बना रहेगा वैश्विक बाजार
सोम मित्तल
अध्यक्ष, नैस्कॉम
बराक ओबामा ने चुनाव पूर्व प्रचार अभियान के समय आउटसोर्सिंग को लेकर जिस तरह के वक्तव्य दिए थे, उससे भारतीय बीपीओ जगत भी हलकान हो गया था।
लोग यह कयास लगाने लगे थे कि अगर बराक ओबामा या हिलेरी क्लिंटन, दोनों में से कोई अमेरिका का राष्ट्रपति बनते हैं, तो आउटसोर्सिंग पर प्रतिबंध लगाया जा सकता है। लेकिन आप एक बात महसूस कर सकते हैं कि अभी अर्थव्यवस्था की जो स्थिति है, उसमें किसी खास क्षेत्र को लक्ष्य कर उसे नजरअंदाज करना मुमकिन नही है।
अभी तो बराक की पहली प्राथमिकता यह होगी कि वे भारत और अमेरिका के बीच जो सहयोग बढ़ रहा है, उसे नई दिशा दें, मजबूती दें। दोनों देशों को यह प्रयत्न करना होगा कि आर्थिक विकास के लिए नए-नए पहल किए जाएं।
दोनों देशों को कुशल और शिक्षित कामगारों की खेप तैयार करने की दिशा में ठोस पहल करनी होगी। अब ऐसा समय नहीं रहा कि आप जब चाहे किसी भी क्षेत्र पर अंकुश लगा दें। आज मुक्त अर्थव्यस्था और वैश्वीकरण के जिस रूप को आप देख रहे हैं, उसका प्रणेता भी तो अमेरिका ही है।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था अभी नाजुक स्थिति में है। अमेरिका में रोजगार की संख्या में कमी आई है। अमेरिका में बैंकिंग और वित्तीय संस्थानों की स्थिति भयावह दौर से गुजर रही है। ऐसे में बराक ओबामा के लिए चुनौतियां बहुत अधिक है। लेकिन जहां तक आउटसोर्सिंग की बात है, इसे रोक पाना मुश्किल है।
मुक्त अर्थव्यवस्था के तहत यह धारणा बनी थी कि सामग्रियों और सेवाओं को एक देश से दूसरे देश में आदान प्रदान किया जाएगा। अगर कोई देश अपनी सेवा या उत्पाद की गुणवत्ता दुरुस्त करने के लिए दूसरे देशों से इन चीजों को मंगाता है, तो उसे आउटसोर्सिंग के दायरे में रखा जाता है।
अब आप ही अंदाजा लगाएं कि आउटसोर्सिंग तो किसी भी देश के लिए और अधिक उपयोगी ही होता है। अगर रोजगार में बढ़ोतरी की कीमत पर आउटसोर्सिंग पर अंकुश लगाएगा, तो इससे बेरोजगारी की समस्या दूर करने में कोई उल्लेखनीय सफलता तो हासिल नही होगी, बल्कि इससे प्रतिभाओं का पलायन जरूर शुरू हो जाएगा, जो अमेरिका के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है।
नैस्कॉम ने चुनावी प्रचार अभियान के समय एच1बी वीजा को और अधिक लचीला और विस्तारित करने की बात उठाई थी। इसका उद्देश्य यह था कि कुशल कामगार एक दूसरे की कंपनियों के उत्थान में मददगार बनें। इससे न केवल भारत की बेहतरी होगी, बल्कि अमेरिका में भी बाजारीय प्रतिस्पद्र्धा बनी रहेगी।
हमलोग उम्मीद करते हैं कि ओबामा जब 111 वीं कांग्रेस में अपनी प्रशासन की रुपरेखा तैयार करेंगे, तो वे वैश्विक बाजार की अहमियत को दरकिनार नही कर पाएंगे। वैसे भी बराक ओबामा युवा और कूटनीतिज्ञ राजनेता हैं और उनके राष्ट्रपति चुने जाने से अमेरिका और विश्व एक आशा भरी निगाह से उनकी तरफ देख रहा है।
ऐसे में किसी भी क्षेत्र को नजरअंदाज करना मुमकिन नहीं है। बराक ओबामा की ऐतिहासिक जीत पर नैस्कॉम उन्हें बधाई देता है और उम्मीद करता है कि वे अमेरिकी अर्थव्यवस्था की चरमराती हालत को ठीक करें। उनका राष्ट्रपति चुना जाना ऐसे वक्त में हुआ है, जब अमेरिका मंदी की दौर से गुजर रहा है।
अगर राजनीतिक तौर पर देखें, तो निश्चित तौर पर बराक ओबामा का चुना जाना एक नए दौर के शुरू होने जैसा है। बराक के राष्ट्रपति चुने जाने से भारत भी काफी उत्साहित है। भारतीय उद्योग जगत बराक की करिश्माई नेतृत्व में कुछ बेहतर परिणाम देखने की बाट जोह रहा है।
हम यह उम्मीद कर रहे हैं कि अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापारिक समझौते एक नई ऊंचाई हासिल करे।
बातचीत: कुमार नरोत्तम
