पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के निष्कर्षों से एक बार फिर यह साबित होता है कि दो भारत मौजूद हैं। कुछ दिन पहले कॉमेडियन वीर दास ने यही बात अपने ढंग से कही थी। तमिलनाडु जिस भारत का प्रतिनिधित्व करता है, वहां डायरिया के मामले उस भारत से एक तिहाई से भी ज्यादा कम हैं जिनका प्रतिनिधित्व बिहार करता है। शिशु मृत्यु दर भी वहां केवल 40 फीसदी और प्रजनन दर 60 फीसदी है। तमिलनाडु की तुलना में बिहार मेंं शिक्षित महिलाएं या प्रति 1,000 आबादी पर चिकित्सक अनुपात के मामले में भी बहुत पीछे है जबकि ठिगने बच्चों या कमजोर बच्चों का अनुपात तमिलनाडु से 50 फीसदी अधिक है।
इसके बावजूद ये दोनों एक ही भारत का हिस्सा हैं जिसमें 95 से 100 प्रतिशत परिवारों की पहुंच बिजली और पीने के पानी तक है। जहां तक बैंक खाताधारी महिलाओं की बात है तो भी यहां अंतर अन्य मानकोंं की तुलना मेंं कुछ कम है। मसलन तमिलनाडु में 92 प्रतिशत जबकि बिहार में 77 प्रतिशत महिलाओं के पास बैंक खाते हैं। ऐसे में किसी को भी यह आशा हो सकती है कि आगे चलकर हमें वही भारत अधिक देखने को मिलेगा जिसका प्रतिनिधित्व तमिलनाडु करता है। लेकिन प्रजनन अनुपात के अंतर को देखते हुए हमेंं ऐसे भारतीय ज्यादा मिलेंगे जिनकी जिंदगी की हकीकत बिहार के करीब हो।
तमिलनाडु के भारत मेंं दक्षिण और पश्चिमी भारत के अधिकांश राज्य शामिल हैं। इन राज्यों तथा हरियाणा जैसे राज्यों को मिला दिया जाए तो उनकी सालाना शुद्ध प्रति व्यक्ति आय करीब 3,000 डॉलर है। यह राशि शुद्ध आय के राष्ट्रीय औसत से 75 प्रतिशत अधिक है। संपूर्ण भारत की प्रति व्यक्ति आय नाइजीरिया की प्रति व्यक्ति आय से कुछ कम ही है। तमिलनाडु की प्रति व्यक्ति आय फिलीपींस के करीब है। बिहार की प्रति व्यक्ति आय देश की शुद्ध प्रति व्यक्ति आय से बमुश्किल एक तिहाई है। यह नाइजर के करीब है जो प्रति व्यक्ति आय के मामले में 215 देशों में 204वें स्थान पर और मानव विकास सूचकांक में सबसे पीछे है। उत्तर प्रदेश को नाइजर के पड़ोस में माली के करीब रखा जा सकता है जो अफ्रीका के सहेल इलाके मेंं आता है।
जाहिर है हमारे सामने दो भारत हैं एक अफ्रीका के सहेल क्षेत्र के समान है तो दूसरा फिलीपींस के समान। आर्थिक वृद्धि की दरों की तुलना करना बेमानी है क्योंकि राज्यों की वृद्धि दर के दावे राष्ट्रीय आंकड़ों से भी अधिक अविश्वसनीय हैं। लेकिन यह बात आसानी से महसूस की जा सकती है कि निजी निवेश उस भारत की ओर है जो फिलीपींस की गति हासिल कर सकता है, न कि उस भारत की ओर जो अफ्रीका के सहेल क्षेत्र के समान है। क्या सरकारी निवेश इस अंतर को पाटता है? आप ऐसा सोच सकते हैं क्योंकि उत्तर प्रदेश में कुछ बुनियादी ढांचा परियोजनाएं इन दिनों चर्चा में हैं। लेकिन केंद्र का प्रति व्यक्ति राजकोषीय हस्तांतरण बिहार के लिए कम है और अमीर राज्यों के लिए अधिक। गरीब राज्योंं के अपने कर संसाधन भी अमीर राज्यों से कमजोर हैं।
ये दोनों भारत एक दूसरे के करीब आते नहीं दिख रहे हैं। उत्तर प्रदेश ने प्रभावित करने वाले एक्सप्रेसवे बनाए हैं और उसका दावा है कि वह जेवर में एशिया का सबसे बड़ा हवाई अड्डा तैयार कर रहा है लेकिन दिल्ली का मौजूदा हवाई अड्डा जेवर के प्रस्तावित चौथे चरण की अनुमानित यात्री संख्या को अभी भी संभाल रहा है और एशिया में पहले ही इससे ज्यादा बड़े पांच हवाई अड्डे मौजूद हैं। चाहे जो भी हो लेकिन जेवर का वास्तविक दायरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में उतना नहीं होगा जितना कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का।
देश के अधिकांश लोगों की नजर पूर्व से पश्चिम दिशा में होने वाले प्रवासन पर उस समय पड़ी जब सन 2020 के कोविड लॉकडाउन के कारण लाखों की तादाद में श्रमिकों ने सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करके अपने घरों की ओर लौटना शुरू किया। लेकिन अब हरियाणा जैसे राज्य बाहरी लोगों को नियुक्तियां देने के खिलाफ नियम कायदे पेश कर रहे हैं। उन्हें इस बात का अहसास नहीं है कि भारत के पिछड़े इलाकों के लोग कम वेतन पर और उन परिस्थितियों में काम करने को तैयार हैं जिनमें हरियाणा के मूल निवासी शायद कभी काम करने को तैयार न हों। हरियाणा के मूल निवासी युवा गुडग़ांव के कांच के टावरों में काम तो करना चाहते हैं लेकिन उनके पास उसके लिए जरूरी शिक्षा नहीं है। कारण यह कि देश में दो हरियाणा भी मौजूद हैं। जब आप दोनों भारत को एक साथ रखेंगे तो हमारे यहां इतनी आर्थिक वृद्धि नहीं है कि हम पर्याप्त संख्या में रोजगार तैयार कर सकें। यदि पलायन से भी राहत नहीं मिलती है तो बिहार जैसे राज्यों में कमजोर स्वास्थ्य वाले तथा कम शिक्षित भारतीय हमें और अधिक पीड़ा का अहसास कराएंगे।
