क्या यह जरूरी है कि कोई देश किसी आपदा के आने के बाद ही जागे और तब ही यह सोचे कि आखिर कैसे इससे प्रभावित लोगों का बचाव किया जाए?
क्या बार बार की आपदाएं भी यह संकेत नहीं दे पातीं कि कम से कम अब तो नींद से जागकर कुछ ऐसे कदम उठाए जाने चाहिए जो होने वाले नुकसान को कम कर सके? भारत अब तक तो उन देशों की सूची में शुमार नहीं हो सका है जो आपदाओं के आने से पहले ही उसके बचाव की तैयारी या कम से कम उससे निपटने की तैयार कर के रखते हैं।
हालांकि पिछले कुछ सालों में देश पर आपदाओं की भारी मार पड़ी है और इससे देश को काफी नुकसान उठाना पड़ा है। इन आपदाओं में शामिल हैं- भुज में आया विनाशकारी भूकंप, सुनामी, उड़ीसा में आया चक्रवाती तूफान, कश्मीर में भूकंप, मुंबई की बाढ़ और अब एक ऐसी आपदा जिसे हमने खुद से न्योता दिया है- बिहार की बाढ़।
पिछले चार सालों के दौरान भारतीय अधिकारी इस कोशिश में जुटे हुए हैं कि आखिर कैसे आपदाओं से देश का बचाव किया जाए और आखिर किस तरह से देश की सुरक्षा की जा सके। पर सबसे मजेदार बात तो यह है कि उन्हें खुद पता नहीं है कि उन्हें इसके लिए कौन से कदम उठाने हैं, क्या तैयारियां करनी हैं?
कुछ ऐसे ही सवालों का जवाब देने के लिए दुनिया की सबसे बड़ी रीइंश्योरेंस कंपनियों में से एक स्विस री अगले महीने एक प्रस्तुतिकरण देगी। रीइंश्योरेंस कंपनियां ऐसी कंपनियां हैं जो इंश्योरेंस कंपनियों को विभिन्न आपदाओं से होने वाले नुकसान से बचाती है। यानी रीइंश्योरेंस कंपनियां बीमा कंपनियों का बीमा कराती हैं। अब बात करते हैं स्विस री की जो अपनी आपदा संबंधित बॉन्डों के लिए जानी जाती हैं।
कंपनी अपने कैट बॉन्ड (कैटेसट्रोफी से लिया गया नाम) का प्रस्तुतिकरण करेगी। कंपनी अधिकारियों और व्यवस्थापकों को यह बताएगी कि मेक्सिको में आए भीषण भूकंप के बाद उसे उबारने में वह किस तरह कामयाब रही। मेक्सिको ने विकासशील देशों के सामने एक अनोखा उदाहरण पेश किया है कि कैसे पूंजी बाजार संबंधित कैट बॉन्ड्स के जरिए रिस्क कवर किया जाए।
कंपनी ने आपदा से राहत के लिए स्थानीय सरकार के लिए फोंडेन नाम का एक बॉन्ड शुरू किया था। मेक्सिको ने इस फंड का इस्तेमाल करते हुए कैट बॉन्ड जारी किए थे। साल 1992 की बात है जब फ्लोरिडा में तूफान एंड्रयू ने उत्पात मचाया था। इस तूफान की वजह से बीमा कंपनियों के होश उड़ गए थे और उन्हें जबरदस्त नुकसान उठाना पड़ा था। इस नुकसान के बाद से ही कैट बॉन्डों का जन्म हुआ था।
इन प्रतिभूतियों को सरकार या बीमा कंपनियां जारी करती हैं और इनमें सबसे अधिक जोखिम होता है। इन प्रतिभूतियों के लिए एक खास पैमाना तय किया जाता है, उदाहरण के लिए रिक्टर स्केल पर 8.0 की तीव्रता वाले भूकंप। अगर इन सीमाओं या तय पैमानों से ऊपर की कोई आपदा आती है तो ऐसे में जो बॉन्ड खरीदे जाते हैं निवेशकों को उनसे हाथ धोना पड़ता है। इससे और बेहतर तरीके से समझने की कोशिश करते हैं।
