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  लेख  कौन कहता है, मंदी से परेशां हैं हम?
लेख

कौन कहता है, मंदी से परेशां हैं हम?

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —October 31, 2008 10:19 PM IST
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कहते हैं कि जब इंसान की जेब मोटी होती जाती है तो इसका असर उसके पेट पर भी दिखने लगता है। लेकिन पिछले कुछ दिनों में वित्तीय गलियों से अच्छी खबरें कम ही आ रही हैं और लोगों की जेब पर भी सेंध लगती जा रही है।


लेकिन हैरानी की बात है कि इस मंदी का असर रेस्तरां कारोबार पर नहीं पड़ा है। उल्टे, उनका कारोबार तो दिन दुनी, रात चौगुनी रफ्तार से बढ रहा है। देसी मध्य वर्ग ने मुश्किल वक्त में ‘खाने-पीने पर कम खर्च’ के परंपरागत दर्शन की हवा निकाल दी है। खैर मंदी और महंगाई के इस दौर में भी खाने पीने के शौकीन मध्यम वर्ग की आदतों से रेस्तरां वालों का कारोबार तो गुलजार हो ही रहा है।

मंदी की वजह से इस दिवाली पर आपने अपनी शॉपिंग लिस्ट में कुछ कटौती कर दी होगी। और साल के आखिर में भी लंबी छुट्टियों पर जाने की योजना को भी कुछ वक्त के लिए टाल दिया होगा। लेकिन छुट्टियों पर ब्रंच (लंच और ब्रेकफास्ट को जोड़कर दिया गया नाम) का विकल्प अब भी खुला हुआ होगा।

दरअसल रविवार को ब्रंच के लिए बाहर जाना इन दिनों परिवार का प्रिय शगल बन गया है। और काफी हद तक यह सही भी है। कुल मिलाकर आप यहां पर मार्टिनी से लेकर क्रिस्टल तक केवियार से लेकर पेकिंग डक तक सभी का चीजों का लुत्फ उठा सकते हैं। वैसे यह आपकी जेब के लिए कुछ महंगा जरूर साबित हो सकता है।

वसाबी, वर्क या फिर अई में केवल एक पीस सुशी (चावल से बनी एक खास तरह की जापानी डिश) के लिए आपको 199 रुपये अदा करने पड़ सकते हैं।  आर्थिक मंदी में केवल वित्तीय स्थिति का ही अध्ययन नहीं किया जाता बल्कि इंसानों पर होने वाले प्रभाव को भी देखा जाता है।

वैसे इस तरह के हालात में किए गए अध्ययन से एक बात तो सामने आती है कि मंदी के वक्त में लोगों पर चर्बी और चढ़ने लगती है। अमेरिका में छपने वाली पुरुषों की एक पत्रिका का भी कहना है कि ऐसे मुश्किल वक्त में लोगों में लजीज खाने की चाहत और परवान चढ़ने लगती है। इस पत्रिका का कहना है कि जो लोग साल में छुट्टियों पर जाने में नाकाम हो जाते हैं वे भी मिशेलिन स्टार रेस्तरां (न्यूयॉर्क का मशहूर रेस्तरां) में जाकर खाने पर काफी खर्च करने लगते हैं।

क्या भारत में भी होता है ऐसा?

अब सवाल यह उठता है कि क्या भारतीय भी ऐसा ही करते हैं या नहीं। इससे जुड़े तथ्य आपकी कल्पनाओं से अलग हो सकते हैं। देसी मध्यम वर्ग के बारे में भी यही बात काफी हद तक सही मालूम पड़ती है कि इस मुश्किल दौर में खाने-पीने को लेकर उनकी परंपरागत सोच हवा हो गई है। और ये लोग महंगा खाना खाने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं।

