कोविड-19 महामारी का टीका बनाने में लग रहे अधिक समय का एक अनचाहा लाभ यह है कि सरकार को राज्यों के साथ मिलकर एक प्रभावी टीका आपूर्ति कार्यक्रम बनाने का मौका मिल गया है। इस मुद्दे के तमाम पहलू डराने वाले हैं क्योंकि उदारीकरण के बाद भारत ने इस स्तर की किसी भी सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती का सामना नहीं किया है। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ को दिए एक साक्षात्कार में नंदन नीलेकणी ने इस योजना का खाका कुछ इस तरह खींचा है: दो साल के भीतर 1.3 अरब लोगों को टीका लगाने का मतलब है कि दो खुराक वाला टीका होने पर 2.6 अरब टीकों का प्रबंधन यानी रोजाना 30 लाख से अधिक टीके लगाने होंगे। अगर कोरोनावायरस की चपेट में आकर प्रतिरोधक क्षमता हासिल कर चुके लोगों को टीके की जद से बाहर रखा जाए तो संभावित आंकड़ा थोड़ा कम हो सकता है। नीलेकणी ने निजी क्षेत्र को अपने कर्मचारियों के टीके की जिम्मेदारी लेने और सरकार को कॉर्पोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) में कोविड टीकाकरण कार्यक्रम को भी समाहित करने का सुझाव दिया है। ऐसा होने पर टीकाकरण से जुड़ी केंद्र एवं राज्य सरकारों की चिंताएं कुछ हद तक कम होंगी।
लेकिन दो बुनियादी समस्याएं फिर भी बनी रहेंगी जिन पर फौरन ध्यान देने की जरूरत है। पहली समस्या टीका लगाने से जुड़े कार्यों के लिए लोग जुटाने एवं उनके प्रशिक्षण की है। दूसरी समस्या भारत की काफी हद तक नाकाफी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था से इस काम को पूरा करने की है। ग्रामीण एवं आदिवासी क्षेत्रों में यह चुनौती अधिक बढ़ जाती है जहां प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में या तो कर्मचारी नदारद हैं या उनकी संख्या कम है। कुछ जगहों पर ऐसे केंद्र मौजूद ही नहीं हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक भारत के 20 लाख स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों में से 60 फीसदी शहरी क्षेत्रों में ही मौजूद हैं जबकि देश की 60 फीसदी आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। इसका मतलब है कि सरकारों को न केवल मौजूदा स्वास्थ्य नेटवर्क सक्रिय करना होगा बल्कि कम समय में ही लाखों नए लोगों को प्रशिक्षित कर इसका दायरा भी बढ़ाना होगा। ग्रामीण स्वास्थ्य देखभाल में लगे करीब 24 लाख आंगनवाड़ी कार्यकर्ता इसमें मददगार हो सकते हैं। वैसे उनका अनुभव मुख्यत: नवजात शिशुओं के लिए टीकाकरण कार्यक्रम चलाने का ही है लेकिन उन्हें टीका लगाने का प्रशिक्षण देना आसान होना चाहिए। फिर भी यह सवाल है कि आंगनवाड़ी कार्यकर्ता क्या इस काम के लिए काफी होंगे? स्वास्थ्य मंत्रालय ने जुलाई 2021 तक करीब 25 करोड़ लोगों के लिए 40-50 करोड़ टीका खुराक मिलने की उम्मीद जताई है। अस्थायी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के एक कैडर के लिए क्रैश कोर्स भी चलाया जा सकता है। सरकार की कथित तौर पर फार्मासिस्ट को भी इस काम में लगाने की योजना है। फार्मासिस्ट टीका लगाने जैसे काम के लिए काफी हद तक प्रशिक्षित होते हैं।
इस संदर्भ में व्यय सचिव टी वी सोमनाथन का कोविड टीकाकरण कार्यक्रम पर कोई भी बजट संबंधी अवरोध न होने का आश्वासन उत्साह बढ़ाने वाला है। इस मद में खासी बड़ी रकम खर्च होगी और राज्यों को भी भरोसे में लेकर सरकार को तैयार रहने की जरूरत होगी। स्वास्थ्य मंत्रालय ने राज्यों को टीके के भंडारण एवं आपूर्ति के लिए योजना बनाने का निर्देश दिया हुआ है। इन टीकों को 2-8 डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच रखने की जरूरत होगी लिहाजा राज्यों को कम समय में ही प्रभावी शीतगृह नेटवर्क भी बनाना होगा। इसके अलावा सुदूर इलाकों में टीका पहुंचाने के लिए प्रशीतित डिलिवरी वैन का भी इंतजाम करना होगा। आखिर में यह सबसे बड़ा सिरदर्द साबित होने वाला है। कृषि उद्योग शीतगृहों की कमी की शिकायत दशकों से करता रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य क्या अगले कुछ महीनों में इस कमी की भरपाई कर पाते हैं? तैयारी पर्याप्त न होने पर टीकाकरण की लागत बढ़ेगी और आर्थिक बहाली में भी देर होगी।
