कुछ साल पहले जब देश के सबसे बड़े और सबसे व्यस्त दिल्ली और मुंबई हवाईअड्डों का निजीकरण किया गया था, सिंगापुर का चांगी एयरपोर्ट यह कहते हुए बोली की प्रक्रिया से बाहर हो गया था कि इस प्रक्रिया में घपला हो रहा है।
सिंगापुर चांगी एयरपोर्ट का शुमार पिछले छह साल से दुनिया के दो उत्कृष्ट हवाईअड्डों में हो रहा है। ज्यूरिख छठे स्थान पर था, जो इसमें शामिल नहीं हुआ।फ्रैंकफर्ट हवाईअड्डे की जीएमआर कंसोर्टियम में एक छोटे साझेदार के रूप में दिल्ली हवाईअड्डे की बोली में मौजूदगी रही।
आप क्या कहेंगे अगर यह देखें कि चांगी फिर से बोली लगा रहा है, ज्यूरिख और फ्रैंकफर्ट की वापसी हो रही है, लेकिन पूरी तरह से आने की बजाय वे माइनरिटी पार्टनर के रूप में आ रहे हैं? ऐसा क्यों हो रहा है कि वे तुलनात्मक रूप से और भी छोटे हवाईअड्डों के लिए बोली लगा रहे हैं। अमृतसर हवाईअड्डा उनमें से एक है, जिसका राजस्व वर्ष 2006-07 में मात्र 21 करोड़ रुपये था।
यह तेजी से आगे बढ़ रहा है, जिसका राजस्व पहले के साल की तुलना में 15 करोड़ रुपये ज्यादा रहा। लेकिन अगर हम दिल्ली हवाईअड्डे के 669 करोड़ रुपये और मुंबई हवाईअड्डे के 665 करोड़ रुपये सालाना राजस्व से तुलना करें तो यह कहीं नहीं ठहरता।
उदयपुर का सालाना राजस्व 2006-07 में 7 करोड़ रुपये रहा। इसमें यह भी आश्चर्य की बात है कि इन दो छोटे हवाईअड्डों का निजीकरण उस तरह से नहीं किया जा रहा है, जैसा दिल्ली-मुंबई या बेंगलुरु-हैदराबाद एयरपोर्ट का निजीकरण किया गया जिसमें निजी पार्टियों का रोजाना के संचालन में करीब पूरा नियंत्रण है, जबकि रणनीतिक मामलों में थोड़ा बहुत एएआई का पर्यवेक्षण है।
इस मामले में पूरी प्रक्रिया को लेकर भ्रम पैदा हुआ है, इसलिए बेहतर होता कि कुछ समय के लिए इसे रोककर पूरे मामले पर विचार किया जाता कि इस क्षेत्र में क्या बदलाव आए हैं। सभी जानते हैं कि एनडीए के शासनकाल में चार मेट्रो शहरों में हवाईअड्डों के निजीकरण की प्रक्रिया शुरू हुई थी, और इसे दिल्ली और मुंबई से शुरू किया गया।
यूपीए ने इस मामले में कदम आगे बढ़ाने का फैसला किया, लेकिन वामपंथी दलों के दबाव में यूनियनों की मांग को स्वीकार कर लिया गया और यह फैसला किया गया कि कोलकाता और चेन्नई हवाईअड्डों का विस्तार और आधुनिकीकरण एएआई की देखरेख में होगा।
इस बात पर भी सहमति बन गई कि नान-मेट्रो शहरों के आधुनिकीकरण का काम भी एएआई की देखरेख में होगा (स्वाभाविक रूप से यह नियम उन हवाईअड्डों पर ही लागू होता है, जो एएआई के अधिकार में हैं, यह हैदराबाद और बेंगलुरु एयरपोर्ट पर लागू नहीं होता जो राज्य सरकारों के अधीन हैं, या नोएडा के प्रस्तावित हवाईअड्डे पर भी लागू नहीं होता जैसा कि उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती चाहती हैं)।
जो भी आदमी हवाई यात्राएं करता है उसे पता है कि एएआई, हवाईअड्डों का संचालन किस तरह करता है। इस बात को लेकर विरोध भी किया जा रहा है कि एएआई हवाईअड्डों का संचालन करे। इसके बावजूद उसने पहले ही हवाईअड्डों के क्षमता विस्तार का काम शुरू कर दिया है।
