देशद्रोही फिल्म के जरिए पक्के हिंदुस्तानी होने का संदेश देने वाले निर्माता और हीरो कमाल खान की फिल्म बंबई में अब भी प्रतिबंधित ही है।
दर्शकों और फिल्म वितरक की मानें तो फिल्म उत्तर प्रदेश और बिहार में अपना झंडा गाड़ रही है और दोस्ताना जैसे बड़े बैनर और बड़े स्टार की फिल्म को भी पछाड़ रही है। इस फिल्म के मशहूर होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके डॉयलॉग के कॉलर टयून की मांग बढ़ गई है। अब तक शोले जैसी फिल्मों के डॉयलॉग की मांग कॉलर टयून के लिए की जाती थी।
इस फिल्म के दूसरे कलाकारों में शामिल हैं ग्रेसी सिंह, अमन वर्मा और ऋषिता भट्ट। इस फिल्म के निदेशक हैं जगदीश शर्मा। देशद्रोही को लेकर राजठाकरे की आपत्तियों को देखते हुए, महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के उपाध्यक्ष अखिलेश चौबे को एक वकील के तौर पर यह फिल्म रिलीज होने से पहले दिखाई गई थी।
उसके बाद इस फिल्म को क्लीन चिट भी दे दी गई थी लेकिन इस फिल्म पर रिलीज होने से एक दिन पहले ही प्रतिबंध लगा दिया गया। सोमवार को गृह मंत्रालय के लोगों ने इस फिल्म को देखा। साथ में फिल्म उद्योग के जानी-मानी हस्तियों महेश भट्ट, सुभाष घई, मुकेश भट्ट और रतन जैन ने भी इस फिल्म को देखा।
इनलोगों को साथ में यह फिल्म इसलिए दिखाई गई ताकि ये फैसला कर सकें कि इस फिल्म में क्या बुराई है और इस पर लगाया गया प्रतिबंध कितना जायज है।
फिल्म देखने के बाद महेश भट्ट ने अपनी प्रतिक्रिया में राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा ,’मुझे इस फिल्म में कोई भी चीज विवादित नहीं लगी। इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने क्लीन चिट दी है और महाराष्ट्र को छोड़कर यह फिल्म हर राज्य में दिखाई जा रही है। कहीं से भी कानून व्यवस्था कि स्थिति बिगड़ने की कोई सूचना नहीं मिली है, ऐसे में महाराष्ट्र में प्रतिबंध लगाना मुझे जायज नहीं लगता है।’
कमाल खान कानून व्यवस्था के नाम पर उनकी फिल्म पर रोक लगाने पर काफी खफा हैं। वह इस बात पर ऐतराज जताते हुए कहते हैं कि राज्य सरकार ने फिल्म रिलीज होने के एक दिन पहले यानी 13 तारीख को बिना किसी नोटिस के ही अखबारों के जरिए फिल्म पर प्रतिबंध लगाने का फैसला कर लिया जो बहुत गलत था। उन्हें यह बताना चाहिए था कि फिल्म में किस सीन पर आपत्ति है जिसे काटा जाना जरूरी है तो हम निश्चित तौर पर उस पर कार्रवाई करते।
गौरतलब है कि कमाल खान भोजपुरी फिल्में बनाते हैं। अखिलेश चौबे का इस पर कहना था कि इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाना उतना गलत नहीं है लेकिन प्रतिबंध जिस तरह से लगाया गया वह बहुत गलत है। पहले राज्य सरकार ने इसकी कोई नोटिस दिए बगैर यह कदम उठा लिया जो गलत है।
हालांकि चौबे ने यह बात जाहिर कर ही दी कि उन्हें भी फिल्म के दो सीन को लेकर ऐतराज है क्योंकि इसमें महाराष्ट्र के लोगों के चरित्र को थोड़ा नकारात्मक दिखाया गया है जो सही नहीं है। इस फिल्म के वितरण की कमान संभाल रहे जोगिंदर महाजन का कहना है, ‘दिल्ली और एनसीआर में दोस्ताना के बाद ‘देशद्रोही’ दूसरे नंबर पर है। देश के छोटे शहरों में केवल ‘दोस्ताना’ और ‘देशद्रोही’ के कारोबार में 20 फीसदी का ही अंतर है।
