कैबिनेट सचिवालय ने 24 जनवरी को मंत्रिपरिषद की सूची में संशोधन किया और विदेश मंत्री प्रणव मुखर्जी को वित्त मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंप दी गई।
यह वही दिन था जब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बाइपास सर्जरी के लिए अस्पताल गए। उस दिन से मुखर्जी रोजाना नॉर्थ ब्लॉक जाते हैं और वित्त मंत्रालय की पूरी जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। करीब 25 साल पहले भी उन्होंने इस दायित्व का निर्वाह किया था।
कैबिनेट सचिवालय ने हालांकि अपनी वेबसाइट में तत्परता से मुखर्जी की अतिरिक्त जिम्मेदारी का उल्लेख कर दिया, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय ने ऐसी तत्परता नहीं दिखाई। प्रधानमंत्री कार्यालय की वेबसाइट देखने पर आप पाएंगे कि विभिन्न अतिरिक्त जिम्मेदारियों में से एक वित्त मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी अभी भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पाले में दिखाई जा रही है!
हो सकता है कि यह उन लोगों की तरफ से एक मामूली भूल हो जिनके पास प्रधानमंत्री की वेबसाइट को संचालित करने का जिम्मा है। लेकिन इससे मनमोहन सिंह की उस राय के बारे में भी पता चलता है कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के शेष कार्यकाल में वित्त मंत्रालय किस तरह चलाया जाना चाहिए।
दिसंबर 2008 में कैबिनेट में हुए फेरबदल के ठीक बाद (जिसमें पी. चिदंबरम को वित्त मंत्री की जगह गृह मंत्री बनाया गया था) इस तरह की खबरें आ रही थीं कि एक बार फिर कैबिनेट में बदलाव आ सकता है और प्रधानमंत्री एक ऐसे योग्य प्रत्याशी की तलाश कर रहे हैं जो वित्त मंत्रालय का कार्यभार संभाल सकें। अब यह साफ हो गया है कि मनमोहन सिंह का ऐसा कोई इरादा नहीं था।
उन्होंने तत्परता से वित्त मंत्रालय को अपनी अतिरिक्त जिम्मेदारी में शामिल कर लिया था। वित्त मंत्रालय से संबंधित संसद में पूछे जाने वाले सवालों की जिम्मेदारी चिदंबरम को दे दी गई जबकि योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया को वित्त मंत्रालय की नीतियों के संचालन में प्रधानमंत्री की मदद करने को कहा गया था।
वित्त मंत्रालय के अधिकारी भी इस व्यवस्था के अभ्यस्त हो गए थे। प्रधानमंत्री की हरी झंडी या उनकी टिप्पणी के लिए सरकारी फाइलें प्रधानमंत्री कार्यालय भेजी जाती थीं, लेकिन अहलूवालिया वहां अपनी सलाह और मार्गदर्शन के लिए हमेशा मौजूद रहते थे।
वित्त मंत्रालय के कुछ अधिकारियों का कहना था कि अहलूवालिया अगर राज्यसभा या लोकसभा के सदस्य होते तो संसद में पूछे जाने वाले वित्त मंत्रालय से संबंधित सवालों की जिम्मेदारी योजना आयोग के उपाध्यक्ष को दे दी गई होती।
यह व्यवस्था संप्रग सरकार के कार्यकाल के आखिरी समय तक चलते रहने की संभावना थी। मोटे तौर पर निश्चित था कि संसद में लेखानुदान यानी अंतरिम बजट प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ही पेश करेंगे। लेकिन समस्या तब खड़ी हुई जब प्रधानमंत्री को बायपास सर्जरी के लिए जाना पड़ा और यह साफ हो गया कि 16 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करने के लिए वह शायद शारीरिक रूप से फिट नहीं हो पाएंगे।
ऐसे में सवाल यह था कि वित्त मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी किसे दी जानी चाहिए, यह वही व्यक्ति होना चाहिए जो अंतरिम बजट भी पेश कर सके। वित्त मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी आखिर पी. चिदंबरम को क्यों नहीं दी गई? और वित्त मंत्रालय की अतिरिक्त जिम्मेदारी के लिए मुखर्जी को क्यों चुना गया?
सरकारी स्पष्टीकरण यह है कि प्रधानमंत्री के बाद मुखर्जी कैबिनेट के सबसे वरिष्ठ सदस्य हैं, लिहाजा उन्हीं का चयन किया गया। लेकिन सच यह है कि अगर अंतरिम बजट पेश करने की बात थी तो फिर यह जिम्मेदारी ऐसे व्यक्ति चिदंबरम को क्यों नहीं दी गई, जो लगातार पांच साल से वित्त मंत्रालय संभाल रहे थे।
साफ तौर पर पसंद (चॉइस) बनाई गई थी। इस बात पर विचार हो सकता है कि यह पसंद किसने बनाई। यह काम संप्रग सरकार के कार्यकाल के आखिरी समय में हुआ। आम चुनाव से कुछ माह पहले हुआ यह काम पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों को चिंतित (अपसेट) कर सकता है।
मुखर्जी को अचंभा हो सकता है कि दिसंबर में कैबिनेट में हुए फेरबदल के तुरंत बाद उन्हें वित्त मंत्रालय की जिम्मेदारी क्यों नहीं दी गई। चिदंबरम को लग सकता है कि चूंकि उन्होंने संप्रग सरकार का पांच पूर्ण बजट पेश किया है लिहाजा 16 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करने केदौरान उन्हें सरकार की आर्थिक उपलब्धि के बारे में बताने का मौका मिलना चाहिए।
पिछला अंतरिम बजट जनवरी 2004 के तीसरे हफ्ते में वाजपेयी सरकार के वित्त मंत्री जसवंत सिंह ने पेश किया था। वह विवादास्पद हो गया था क्योंकि विपक्षी पार्टियों ने संसद के विशेष सत्र बुलाने पर सवाल उठाया था। उनका कहना था कि शीतकालीन सत्र की समाप्ति के बिना यह कैसे बुला लिया गया। हालांकि इस बार ऐसा नहीं होगा।
16 फरवरी को पेश होने वाले इस बार के अंतरिम बजट के विवादास्पद नहीं रहने की संभावना है। लेकिन यह दिलचस्प गतिविधियों के लिए याद रखा जाएगा कि अंतरिम बजट पेश करने के लिए पसंद का कौन सा व्यक्ति उठ खड़ा होगा।