उदाहरण के तौर पर नई दिल्ली के यम यम ट्री की बात करते हैं। खाने-पीने के शौकीनों के लिए यह दिल्ली में एक बेहतरीन जगह के रूप में अपनी पहचान बनाता जा रहा है। इस साल गिरते सेंसेक्स और फीकी दिवाली के बावजूद भी इसका धंधा बिलकुल भी मंदा नहीं पड़ा। उल्टे यह कई मायनों में फाइव स्टार होटलों के लिए चुनौती बन गया है। इसके 150 रेस्तरां हैं।

धनतेरस की ही बात करते हैं जिस दिन लोग मांस और शराब से दूर रहते हैं, बाजवूद इसके यम यम ट्री के 120 रेस्टोरेंट उस दिन खुले रहे। यहां पर डिम सम्स, पेकिंग डिक्स, क्रैब्स, स्पेयर रिब्स, ग्रे गूज मार्टिनीज के साथ-साथ बच्चों के लिए भी शानदार मनोरंजन का बंदोबस्त है। इसके लिए केवल आपको 1,200 रुपये (टैक्स अलग से) अदा करने पड़ते हैं, जिसको ‘किफायती’ ही कहा जाएगा।

नई दिल्ली के हयात होटल की ‘चाइना किचन’ की कीमतों पर नजर डालने से तो ऐसा ही लगता है। यहां पर एक आदमी को खाने के लिए ‘सिर्फ’ 3,800 रुपये से ज्यादा का खर्चा करना पड़ता है। हयात इसको ‘वैल्यू फॉन मनी’ के तौर पर प्रचारित करता है।

आप इस छुट्टियों पर यहां टेबल बुक करा सकते हैं और आकर देख सकते हैं कि पिछले दो साल में भारतीय मध्यमवर्ग की ‘वैल्यू फॉर मनी’ की मानसिकता कितनी बदल चुकी है। आप शांग्री-ला पहुंचिए। यहां के सिग्नेचर 19 और ओरिएंटल एवेन्यू रेस्तरां में आपको संडे ब्रंच के लिए ‘मात्र’ 1,900 रुपये खर्च करने होंगे। इसको दो साल हो गए हैं और यहां का ब्रंच, शहर का सबसे महंगा ब्रंच है। लेकिन 2008 में इसने अपनी रणनीति को बदला है और अब यहां पर दाम काफी किफायती हो गए हैं।

कितना हुआ इजाफा?

रेस्तरां विश्लेषक मनु मोहिंद्रा के मुताबिक, ‘न्यू ऑलिव में एक आदमी के लिए अब 2,000 रुपये ही खर्च करने पड़ते हैं, जबकि ‘एआई’ जैसी जगहों पर एक व्यक्ति को डिनर के लिए 4,500 रुपये खर्च करने होंगे। ‘ यह केवल संयोग ही नहीं है कि मोहिंद्रा केवल दिल्ली के रेस्तरां के बारे में बात कर रहे हैं।

दरअसल इस शहर में ‘मिड मार्केट’ रेस्तरांओं का भी बड़ा बाजार है। नहीं तो महंगे की जहां तक बात है, तो मुंबई आज भी देश की राजधानी से कहीं आगे है। मुंबई के ताजमहल होटल की हेरिटेज विंग के शेफ्स स्टूडियो की ही बात करें तो वहां पर छह लोगों के खाने पर औसतन एक लाख रुपये से ज्यादा खर्च करना पड़ता है।

हालांकि, इस तरह का कोई भी अध्ययन उपलब्ध नहीं है, जो यह बताता हो कि रेस्तरां की कीमतो में कितना इजाफा हुआ है। लेकिन यह माना जा रहा है कि कीमतों में औसतन 25 फीसदी के आसपास तेजी आई है।

मोहिंद्रा जहां यह इजाफा हर छह महीने में 12.5 फीसदी और सालाना तौर पर 25 फीसदी बता रहे हैं वहीं केपीएमजी के रघु वेंकट नारायण कहते हैं कि पिछले एक डेढ़ साल में यह इजाफा 20 से 25 फीसदी के आसपास हुआ है। हालांकि, केपीएमजी ने इसके लिए कोई अध्ययन नहीं किया है। 