‘दोस्ताना’ जहां 90 करोड़ रुपये के बजट की फिल्म है वहीं ‘देशद्रोही’ की लागत 5-6 करोड़ रुपये है। ऐसे में देशद्रोही का कारोबार अच्छी ही मानी जा सकती है। बिहार में तो यह फिल्म हिट हो रही है क्योंकि इसने ‘दोस्ताना’ को भी पीछे छोड़ दिया है। बिहार में यह फिल्म 1 करोड़ रुपये से ज्यादा का कारोबार करेगी और दिल्ली और यूपी में भी लगभग इतना ही कारोबार करेगी।’
इस फिल्म पर रोक लगाने का फैसला सही है या नहीं इस पर कांग्रेस सांसद संजय निरूपम का कहना है कि राज्य सरकार ने प्रतिबंध नहीं लगाया है बल्कि 60 दिनों की रोक लगाई है। हाल ही में महाराष्ट्र में जिस तरह की स्थिति बन गई थी उसे देखते हुए कानून और प्रशासन व्यवस्था के लिए यह फैसला लिया गया था कि सात दिनों तक इस फिल्म के दूसरे राज्यों में रिस्पांस को देखते हुए कोई फैसला किया जाएगा।
निरूपम का कहना है, ‘यह फैसला राजनीतिक नहीं बल्कि प्रशासनिक फैसला था। मैंने यह फिल्म देखी नहीं है लेकिन मैं यह जरूर कहूंगा कि कोई भी कला समाज में नकारात्मक संदेश को न फैलाए तो बेहतर है। हमारे समाज में वैसे ही बहुत ज्यादा विद्वेष की भावना फैली हुई है। कोई भी निर्माता या नेता समाज में द्वेष की भावना को बढ़ा कर बड़ा नहीं बन सकता है।’
फिल्म वितरण से जुड़े जनसंपर्क अधिकारी ने नाम न जाहिर करते हुए कहा कि इस फिल्म को दिल्ली जैसे मेट्रो शहर के दर्शक पचा नहीं पाएंगे। लेकिन बिहार और यूपी में दर्शक इस फिल्म को हाथों हाथ ले सकते हैं।
रीगल थियेटर में ‘देशद्रोही’ देखने वाले विवेक का कहना है कि इस फिल्म के निर्माता ने अपने हीरो बनने के मोह को नहीं त्यागा इसी का खामियाजा इस फिल्म को भुगतना पड़ेगा। एक अच्छे विषय की फिल्म में बढ़िया हीरो न होने की वजह से फिल्म दमदार नहीं दिखती है।
अगर कमाल खान की जगह कोई और अभिनेता इस फिल्म में होता तो यह फिल्म जबरदस्त रूप से हिट होती। इस फिल्म को देखने वाली डीयू की छात्रा प्रिया का कहना है कि इसके डॉयलॉग तो ताली बजवाने के लिए ही लिखे गए हैं लेकिन प्रोडक्शन लेवल में बहुत सारी कमियां भी दिखती हैं।
हालांकि कुछ दर्शकों का यह भी कहना है कि इस कहानी के मुताबिक हीरो खूब जमता भी है क्योंकि बिहार के गांव से आया कोई आदमी शाहरुख खान जैसा जोश दिखाए यह वास्तविक नहीं लगता है। फिल्म वितरक महाजन भी इस बात को स्वीकारते हैं कि मराठी और बिहारी मुद्दे के जोर पकड़ने के कारण फिल्म विवादास्पद तो हो गई लेकिन इसकी वजह से दर्शकों की उम्मीदें भी बढ़ गई।
दर्शकों की जितनी उम्मीदें थी यह फिल्म उस पर तो खरी नहीं उतर पाई है क्योंकि यह फिल्म मीडियम लो क्लास फिल्म है। कमाल खान मानते हैं कि देशद्रोही हर जगह हिट हो रही है ऐसे में मुंबई में प्रतिबंध लग जाने की वजह से करोड़ों का नुकसान तो हो ही रहा है। बिहार और यूपी में ‘कृश’ और ‘विवाह’ के बाद सबसे ज्यादा पब्लिसिटी और ओपनिंग देशद्रोही को ही मिल
रही है।
कमाल खान की मानें तो फिल्म की लागत 12 करोड़ रुपये है। उनका कहना है कि ‘दोस्ताना’ की ओपनिंग जहां 40 प्रतिशत है वहीं ‘देशद्रोही’ की ओपनिंग 60 प्रतिशत तक है। कमाल खान का कहना है कि मनोज कुमार की फिल्मों तरह ही उन्होंने इस फिल्म को एक सामाजिक संदेश के तौर पर पेश करना चाहा था जिसमें वह काफी हद तक कामयाब हुए हैं।