गुजरात में समंदर के किनारे बसे शहर मांडवी में रहने वाले शिवजी भूडा फोफिंडी भले ही 76 साल के हो चुके हैं लेकिन जिंदगी को जिंदादिली से जीने का उनका जज्बा अभी खत्म नहीं हुआ है।
शिवजी हर शाम स्थानीय बच्चों को तैरना भी सिखाते हैं। यूं कह लें कि शिवजी के लिए तो समंदर ही एक जिंदगी है। उन्हें यह पसंद भी है कि लोग उन्हें ऐसे ही पहचानें। वह हंसते हुए कहते हैं, ‘मेरे साथ यादों का कारवां इस तरह से जुड़ा हुआ है कि मैं हर वक्त ऐसा महसूस करता हूं कि मैं जहाज पर ही हूं।’
यहां आपको जो जहाज दिखाई देंगे वे कोई साधारण जहाज नहीं हैं बल्कि ये लकड़ियों की परंपरागत नौका होती है जिसे अरब में ढोज और गुजरात में वाहनवती कहा जाता है। उन्होंने जहाज चलाने का सबसे महत्त्वपूर्ण काम चुना और वह जहाज के चालक बन गए। उस दौर में जहाज पवन ऊर्जा से चलाए जाते थे। उस वक्त जहाज समंदर में कैसा प्रदर्शन करता है, यह सब चालक की कुशलता पर ही निर्भर करता था।
शिवजी अपने पुराने दिनों को याद करते हुए कहते हैं, ‘ हम लोगों ने बहुत लंबी यात्राएं भी कीं। मसलन हम जेद्दा, सोमालिया और जंजीबार द्वीप पर भी गए। लेकिन पूरे जहाज के नाविकों के लिए यह जरूरी था कि वे बहुत दक्ष हैं।’
जब पवन ऊर्जा से चलने वाले जहाज पुराने पड़ गए तो शिवजी ने डीजल से चलने वाले जहाजों को चलाना शुरू कर दिया। उसके बाद जब वह 60 साल के हुए तो उन्हें रिटायर होना पड़ा। आज वह मांडवी के सबसे बेहतरीन चालकों में से एक हैं।
हालांकि उनकी पहचान तो परंपरागत पवन ऊर्जा से चलने वाले जहाजों को चलाने के लिए है। मांडवी कस्टम केंद्र के पास ही शिवजी की दुकान है जिसमें जहाजों के छोटे नमूने बेचे जाते हैं। यहां लोगों की बड़ी भीड़ होती है और लोग यहां हाथ से बने हुए जहाजों के छोटे मॉडल का ऑर्डर देने के लिए आते हैं।
उनका कहना है, ‘मैंने इन मॉडल को बनाने का फैसला किया है क्योंकि मैं पिछले कई साल से बिल्कुल खाली होने की वजह से बहुत उदास हो गया था।’ यह दुकान जो स्टोर और वर्कशॉप का ही एक रूप है वह किसी के लिए भी आकर्षण का कारण हो सकती है क्योंकि यहां लकड़ी से बनाए जाने वाले जहाज की कला से रूबरू होने का मौका मिलता है। शिवजी इन छोटे जहाजों को भी उसी तरीके से बनाते हैं जैसे बड़े जहाज बनाए जाते हैं।
शिवजी कहते हैं, ‘जब एक बार मॉडल का ऑर्डर मिलता है तो इसको तैयार करने में 25 दिनों का समय लगता है। मैं जहाजों को बनाने के लिए बर्मा के सागौन की लकड़ियों का इस्तेमाल करता हूं। यह सबसे बेहतरीन लकड़ी होती है और इससे काम भी बहुत बेहतरीन होता है। कुछ जहाजों में रिमोट कंट्रोल किट भी लगाए जाते हैं।’
शिवजी के स्टोर की दीवारों पर देख सकते हैं कि दुनिया भर के कई सामुद्रिक संगठनों की ओर से उन्हें कितना धन्यवाद दिया गया है। बहुत सारे मस्तूलों वाले जहाजों को बाद में बनाया गया और इस्तेमाल किया गया। लेकिन शिवजी के लिए तो सबसे पसंदीदा है चार मस्तूलों वाला जहाज।
उनका कहना है कि पहले इसका इस्तेमाल ओमान के लोग किया करते थे। इसके एक छोटे मॉडल की कीमत फुट के हिसाब से निर्धारित होती है। फिलहाल एक फुट के जहाज की कीमत है 7,000 रुपये। इस काम में शिवजी की मदद करते हैं उनके छोटे भतीजे और नाती-पोते।
इन सभी को शिवजी ने इस कला के लिए प्रशिक्षण दिया है। शिवजी को इन सबकी मदद की जरूरत होती है क्योंकि इन्हें शाम में बच्चों को तैरना भी तो सिखाना होता है न।