केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के अधीन आने वाले राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े जारी कर दिए हैं। जैसा कि प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है सालाना आधार पर वृद्धि के आंकड़े ‘कम आधार के कारण अनावश्यक रूप से ऊंचे हैं।’ यह याद रखा जाना चाहिए कि पिछले वर्ष की समान तिमाही यानी अप्रैल-जून 2020 में कोविड-19 महामारी का संक्रमण रोकने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन लगा हुआ था जिसके कारण उत्पादन में असाधारण कमी आई और यह 2019-20 की पहली तिमाही की तुलना में 24 फीसदी (स्थिर मूल्य पर) तक कम हो गया। तुलनात्मक रूप से देखें तो 2021-22 की अप्रैल-जून तिमाही में स्थिर मूल्य पर जीडीपी ने 20.1 फीसदी की वृद्धि दर्शाई।
यह शीर्ष आंकड़ा व्यापक तौर पर अनुमान के अनुरूप ही है। बहरहाल, इसका अर्थ यह है कि वास्तविक संदर्भ में जीडीपी अभी भी महामारी के पहले के स्तर से कम है। हाल में समाप्त वित्त वर्ष 2022 की पहली तिमाही ही वह अवधि थी जब देश में कोविड-19 महामारी की दूसरी घातक लहर आई। हालांकि इस बार देशव्यापी लॉकडाउन नहीं लगा और कई अहम आपूर्ति शृंखलाएं अक्षुण्ण बनी रहीं लेकिन अंतिम आंकड़ों पर कुछ असर जरूर नजर आया। इस बात की पूरी संभावना है कि आने वाले महीनों में देश को कोविड की तीसरी लहर झेलनी पड़ सकती है। ऐसे में अनुमान तो यही होना चाहिए कि इस वर्ष के अंत तक अर्थव्यवस्था काफी हद तक 2019-20 में दिखे जीडीपी के स्तर तक या उससे कुछ बेहतर स्थिति में लौट आएगी। अब यह स्पष्ट है कि अंग्रेजी के वी शब्द वाली आकृति के सुधार (तेज गिरावट के बाद तेज सुधार) की आशा पर पुनर्विचार होना चाहिए। हकीकत के करीब अनुमान तो यही है कि महामारी और उसके बाद अपनाए गए नीतिगत उपायों की कीमत देश को दो साल की वृद्धि के रूप में चुकानी पड़ी।
दूसरी लहर के बाद अर्थव्यवस्था में वृद्धि को गति जरूर मिली है और यह बात सरकारी राजस्व के आधिकारिक आंकड़ों से भी जाहिर होती है जो महालेखाकार द्वारा मंगलवार को जारी किए गए। अप्रैल से जुलाई के बीच 34.6 फीसदी बजट प्राप्तियां सरकार को चुकाई गईं। तिमाही अनुमान के घटकों पर भी नजर डालें तो भी आशावाद की ऐसी ही वजह नजर आती है। कुछ मूल क्षेत्र मसलन बिजली और विनिर्माण में उल्लेखनीय गति देखने को मिल रही है। अन्य संकेतक मसलन वाणिज्यिक वाहनों की बिक्री और स्टील की खपत से भी यही इशारा मिल रहा है। अर्थव्यवस्था की भविष्य की गति इस बात पर निर्भर करेगी कि वृद्धि को कितनी अच्छी तरह बरकरार रखा जा सकता है और क्या वायरस की एक और लहर इसे क्षति पहुंचा सकती है। ऐसे में मध्यम अवधि का अनुमान अनिश्चित है। दीर्घावधि में महामारी के बाद के सुधार के बारे में भी बहुत कुछ नहीं कहा जा सकता है और यह अनुमान भी नहीं लगाया जा सकता कि महामारी ने अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि को कितनी क्षति पहुंचाई।
मध्यम अवधि में आशा की किरण टीकाकरण से निकल कर आ रही है। देश के उच्च उत्पादकता वाले क्षेत्रों में टीकाकरण की गति तेज हुई है। उपयुक्त आबादी के आधे से अधिक हिस्से को कम से कम एक खुराक लग चुकी है। मुंबई और दिल्ली जैसे शहरों में यह अनुपात और अधिक है। इन क्षेत्रों में 18-45 आयु वर्ग के लोगों को दूसरा टीका लगने के बाद कुछ ही सप्ताह में यहां सामुदायिक संरक्षण का स्तर काफी अच्छा हो जाएगा। ऐसे में संक्रमण दोबारा बढऩे पर शायद अस्पताल में दाखिले और मौत उतनी संख्या में न हों और उत्पादन पर भी कम असर पड़े। हालांकि हम ने कीमती वर्ष गंवा दिए लेकिन आगे आशा की किरण दिख रही है।