प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस सप्ताह राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ चर्चा की ताकि कोविड-19 के खिलाफ देश की लड़ाई में आगे की रूपरेखा तैयार की जा सके। देश में कोरोनावायरस के बढ़ते मामलों के बीच भी उन्होंने अनलॉक 2.0 की तैयारी की आवश्यकता को रेखांकित करके अच्छा किया। अब तक यह स्पष्ट हो चुका है कि दोबारा लॉकडाउन लागू करना कोई विकल्प नहीं है क्योंकि लोगों के सामने आजीविका का संकट उत्पन्न हो रहा है। मोदी ने देश के महामारी से निपटने के तरीके के बारे में भी बात की और यह जिक्र भी किया कि चरणबद्ध तरीके से किए जा रहे खुलेपन को लेकर अर्थव्यवस्था किस तरह प्रतिक्रिया दे रही है। उनके आशावाद के बावजूद भारत को अभी दोनों मोर्चों पर लंबा सफर तय करना है। हालांकि सुधार की दर बेहतर हुई है लेकिन संक्रमण अभी भी बढ़ रहा है और दिल्ली तथा मुंबई जैसे बड़े शहरों में चिकित्सा बुनियादी ढांचा गंभीर दबाव में है। भारत ने पीपीई किट और मास्क तैयार करने की दिशा में अच्छा काम किया है लेकिन सरकार बढ़ते मामलों के साथ चिकित्सा बुनियादी ढांचे और व्यवस्था का तालमेल नहीं बिठा पाई। मोदी ने जांच, ट्रैकिंग और संक्रमित व्यक्ति को अलग-थलग करने पर उचित ही जोर दिया लेकिन जमीन पर ऐसा वांछित पैमाने पर नहीं हो पा रहा है। देश में अभी भी पर्याप्त जांच नहीं हो रही है। राष्ट्रीय राजधानी में जांच का दायरा बढ़ाया जा रहा है लेकिन वह भी तब जब संक्रमण की दर 30 फीसदी का स्तर पार कर गई। जाहिर है भारत जांच और जरूरी चिकित्सा ढांचे के मामले में काफी पीछे है। अनलॉक करने का लाभ इस बात पर भी निर्भर है कि भारत कितनी तेजी से वायरस को नियंत्रित कर पाता है।
आर्थिक मोर्चे पर प्रधानमंत्री कुछ अच्छे संकेत भी देख रहे हैं क्योंकि बिजली और ईंधन खपत के मोर्चे पर सुधार नजर आया है। आर्थिक गतिविधियों के पूरी तरह ठप होने के बाद कामकाज दोबारा शुरू होने पर यह अप्रत्याशित नहीं है। हालांकि कुछ व्यक्तिगत संकेत सकारात्मक नजर आ सकते हैं लेकिन कुलमिलाकर देखा जाए तो अर्थव्यवस्था आने वाले कुछ समय तक दिक्कत में बनी रहेगी। मसलन फिच रेटिंग ने भारत की सॉवरिन रेटिंग के बारे में अपना पूर्वानुमान गुरुवार को स्थिर से घटाकर नकारात्मक कर दिया। उसका अनुमान है कि देश की अर्थव्यवस्था चालू वित्त वर्ष में 5 फीसदी सिकुड़ेगी। यह कई अन्य पूर्वानुमानों के अनुरूप ही है। सच यह है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट का सिलसिला तो कोविड के पहले से चल रहा था और अब सुधार की राह और दुरूह हो गई है। सरकार की वित्तीय स्थिति तनावग्रस्त है और वह अर्थव्यवस्था की ज्यादा मदद नहीं कर सकती। मसलन पहली तिमाही में प्रत्यक्ष कर संग्रह 32 फीसदी घटा है। आर्थिक गतिविधियों के अलावा इससे यह भी पता चलता है कि सरकारी वित्त का प्रबंधन कितना मुश्किल होगा। चालू वर्ष में सरकारी कर्ज में 10 फीसदी से अधिक इजाफा होने की आशंका है जो अर्थव्यवस्था को मदद पहुंचाने की सरकार की क्षमता को और सीमित करेगा। व्यापार में बाधा और वैश्विक मांग में कमी के चलते आर्थिक सुधार बहुत सीमित रहेगा।
चिंता की बात यह है कि भारत जहां वायरस से निपटने की कोशिश कर रहा है वहीं कई देशों में संक्रमण की दूसरी लहर देखने को मिली है। इनमें चीन भी शामिल है। इससे वैश्विक आर्थिक सुधार प्रभावित हो सकता है और अनिश्चितता बढ़ सकती है। भारतीय अर्थव्यवस्था में आने वाली तिमाहियों में सुधार हो सकता है लेकिन यह कितनी मजबूती से होगा यह काफी हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि वायरस पर कितनी जल्दी नियंत्रण पाया जाता है और किस तरह का आर्थिक हस्तक्षेप किया जाता है। यदि वायरस पर प्रभावी नियंत्रण नहीं हुआ तो खुलापन लाने के लाभ नहीं मिल पाएंगे।
