्टॉक मौजूद है, जिसकी वजह से 6000 से भी ज्यादा डीलर मुसीबत में पड़े हुए हैं।
इसी वजह से बाजार में आशंका का माहौल बरकरार है। इसलिए इस कदम को वाहन उद्योग को विकास की पटरी पर लाने के लिए काफी नहीं माना जा सकता।
मुझे लगता है कि बाकी उद्योगों के मामले में भी ऐसा ही है। भारतीय रिजर्व बैंक ने ब्याज दरें कम करने की और नकदी का प्रवाह बढ़ाने की बात कही है। ऐसा होने के बाद ही उद्योग जगत को फायदा मिल सकता है।
वाहन उद्योग को बढ़ावा देने के लिए तो सेनवैट में कटौती के अलावा कई दूसरे कदम भी उठाए जाने चाहिए। मिसाल के तौर पर मल्टी यूटिलिटी व्हीकल, सेडान और प्रीमियम श्रेणी के वाहनों पर उत्पाद शुल्क को भी कम किया जाना चाहिए।
इसके अलावा कर्ज मिलने में आ रही दिक्कतों को भी खत्म करने की जरूरत है। उद्योग जगत के लिए सबसे बड़ी परेशानी तो कर्ज की किल्लत ही है।
यही वजह है कि सेनवैट कटौती से बिक्री बढ़ने की खास उम्मीद नजर नहीं आ रही। वाहन या कंज्यूमर डयूरेबल्स जैसे उद्योगों में तो बिक्री बढ़ाने के लिए सस्ती दर पर कर्ज भी उपभोक्ताओं को मुहैया कराना पड़ेगा।
बैंक अभी कर्ज देने में हिचकिचा रहे हैं। सरकार को यह हिचकिचाहट दूर करने के लिए सही नीतियां बनानी चाहिए। अगर सरकार यह सोचती है कि सेनवैट में कटौती करने से ही उद्योग जगत की सेहत सुधर जाएगी, तो यह बेमानी है।
उद्योग जगत को सेनवैट कटौती के अलावा दूसरी दवाओं की भी जरूरत है। इनमें सस्ती दर पर कर्ज मुहैया कराना, मांग बढ़ाने के लिए नीतियां बनाना, आयात पर रोक को खत्म करना और इस्पात आदि जिंसों के आयात के बारे में अनुकूल नीतियां बनाना शामिल है।
इसके लिए सरकार मोटे तौर पर चार मोर्चों पर काम कर सकती है। सबसे पहले उसे नकदी प्रवाह दुरुस्त करने और ब्याज दरें कम करने पर काम करना चाहिए।
इसके बाद मांग बढ़ाने के उपाय आते हैं। कच्चा माल और कलपुर्जों का आयात करना भी इस समय महंगा है, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए और आखिरी बात है निर्यात।
निर्यात को बढ़ावा देने से उद्योगों को सहूलियत हो सकती है। सरकार को इसमें से हरेक मोर्चे पर पूरे जोर के साथ काम करना होगा। इसके अलावा बाजार की सेहत सुधारने के लिए सभी आर्थिक पहलुओं को देखना होगा। उद्योगों के सामने दिक्कतें कई हैं और ऐसा भी नहीं है कि सरकार उनसे नावाकिफ है।
देर सरकार के सक्रिय हस्तक्षेप की है। जैसे ही सरकार इन सभी पहलुओं पर एक साथ काम करना शुरू कर देगी, उद्योग जगत को काफी राहत मिलेगी। सेनवैट में कटौती तो इस सिलसिले की शुरुआत भर है।
अगर सरकार भी यह मान लेती है कि सेनवैट में कटौती से ही उद्योग जगत मंदी से उबर जाएगा, तो यह भयंकर भूल होगी। उसने इलाज की शुरुआत की है, तो पूरी सेहत सुधारने के लिए काम तो उसे करना ही होगा।
बातचीत: ऋषभ कृष्ण सक्सेना
घटेंगी वस्तुओं की कीमतें
प्रो. चंद्रमोहन जोशी
अर्थशास्त्री, मुंबई
मंदी की मार से अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सरकार ने रिजर्व बैंक के माध्यम से सीआरआर, रेपो रेट और एसएलआर में कमी करके बैंकों को ब्याज दर कम करने के लिए मजबूर किया है।
लेकिन मेरे हिसाब से सरकार द्वारा घोषित किये गये राहत पैकेज में केन्द्रीय उत्पाद कर यानी सेनवैट में चार फीसदी की कटौती का सबसे ज्यादा सकारात्मक और प्रभावशाली असर देखने को मिलेगा।