शाही रेस्तरां की लागत

किसी भी बेहतरीन रेस्तरां का पूरे खर्च में से खाने की लागत महज 20-25 फीसदी तक ही होती है। अगर किसी रेस्तरां में खाने की लागत 30 फीसदी तक आती है तो उसे बहुत ज्यादा माना जाता है। अब ‘डीवा’ जैसे बेहद शानदार रेस्तरां ही इतनी लागत लगाने में सक्षम हैं हालांकि यह उद्योग इसे उतना सही नहीं मानता है।

अगर कोई रेस्तरां, फाइव स्टार होटल के साथ है तो उसका शुध्द मुनाफा लगभग 40 फीसदी होगा। वही अगर कोई रेस्तरां स्वतंत्र स्तर पर चलाया जाता है तो उसका मुनाफा 22 फीसदी होता है। यकीनन खाने की लागत से ज्यादा खर्च तो होटल या रेस्तरां की जमीन और निर्माण और रखरखाव के काम में लगता है।

आजकल रेस्तरां अपने कर्मचारियों को ज्यादा वेतन भी दे रहे है। इससे उनके खर्च में इजाफा होता है। आजकल जो रेस्तरां खुल रहे है उनमें भी बड़े दक्ष और कुशल शेफ को रखा जा रहा है जो चलन पहले फाइव स्टार रेस्टोरेंट में ही देखा जाता था।

मोहिन्द्रा दिल्ली के शानदार रेस्टोरेंट के बारे में कहते हैं, ‘यहां 1700 वर्गफुट की जगह के लिए 35 लाख रुपये किराया है। इसके अलावा रेस्तरां में कई शेफ तो होते ही है, साथ ही कुछ खास लजीज व्यंजन बनाने वाले विशेषज्ञ शेफ को रखा जाता है, तो कुल मिलाकर उनके  वेतन का बिल भी 35 लाख रुपये तक हो जाता है।’

‘लाइफस्टाइल रेस्तरां’

जो लोग अब तक देश में मिशलेन स्टार्स जैसे होटलों की कमी का रोना रोते थे उनके  लिए यह एक अच्छी खबर है कि इस साल नए तरह के रेस्टोरेंट का चलन शुरू हो गया है। जी हां अब ‘लाइफस्टाइल रेस्टोरेंट’ खुलने शुरू हो गए हैं। इनमें से कई ‘लाइफस्टाइल रेस्टोरेंट’ ऐसे भी हैं जो फाइव स्टार रेस्टोरेंट के मुकाबले बहुत ज्यादा खर्चीले हैं।

अब इन रेस्टोरेंट में दुनिया के सबसे बेहतरीन लजीज खाने का लुत्फ उठाना होगा तो आपको थोड़ी जेब ढीली तो करना ही होगा। पूरी दुनिया में पिछले कुछ सालों में लोगों में बेहतरीन जायके वाले खाने के लिए दीवानगी बढ़ी है और भारत भी इसमें अपवाद नहीं है।

अगर आप कीमत चुकाने के लिए तैयार हैं तो आप यहां भी पार्मा हैम से लेकर न्यूजीलैंड के लैंब चॉप्स और नार्वे के सॉलमन का भी लुत्फ उठा सकते हैं। ताज के मशहूर शेफ हेमंत ओबरॉय का कहना है, ‘अगर लोग वाघु बीफ खाने की हसरत रखते हैं तो उन्हें पैसे भी खर्च करने के लिए तैयार रहना चाहिए।’

