गोवा के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के देहांत के बाद उनकी जगह लेने वाले व्यक्ति का फैसला लेने में करीब छह घंटे लगे। प्रमोद सावंत को रात के 2 बजे मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। इसकी वजह? दरअसल भारतीय जनता पार्टी को 2017 के राज्य विधानसभा चुनावों में 40 में से केवल 13 सीट मिलीं, जो कांग्रेस को मिलीं 17 सीट से चार कम थीं। इसके बावजूद भाजपा सरकार बनाने में सफल रही, जिसमें कांग्रेस की सुस्ती और नितिन गडकरी तथा पर्रिकर के प्रभावी व्यक्तित्व की अहम भूमिका थी। पर्रिकर महाराष्ट्रवादी गोमंतक पक्ष (एमजीपी) के रामकृष्ण ‘सुदीन’ धवलीकर और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के संरक्षक विजय सरदेसाई के समर्थन से अपनी सरकार बनाने में कामयाब रहे। हालांकि उन्होंने इन दोनों से क्या वादे किए, इसका कोई खुलासा नहीं किया गया। जब प्रमोद सावंत को मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा हुई तो धवलीकर और सरदेसाई के पास इस नियुक्ति को स्वीकार करने या विरोध दर्ज कराने का विकल्प था। दोनों ने सावंत का समर्थन किया, जिसका इनाम उन्हें उपमुख्यमंत्री की कुर्सी के रूप में मिला। गोवा में एक समय 12 सदस्यीय मंत्रिपरिषद और दो उपमुख्यमंत्री थे। मगर दोनों ने सावंत को कम आंका। पर्रिकर के देहांत के कुछ सप्ताह बाद ही विधानसभा में विपक्ष के नेता चंद्रकांत कवलेकर की अगुआई में कांग्रेस के 10 विधायकों का समूह भाजपा में शामिल हो गया। इससे भाजपा के विधायकों की संख्या बढ़कर 27 हो गई। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनावों की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस के पास महज पांच विधायक रह गए हैं।
इसके बाद के घटनाक्रम ने और ज्यादा चौंकाया। सावंत ने सरदेसाई को हटा दिया। उन्होंने राजनीतिक विरासत को लेकर दावा किया है कि यह उन्हें पर्रिकर ने दी है। उन्होंने पिछले साल दावा किया था कि भाई ने अपना पूरा ‘जोश’ मुझे दिया है, जिसकी वजह से मैं रोजाना 15 से 16 घंटे काम कर सकता हूं। एन एक्सट्रा ऑर्डिनरी लाइफ : ए बायोग्राफी ऑफ मनोहर पर्रिकर एक शानदार पुस्तक है, जिसके लेखक दो पत्रकार हैं। इसमें यह विश्लेषण किया गया है कि कैसे सावंत ने गोवा पर अपनी छाप कायम करने के लिए अभियान शुरू किया था। जब पर्रिकर जीवित थे, तब उनकी सरकार में हमेशा बने रहने वाले लोगों को हटा दिया गया। गोवा मेडिकल कॉलेज के रेडियोलॉजी विभाग के प्रमुख और पर्रिकर के बेटे उत्पल के ससुर डॉ. महेश सरदेसाई को सेवानिवृत्ति के लिए कहा गया। सरकार के दो सबसे महत्त्वपूर्ण वकीलों एडिशनल सोलिसिटर जनरल और एडवोकेट जनरल को बदल दिया गया, जो पर्रिकर के चहेते थे। खुद पर्रिकर की तस्वीरें भाजपा की प्रचार सामग्री से हटा दी गईं। उत्पल को पणजी से चुनाव लडऩे के लिए तैयार रहने को कहा गया, जो उनके पिताजी की सीट थी। मगर यह सीट लंबे समय तक पर्रिकर के निजी सचिव रहे सिद्धार्थ कुनकोलिंकर को दी गई, जिसका साफ तौर पर उद्देश्य परिवार में फूट डालो और राज करो की नीति थी।
पर्रिकर गौड़ सारस्वत ब्राह्मण थे। सावंत मराठा हैं। सरकार में ज्यादातर गौड़ सारस्वत ब्राह्मण अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता की वेदना में जी रहे हैं। दक्षिणी गोवा के प्रभावशाली भाजपा नेता पांडुरंग (उर्फ भाई) नायक ने स्थानीय संवाददाताओं से बात करते हुए ऐसे आठ गौड़ सारस्वत ब्राह्मणों के नाम गिनाए थे, जो पर्रिकर की जगह प्रमोद सावंत के मुख्यमंत्री बनने के बाद अपना आधिकारिक पद गंवा चुके हैं। इन आठ लोगों में राजनेता, अफसर, वकील और डॉक्टर शामिल हैं, जो पर्रिकर के बेहद नजदीक थे। नायक ने कहा, ‘सारस्वत समुदाय को क्यों निशाना बनाया जा रहा है? हो सकता है कि इस बात को इतना खुलकर सामने लाने वाला मैं पहला व्यक्ति हूं। मुझे नहीं पता कि भाजपा मेरे खिलाफ क्या कार्रवाई करेगी, लेकिन मुझे अपने सारस्वत होने पर गर्व है।’ वह भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे हैं। वह इस समय पार्टी की राज्य कार्यकारिणी के सदस्य हैं, जो फैसले लेने वाली सर्वोच्च संस्था है। निस्संदेह वह किसी चीज की परवाह नहीं करते हैं, लेकिन विजय सरदेसाई ने बड़ा बयान दिया। उन्होंने पिछले महीने एक सार्वजनिक सभा में कहा, ‘पर्रिकर के निधन के बाद हमारे लिए भाजपा खत्म हो गई है। हम भविष्य में भाजपा को इस राज्य में कभी शासन नहीं करने देंगे।’
इस महीने की शुरुआत में पर्रिकर के चहेते अफसर और राज्य के मुख्य सचिव पी कृष्णमूर्ति का लक्षद्वीप स्थानांतरण कर दिया गया। जब पर्रिकर के कैंसर पाया गया और वह इलाज के लिए अमेरिका गए तो कृष्णमूर्ति को ही उनकी जगह फाइलों पर हस्ताक्षर करने के लिए अधिकृत किया गया था। इस फैसले की काफी आलोचना भी हुई थी। उससे पहले जब पर्रिकर रक्षा मंत्री थे तो कृष्णमूर्ति उनके साथ पांच साल की नियुक्ति पर दिल्ली गए थे। सावंत ने लोगों को दूर करने के बाद नीतिगत बदलाव किया। सावंत ने छात्रों को मुफ्त लैपटॉप और टैबलेट देने की पर्रिकर की अहम साइबरएज नीति बदल दी। इसके लिए तर्क दिया गया कि इन उपकरणों का ‘दुरुपयोग’ हो रहा है।
अब गोवा के राज्यपाल ने प्रमोद सावंत के बयान को गलत बताया है। सावंत की राज्यपाल सत्यपाल मलिक के साथ बैठक हुई थी। इसके बाद सावंत ने कहा कि राज्यपाल ने उन्हें कहा कि सरकार कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने में अच्छा काम कर रही है, लेकिन मीडिया गलत तस्वीर पेश कर रहा है। राज्यपाल ने कहा कि मैंने ऐसी कोई चीज नहीं कही और मैंने निश्चित रूप से मीडिया पर कोई आरोप नहीं लगाया। सावंत ने जवाब दिया कि राज्यपाल हमेशा सही होते हैं। सवाल यह है कि ऐसी राजनीति गोवा को कहां लेकर जाएगी।