प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली आधारभूत ढांचे पर बनी समिति ने फैसला किया कि एक अंतर मंत्रिमंडलीय समूह (आईएमजी) का गठन किया जाए, जो इस बात पर अपने सुझाव दे कि किस तरह से हवाईअड्डों के संचालन और रखरखाव के क्षेत्र में सुधार किया जाए। विमानन सचिव की अध्यक्षता वाली आईएमजी ने फैसला किया कि चेक-इन के बाद की सभी गतिविधियों की देखभाल एएआई करे, जबकि उसके पहले की प्रक्रिया का संचालन निजी हाथों को सौंप दिया जाए।
स्वाभाविक रूप से हवाईअड्डों का संचालन, उसकी साफ-सफाई और एस्कलेटर्स के संचालन की प्रक्रिया जैसे काम निजी हाथों को करने हैं। इसके साथ ही निजी क्षेत्र की कंपनियों को मालवाहक विमानों का संचालन और शहर के इलाके में होटलों और दूकानों का विकास भी करना है। अंतरमंत्रिमंडलीय समूह ने यह फैसला क्यों किया कि एएआई एयरसाइड संचालन का इंचार्ज होगा, इसका भी स्पष्टीकरण किया गया है।
एएआई जिन हवाईअड्डों का संचालन करता है, उसमें सफाई और रखरखाव, कार पार्किंग और इस तरह की अन्य सेवाओं की आउटसोर्सिंग ही की जाती है। इसलिए आईएमजी ने तर्क दिया है कि इसका ठेका 10-12 लोगों को दिया जाता था, जिसकी अलग से मॉनिटरिंग की जरूरत होती थी, इसकी बजाय यह काम एक ही बड़ी फर्म को क्यों न दे दिया जाय, जो संचालन और रखरखाव का काम करे। इससे न केवल कार्यक्षमता में बढ़ोतरी होगी, बल्कि इससे जवाबदेही भी बढ़ेगी।
इस फैसले को देखते हुए एएआई ने कोटेशन के लिए अनुरोध (आरएफक्यू) और एक प्राथमिक सूचना ज्ञापन (पीआईएम) तैयार किया है, जिसमें यह विवरण दिया गया है कि निजी फर्मों से क्या-क्या करने की उम्मीद की गई है। दो हवाईअड्डा परियोजनाओं के लिए करीब 24 बोलियां प्राप्त हुई हैं, इसमें से 10 समूहों को छांट लिया गया है।
निजी हाथों में सौंपे गए नए एयरपोर्टों में हुई समस्याओं को ध्यान में रखते हुए आरएफक्यू में कहा गया है कि इसके मुताबिक ही समझौते का मसौदा तैयार किया जाएगा। दिल्ली जैसे कुछ हवाईअड्डों के मामले में यह समस्या हुई कि राजस्व का बंटवारा किस आधार पर किया जाए, जब एयरपोर्ट कंसोर्टियम अपनी वित्तीय योजनाओं में बदलाव करेगा- हालिया योजना नागरिक विमानन मंत्रालय को एक महीने में या उसके बाद सौंपी जानी है।
हैदराबाद और बेंगलुरु हवाईअड्डे पर यूजर डेवलपमेंट फी को लेकर आए दिन बवाल होता रहता है। उम्मीद की जा रही है कि नए मसौदे में इस तरह के मुद्दों के बारे में स्पष्ट किया गया है। अब समस्या यह है कि वामपंथी दल इस मामले को प्रधानमंत्री के पास लेकर गए हैं। ऐसा लगता है कि संचालनों और रखरखाव के इस सीमित निजीकरण को जारी रखा जाएगा, जैसा कि कुछ सप्ताह पहले नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने एक बयान में कहा था।
इसका मतलब यह हुआ कि नान मेट्रो शहरों के लोग एएआई की दया पर निर्भर रहेंगे। अब मंत्री महोदय को यह करने से पहले एएआई और वाम दलों से पूछना चाहिए कि अब वे इस प्रस्ताव से नाराज क्यों हैं- जबकि हवाईअड्डों के संचालन और रखरखाव के ज्यादातर कामों की आउटसोर्सिंग की जाती है, ऐसे में यूनियन के लोगों को नौकरी का खतरा होने का कोई सवाल ही नहीं है।