अगर फोर्ब्स डॉट कॉम की मानें तो इस वाघु बीफ के एक छोटे हिस्से के लिए आपको 10,000 रुपये खर्च करने पड़ेंगे। चाइना किचन में 1,300 रुपये के एबालोन सूप के लिए भी लोगों की लाइन लगी रहती है। फोर्ब्स के मुताबिक नई दिल्ली के ओरियंट एक्सप्रेस में कोबे मिगनॉन के जायके का मजा लेने के लिए 5,500 रुपये खर्च करने पड़ते हैं।

वहीं न्यूयार्क चिक टाओ में बिल्कुल इसी तरह के व्यंजन का लुत्फ आप 30 फीसदी कम पैसे चुका कर भी उठा सक ते हैं। खाने के शौकीनों के बारे में दिल्ली में एक किस्सा मशहूर है कि तांबुल रस में एक एनआरआई कारोबारी को शौक चढ़ा ‘शैटू लाटूर 2000’ पीने का। उसने एक शाम, 40,000 रुपये प्रति बोतल की कीमत वाली ‘शैटू लाटूर 2000’ की 6 बोतलों के लिए ढाई लाख रुपये चुकाए।

कम खर्च और मुनाफा ज्यादा

ऐसा भी नहीं है कि शाही खाने बहुत महंगे ही होते हैं, इन खानों को पकाने में कम लागत भी आती है। लेकिन जो बेहद मशहूर रेस्टोरेंट हैं वे अपने इस फायदे का अंदाजा ग्राहक को बिल्कुल नहीं लगने देते। एक नामी शेफ ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि सभी रेस्टोरेंट अपने मुनाफे को बढ़ाने के लिए इस तरह के व्यंजनों के लिए विदेशों से सामान लाने के बजाय दूसरे विकल्प भी रख रहे हैं।

वह इसकी मिसाल पेश करते हुए कहते हैं, ‘कनाडा में मिलने वाला स्कैलोप्स बहुत महंगा होता है और यह लगभग 2,800 रुपये प्रति किलोग्राम मिलता है। वहीं रेस्टोरेंट आपसे उसके एक छोटे हिस्से के लिए आपसे 2,000 रुपये मांग सकते हैं। अगर खाने की लागत में कमी भी आती है तब भी इसका फायदा लोगों को नहीं मिलता।’ आप इस गणित को आसानी से समझ सकते हैं।

मसलन अगर आप किसी पॉश रेस्टोरेंट में नूडल्स खाते हैं तो उसकी औसत कीमत होती है 300-400 रुपये जबकि उसको बनाने में महज 25 रुपये का खर्च आता है। लगभग 600 रुपये में मिलने वाला केसर सलाद को बनाने की लागत भी 150 रुपये से ज्यादा नहीं आती। आप मेनू में शामिल सभी व्यंजनों के साथ ऐसा हिसाब लगा सकते हैं।

ताजमहल होटल के नए रेस्टोरेंट वर्क में एक शख्स के डिनर के लिए औसतन 3,000 रुपये चुकाने पड़ते हैं। अगर आपने इस डिनर के बाद ऊपर से दो चम्मच दाल भी ली, तो आपको 145 रुपये ज्यादा चुकाने होंगे। टैक्स अलग से। फूड कंसल्टेंट रुपाली डीन का कहना है कि, ‘इस साल सूप और डेजर्ट की कीमतें भी बहुत ज्यादा हैं। पहले यह सोचा जाता था कि अगर इनकी कीमतें कम होंगी तो ज्यादा ऑडर्र करने को तैयार होंगे।’

जो शराब आपको विदेश में कम पैसे चुकाने पर मिल जाएगी वहीं शराब देश में महंगी है क्योंकि यहां टैक्स बहुत ज्यादा है। आपको बता दें कि बेंगलुरु में लीला होटल के जेन रेस्टोरेंट में आपको शैटू लफाई रॉथ्सचाईल्ड 01 के लिए 28,000 रुपये (626 डॉलर ) चुकाना होगा।

