अमेरिका के 33वें प्रधानमंत्री हैरी एस. ट्रूमैन ने एक बार कहा था कि जब आपके पड़ोसी देशों में लोग बेरोजगार हो रहे हैं तो यह आर्थिक मंदी है और जब आप अपनी नौकरी छोड़ते हैं तो आर्थिक संकट पैदा हो जाता है।
इस समय भारतीय लोग भी पहले वाली स्थिति से जूझ रहे हैं। नील्सन ग्लोबल ऑनलाइन कंज्यूमर सर्वे के पिछले दो चरण के सर्वेक्षण के मुताबिक भारत और पूरी दुनिया के वैश्विक आर्थिक परिदृश्य पर से भरोसा कम हुआ है। दुनिया के आर्थिक जगत की हालत इतनी खस्ता इसलिए हो रही है क्योंकि मुद्रास्फीति और ब्याज दर बढ़ रही है। इसके अलावा सबप्राइम, के्रडिट संकट और स्टॉक मार्केट की अस्थिरता का व्यापक असर भारत के साथ विदेशों में भी दिख रहा है।
नील्सन ग्लोबल कंज्यूमर कॉनफिडेंस सर्वे के मुताबिक भारत में आर्थिक परिदृश्य के लिए उपभोक्ताओं के भरोसे की दर में 11 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है। इस तरह यह पिछले पांच चरणों के सर्वे के सबसे निचले स्तर पर आकर 122 अंक पर ठहर गई है। उसी तरह पूरी दुनिया के उपभोक्ताओं के भरोसे के स्तर में भी 88 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है जो तीन साल में सबसे तेज गिरावट के रूप में दर्ज की गई है।
पिछले सर्वे के मुताबिक नार्वे, भारत और डेनमार्क जैसे आशावादी विकासशील देशों में भी औसतन 7 अंकों की गिरावट दर्ज की गई है जो एक विडंबना की स्थिति को दर्शाती है। डेनमार्क के जरिए इसका असर इंडोनेशिया तक पहुंच गया। इसमें सबसे खास बात यह है कि पिछले 6 महीने में लगभग 39 देशों के उपभोक्ताओं के भरोसे के स्तर में इतनी बड़ी गिरावट दर्ज की गई हालांकि न्यूजीलैंड, अमेरिका और लाटविया पर इसका ज्यादा असर हुआ और इसका नुकसान झेलना पड़ा।
दुनिया के 39 देशों में से 15 देशों में सबसे ज्यादा अंकों की कमी नजर आई। इस समय ताइवान के लिए बेहद अच्छा दौर है। इस देश के उपभोक्ताओं के भरोसे के स्तर में 14 अंकों की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसकी वजह चुनावों में मा यिंग जिऊ की धमाकेदार जीत रही है। दूसरे देशों की सूची में भी 1 से 5 प्रतिशत की मामूली बढ़ोतरी दर्ज की गई जिनमें शामिल हैं नीदरलैंड, रुस, पोलैंड, चेक रिपब्लिक, ब्राजील और बेल्जियम। इसमें यह आंकना थोड़ा मुश्किल होगा कि किस देश पर कितना ज्यादा असर हुआ।
अमेरिका का इंडेक्स सबप्राइम संकट और दूसरी परेशानियों से जूझ रहा है और इसमें 17 अंकों की गिरावट दर्ज की गई। यूरोप के बाजार में भी इसका असर हुआ और इसमें 6 अंकों की गिरावट दर्ज की गई। इसी तरह एशिया पैसिफिक और एमा (पूर्वी यूरोप, मध्यपूर्व और अफ्रीका)के उपभोक्ताओं के भरोसे के स्तर में 3 अंकों की गिरावट दर्ज की गई और लैटिन अमेरिका में दो अंकों की गिरावट दर्ज की गई।
यही वजह है कि अमेरिका के लोगों में भ्रम की स्थिति आ गई थी और उन्हें ये उम्मीद नहीं थी कि स्थिति में किसी परिवर्तन की गुंजाइश हो सकती है। उनमें से 60 प्रतिशत लोगों में अगले 12 महीने के दौरान स्थानीय नौकरियों को लेकर निराशा का भाव पैदा हो गया था। हालांकि अमेरिका इन देशों की सूची में कहीं में शामिल नहीं था जहां स्थानीय नौकरियों के लिए भी संकट का भाव पैदा हो गया था।
अब आपको यह अनुमान लगाना होगा कि इनमें कौन शामिल हैं। आपके लिए एक संकेत है- विश्व की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था। इस सूची में दूसरा स्थान है जापान का जिसके 88 प्रतिशत इंटरनेट उपभोक्ता जो पहले 83 प्रतिशत थे वे अपने लोकल जॉब को लेकर बेहद आशान्वित नहीं हैं। उन्हें खासतौर पर अगले 12 महीने के लिए अपने पर्सनल फाइनैंस को लेकर भी ज्यादा उत्साह नहीं है। इस सर्वे के अंतिम चरण में पर्सनल फाइनैंस के मामले में जापान निराशावादी देशों की सूची में सबसे ऊपर था।
दूसरी ओर भारत अपने पर्सनल फाइनैंस को लेकर काफी उत्साही रहा और डेनमार्क और इंडोनेशिया जैसे उत्साही देशों के साथ संयुक्त रूप से शामिल रहा। अब भारतीय लोग अपने पैसे का निवेश कैसे करने वाले हैं? लगभग 5 प्रतिशत का कहना था कि अपनी मनचाही चीजों के खरीदने का यह सबसे बेहतरीन समय है जबकि 40 प्रतिशत का कहना था कि ऐसा करने के लिए यह ठीक समय हो सकता है।
हालांकि इनमें भी उपभोक्ताओं के भरोसे की सूची में लगातार गिरावट दर्ज की गई। इस बढ़ती हुई महंगाई दर से भारत का कुछ भला नहीं हुआ। भारत के लोग खर्च करने में बहुत हिचकते हैं। अब कमोडिटी की कीमतें बढ़ने की वजह से उनलोगों को अपने जेब पर थोड़ा नियंत्रण और बढ़ जाएगा। नई तकनीकों पर खर्चों में भी एक अंक की कमी आई है। घर की साज-सज्जा और सुधार में तीन अंकों की गिरावट दर्ज की गई है और कपड़ों पर किए जाने वाले खर्च तो लगभग समान ही हैं।
हालांकि यूरोप में निराशा वाली स्थिति में कोई ज्यादा बदलाव नहीं आया है। लगभग 6 महीने पहले 6 आशावादी देश यूरोप से ही थे। लेकिन इस बार सात देश इसमें शामिल हैं। मसलन लाटविया, हंगरी, फ्रांस, जर्मनी, इटली, पुर्तगाल और तुर्की ने वैश्विक उपभोक्ता विश्वास सूचकांक की औसत दर के 88 अंकों से भी नीचे है। जापान ने दक्षिणी कोरिया को पीछे छोड़ते हुए सबसे बड़े निराशावादी राष्ट्रों में अपना स्थान बनाया है।