सरकार या बीमा कंपनियों की ओर से जारी किए गए बॉन्ड्स में निवेशक अपना पैसा लगाते हैं। इसके बदले में उन्हें ऊंची ब्याज दर दी जाती है। पर जैसे ही कोई प्राकृतिक आपदा घटित होती है तो निवेशकों का सारा पैसा उनके पास से छिन जाता है और तब इसका इस्तेमाल प्रायोजक अपने नुकसान की भरपाई के लिए करते हैं।
वर्ष 1999 के भूकंप के बाद तुर्की में कई घर के मालिकों ने आपदा बीमा कोष तैयार किया था। इस कोष में स्विस री भी एक रीइंश्योरर है। अभी यह पता नहीं है कि क्या प्रस्तुतिकरण के बाद स्विस री भारत के लिए भी ऐसा ही प्रस्ताव रखेगी और क्या भारत इस स्विस री फार्मूले को अपनाने को तैयार होगा? जोखिम को एक से दूसरे पर डालने का एक ऐसा ही उदाहरण इथियोपिया में भी देखा जा रहा है।
यहां विश्व खाद्य कार्यक्रम के जरिए किसानों पर विभिन्न आपदाओं से आने वाले खतरे को एक पॉलिसी में बदला जा रहा है और उस पॉलिसी का अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार में कारोबार किया जा रहा है। इन बॉन्डों की सबसे बड़ी खासियत यह होती है कि बड़ी संख्या में निवेशक इससे जुड़ सकते हैं।
जोखिम अधिक होने के बाद भी इसनें प्रीमियम काफी कम होता है। पर बैंकरों का कहना है कि ऐसे बॉन्ड महंगे हो सकते हैं और यही वजह है कि ये गरीबों की पहुंच से दूर होते हैं। पर अगर जलवायु परिवर्तन पर अंतरसरकारी पैनल की चेतावनी के हिसाब से चलना है तो आपदाओं के बढ़ते जोखिमों के बीच इससे बेहतर कोई विकल्प फिलहाल तो नजर नहीं आता।
कई देशों ने जोखिमों को एक पॉलिसी में बदलने की शुरुआत कर दी है ताकि आपदा के समय में विनाश से बचा सके। कोलंबिया में कैरेबियन कैटसट्रोफी रिस्क इंश्योरेंस फैसिलिटी 18 देशों को यह अनुमति देती है कि वह अपने जोखिमों का कारोबार कर सकें। कुछ दक्षिण एशियाई देशों ने भी जोखिम को पॉलिसी में बदलने की शुरुआत की है।
जहां अब तक इस बात पर से पर्दा नहीं उठ पाया है कि क्या भारत भी इस तरह के कैट बॉन्ड को अपनाएगा, वहीं आफत विमो जैसी कुछ लघु बीमा योजनाएं देश में अपना पैर पसार रही हैं। याद रहे कि भारत ऐसा देश है जहां हर साल आपदाओं के कारण एक अरब डॉलर यानी करीब 4000 करोड़ रुपये तक का नुकसान होता है।
अखिल भारतीय आपदा राहत संस्थान ने एक दशक पहले आफत विमो का गठन किया था और अब गुजरात, तमिलनाडु और जम्मू कश्मीर में इसके 4,000 से अधिक क्लाइंट हैं। यह लघु बीमा संस्थान देश भर में यह संदेश पहुंचाने की कोशिश कर रहा है कि स्वयं सेवी संस्थाएं, बीमा कंपनियां और लघु वित्त संस्थान आपस में मिलकर आपदाओं के बाद राहत दिलाने का काम कर सकते हैं। जब एक बड़ी आबादी आपदाओं की वजह से अपना सब कुछ खो चुकी होती है तो ऐसे प्रयास कुछ राहत दिला सकते हैं।