फोर्ब्स डॉट कॉम का कहना है कि यही शराब न्यूयार्क में 10,000  रुपये (200 डॉलर) में मिल जाएगा। देसी कानून का फायदा फाइवस्टार होटलों को ही मिलता है क्योकि वे बहुत सारी चीजों का सस्ता आयात कर मंगा लेते हैं। हालांकि आईटीसी, ओबेरॉय, ताज जैसे शाही होटलों में इसका फायदा ग्राहकों को नहीं मिलता हैं।

अब दिल्ली में शाही खाना उतना ही खर्चीला है जितना कि न्यूयार्क, लंदन, दुबई या सिंगापुर में होता है। कैलीफोर्निया का बेहद मशहूर रेस्तरां फ्रेंच लॉन्ड्री में भी आप 240 डॉलर में खाना खा सकते हैं। चार्ली ट्राटर्स, एलेन डुकैसीज या मिशलेन स्टार रेस्तरां में खाने का खर्च ज्यादा से ज्यादा 150-200 डॉलर प्रति व्यक्ति आता है। अमेरिका के पॉश रेस्तरांओं में भी डिनर का खर्च 50-70 डॉलर तक आता है।

अब भारत के मशहूर रेस्तरांओं की बात करते हैं। नई दिल्ली और मुंबई के वसाबी रेस्तरां में आपको जापानी शैली के फाईव कोर्स मेनू के लिए 7,000-8,000 रुपये के अलावा टैक्स भी चुकाना पड़ेगा। ताज महल होटल के जोडिएक ग्रिल भी मुंबई का बहुत खर्चीला होटल है जहां आपको बिना शराब के डिनर करने के लिए 7,000 रुपये और टैक्स अलग से चुकाने पड़ेंगे।

बेहद मशहूर बुखारा रेस्टोरेंट में प्रति व्यक्ति 3,000-4,000 रुपये चुकाने पड़ेंगे। इस लिहाज से हेमंत ओबरॉय के वर्क में सिर्फ 3,000 रुपये चुकाकर शाही खाने का लुत्फ उठाया जा सकता है। दिल्ली, मुंबई या बेंगलुरु के लाइफस्टाइल रेस्तरां में खाना खाने के लिए 1,500 से लेकर 3000 रुपये और टैक्स अलग से चुकाना पड़ेगा।

अब इतने खर्चीले रेस्तरां की बात करने के बाद मन में यही सवाल आता है कि क्या रेस्तरां में खाना आम आदमी के बूते के बाहर की चीज है? इस पर शेफ ओबरॉय हंसते हुए कहते हैं, ‘अभी तक तो ऐसा नहीं हुआ है लेकिन हम इस राह पर जाने की कोशिश में हैं।’ 

क्यों है महंगा खाना?

रियल एस्टेट की कीमतों में तेजी
खाने और ईंधन का महंगा होना
विशेषज्ञ शेफ को देनी पड़ती है शानदार सेलरी
नए रेस्तरांओं को मुकाबला करना पड़ रहा है पांच सितारा होटलों से
कई लजीज पकवानों के लिए चीजें मंगानी पड़ती है विदेशों से
कुछ खास तरह की शराबों के आयात पर बतौर डयूटी चुकानी पड़ती है मोटी रकम

‘महंगा’ या ‘किफायती’

ताज शेफ्स स्टूडियो- छह लोगों का खाना ‘सिर्फ’ एक लाख रुपये
वसाबी- टेस्टिंग मेन्यू की शुरुआत है 8,000 रुपये प्रति व्यक्ति से
जोडिएक ग्रिल- केवल 7,000रु. एक व्यक्ति के डिनर के लिए
बुखारा – 3,000 से 4,000 रुपये प्रति व्यक्ति
ए आई – 4,500 रुपये प्रति व्यक्ति
वर्क – 3,000 रुपये चुकाने पड़ते हैं एक व्यक्ति के खाने के लिए

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