इस कटौती से अतिरिक्त परिव्यय को बढ़ावा मिलेगा, परिणामस्वरुप वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें कम होगी, मांग को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे मांग बढ़ेगी।
मांग बढ़ने से उत्पादन भी बढ़ेगा जिसका सीधा फायदा उद्योग जगत को मिलने वाला है। सेनवैट में कमी करने का सीधा फायदा मिलेगा, क्योंकि यह कदम उत्पादन लागत कम करने में सहायक होगा।
उत्पादन लागत कम होने से कीमतें कम होगी और मांग मध्यम आय वर्ग के बीच से आएगी जो आज भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ है।
घर कर्ज या कार ऋण में ब्याज दर कम करने से मांग तुरंत नहीं बढ़ने वाली है क्योंकि मंदी की अभी हमने पूरी तस्वीर नहीं देखी है जो आने वाले समय में देखनी पड़ सकती है, इस बात का अंदाज आज सभी को है।
लोगों को मालूम है कि रियल एस्टेट की कीमतों में अभी और कमी आने वाली है और बैंकों ने ब्याज दरों में जो कमी की है वह आगे भी रहने वाली है।
इसलिए लोग अभी भी देखो और इंतजार करो की नीति अपनाने वाले हैं। इस माहौल में लोग घर या कार खरीदना नहीं पसंद करेंगे, क्योंकि वैश्विक मंदी से परेशान होकर कंपनियां वेतन में कटौती और छंटनी जैसे सख्त कदम उठा रही हैं।
इस समय वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था की भी मुख्य दो समस्याएं हैं, एक विकास दर की रफ्तार को ज्यादा न गिरने दिया जाए और दूसरी बढ़ती बेरोजगारी को रोका जाए। ताजा रिपोर्टों से साफ हो रहा है कि निर्यात में गिरावट और बेरोजगारी में वृध्दि हो रही है।
इस साल अभी तक 65 हजार लोगों के हाथ से काम छीना जा चुका है। ऐसे में जरुरी हो जाता है कि लोगों के अंदर विश्वास पैदा किया जाए कि उनकी नौकरी कायम रहेगी। जब यह विश्वास पैदा होगा, तभी बाजारों में रौनक वापस आएगी।
इस विश्वास को पैदा करने में सेनवैट में कटौती अहम साबित होगी। एक बात और, सेनवैट में चार फीसदी की कटौती से सरकार को इसी वित्त वर्ष में 8,700 करोड़ रुपये का नुकसान होने की बात कही जा रही है।
लेकिन यहां पर सरकारी हस्तक्षेप जरूरी हो गया था, इंफ्रास्ट्रक्चर, एनर्जी और कृषि क्षेत्र के विकास के लिए सरकार को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा।
यहां पर यह ध्यान देना होगा कि भारतीय अर्थव्यवस्था से भी मजबूत मानी जाने वाली अमेरिका, चीन और जापान जैसी अर्थव्यवस्थाओं को भी मंदी की भंवर से निकालने के लिए वहां की सरकारों ने आर्थिक पैकेजों की घोषणा की है, जो भारत के मुकाबले में काफी ज्यादा है।
मेरे हिसाब से करों में थोड़ी और कटौती चक्रों में करनी होगी। क्योंकि एक साथ कटौती करने से हमारे वित्त भंडार पर विपरीत असर पड़ने का डर रहेगा और लोग भी उसका सही फायदा नहीं उठा पाएगे। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि सेनवैट की कटौती मरहम का काम करने वाला है जिसका असर पूरी अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा।
कीमतों में कमी से लोगों में विश्वास बढ़ेगा और मांग बढ़ने से कारखानों में उत्पादन भी बढ़ेगा, विकास दर की रफ्तार को भी सपोर्ट मिलेगा।
क्योंकि भारत में ग्राहकों की तरफ से आने वाली मांग कीमत के आधार पर तय होती है न कि छूट के आधार पर। इसीलिए मौद्रिक नीति में किये गए परिवर्तन और करों में की गई कटौती सरकार का एक अच्छा कदम है जिसका स्वागत करना चाहिये।
बातचीत: सुशील मिश्र