भय का माहौल तो बना ही
विनीत मित्तल
एमडी, स्ट्रीम एपीएसी
नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने चुनाव के समय अमेरिका में बढ़ती बेरोजगारी को मुख्य मुद्दा बनाया था।
आउटसोर्सिंग के मसले पर उनके बयान से भारतीयों के मन में थोड़ी आशंका जरूर उठती है। चुनाव के वक्त उन्होंने कहा था कि आउटसोर्सिंग करने वाली कंपनियों को दी जाने वाली छूट खत्म कर दी जाएगी। अब सत्ता संभालने के बाद वे किस तरह के फैसले करते हैं, इसका इंतजार करना होगा।
भारत और अमेरिका के रिश्तों को देखकर इतना तो कहा जा सकता है कि भारत में होने वाले ऑउटसोर्सिंग के काम में बहुत ज्यादा फर्क नहीं आने वाला है लेकिन अगले एक बात तय जरूर है कि आने वाले दो तीन साल बीपीओ कंपनियों के लिए काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाले हैं।
अमेरिकी मंदी की मार से पहले से ही कंपनियां परेशान है और ऐसे में यदि काम देना ही बंद कर दिया जाए तो स्थित क्या होगी इसका अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल होगा। भारत के साथ एशिया के अन्य देशों से भी अमेरिका में आउटसोर्सिंग होता है।
अगर तुलनात्मक दृष्टि से देखें तो भारत का काम बेहतर है, जिससे अमेरिकी कंपनियां भारत से ज्यादा कारोबार करती हैं। ओबामा का अमेरिकी राष्ट्रपति बनना भारत के लिए कई मायनों में अच्छा है, सबसे बड़ी बात की ओबामा भारतीय संस्कृति के काफी करीब है।
भारत के विषय में अच्छी जानकारी भी रखते हैं। ओबामा भारत को नई ताकत भी मानते हैं और कहते हैं कि उसके साथ अच्छे रिश्ते रखने की वह भरपूर कोशिश करेंगे। ओबामा जब राष्ट्रपति चुन लिए गए हैं तो भारतीय ऑउटसोर्सिंग कंपनियों पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में मेरा मानना है कि जब दो देशों के बीच अच्छे रिश्ते होते हैं तो उनके कारोबार और व्यापार पर भी उसका असर पड़ता है।
भारतीय कंपनियों को आउटसोर्सिंग और ऑफसोर्सिंग के द्वारा जो काम मिलता है उसमें भारतीयों कंपनियों से ज्यादा उन कंपनियों को फायदा होता है जो यह काम सौंपती हैं। भारत सहित पूरे एशिया में काफी सस्ती दर में काम हो जाता है।
भारतीय कंपनियां सिर्फ ऑउटसोर्सिंग ही नहीं, और भी कई क्षेत्रों में अमेरिकी कंपनियों के साथ कदम से कदम मिलाकर काम कर रही हैं। एक बार मान भी लिया जाए कि ओबामा अपने चुनावी वादों को हकीकत में बदल देगें तो भी एशिया महाद्वीप में काम कराना सस्ता पड़ेगा।
आउटसोर्सिंग के द्वारा तभी कोई कंपनी काम करती है जब उसका काम सस्ता और अच्छा होता है। भारत में आउटसोर्सिंग से होने वाला काम दूसरे देशों की अपेक्षा सस्ता और गुणवत्तायुक्त होता है। इसीलिए यह मानना कि ओबामा के राष्ट्रपति बनते ही भारत की आउटसोर्सिंग कंपनियों के हाथ से काम छिन जाएगा, मैं समझता हूं कि ये सब संभव नहीं है।
वैश्विक स्तर पर ऑउटसोर्सिंग और ऑफसोर्सिंग का होने वाले काम का 50 से 60 फीसदी का काम भारत और चीन में किया जाता है। एशिया महाद्वीप में ऑउटसोर्सिंग और ऑफसोर्सिंग का काम करने का आज की तारीख में सबसे बड़ा कारखाना है।
ऐसे में अगर कोई बात होती है तो कंपनियां उनका काम पहले बंद करती है जिनका काम महंगा और गुणवत्ता में कम होता है। भारत में होने वाला काम सस्ता होने के साथ साथ दूसरे देशों में होने वाले काम से काफी अच्छा भी है।
ओबामा के बयान का असर अमेरिकी कंपनियों पर पड़ता भी है तो इसका पहले असर भारतीयो पर नहीं पड़ने वाला है। ओबामा के सामने एक बहुत बड़ी चुनौती यह है कि अमेरिका में बेरोजगारों की बढ़ती संख्या में वह रोक लगाएं और अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मंदी की काली छाया से बाहर निकाले।
बातचीत: सुशील मिश्र