अगर आप ‘ट्रू लाइज’ और ‘वागले की दुनिया’ के बीच की क्रॉसओवर कहानी के बारे में सोचेंगे तो आपके सामने ‘द फैमिली मैन’ आ जाएगी। एक खुफिया अधिकारी की जिंदगी की जद्दोजहद को दर्शाने वाली इस सीरीज की कहानी अच्छे ढंग से लिखी गई है, बढिय़ा कलाकार चुने गए हैं और निर्माण का स्तर भी उम्दा है। एमेजॉन प्राइम वीडियो पर आए इसके दूसरे सीजन को भी लोगों ने काफी पसंद किया।
प्राइम वीडियो 386 अरब डॉलर वाली ई-कॉमर्स दिग्गज एमेजॉन का ओटीटी प्लेटफॉर्म है। सालाना 999 रुपये के शुल्क वाली सदस्यता लेने वाले प्राइम उपभोक्ता को न सिर्फ खरीदे गए सामान की नि:शुल्क डिलिवरी मिलती है बल्कि उसे प्राइम म्यूजिक एवं प्राइम वीडियो पर उपलब्ध कंटेंट को भी देखने-सुनने की छूट मिलती है। फिर आपके सामने यूट्यूब है जो दुनिया में प्रतिभा प्रदर्शन का मंच बनने के साथ सबसे बड़ा ओटीटी प्लेटफॉर्म भी है। यह यह 183 अरब डॉलर वाली कंपनी अल्फाबेट ग्रुप का हिस्सा है जिसके पास गूगल का भी स्वामित्व है। दूसरी तरफ 86 अरब डॉलर की कंपनी फेसबुक का हमारे सामाजिक एवं तेजी से बढ़ती कामकाजी जिंदगियों पर पूरा कब्जा हो चुका है। वैश्विक स्तर पर 2.8 अरब से ज्यादा लोग फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं जो अपने परिजनों एवं दोस्तों से जुडऩे का माध्यम होने के साथ अपने विचार लिखने और वीडियो देखने के साथ कारोबार करने का भी जरिया है। फेसबुक की ही इंस्टैंट मेसेजिंग सेवा व्हाट्सऐप के भी दुनिया भर में 2 अरब से अधिक उपयोगकर्ता हैं जो तस्वीरें एवं छोटे वीडियो साझा करने के साथ बातचीत के लिए भी इसका इस्तेमाल करते हैं। फेसबुक के ही एक अन्य ब्रांड इंस्टाग्राम का भी करीब एक अरब इस्तेमाल करते हैं। सवाल है कि एमेजॉन, गूगल या फेसबुक फिर क्या हैं? क्या वे तकनीक-आधारित फर्में हैं, मीडिया दिग्गज हैं, सोशल मीडिया एग्रीगेटर हैं या फिर ई-कॉमर्स कंपनी हैं? दरअसल तकनीक, मीडिया एवं दूरसंचार एक साथ विलीन होकर तेजी से बदलती पारिस्थितिकी का निर्माण कर रहे हैं।
जे के राउलिंग की किताब हैरी पॉटर के रूप बदलने वाले किरदार बोगार्ट की ही तरह यह भी काफी कुछ वही आकार ले लेता है जैसा आप चाहते हैं। इसके जरिये आप खबरें पढ़ सकते हैं, पकवान बनाने के तरीके सीख सकते हैं, मनचाही फिल्में देख सकते हैं, गाने सुन सकते हैं, मनोरंजक वीडियो देखकर हंस सकते हैं, कोई मीम या चुटकुला अपने दोस्तों एवं परिजनों के साथ साझा कर सकते हैं या किसी जरूरी बैठक या परिचर्चा में हिस्सा ले सकते हैं।
दशकों तक हम सम्मिलन (कन्वर्जेंस) के बारे में पढ़ते एवं सुनते आए हैं लेकिन अब यह हमारे सामने मौजूद है। इंटरनेट की सर्वव्यापकता और उच्च गुणवत्ता वाले बैंडविड्थ एवं उपकरणों के प्रसार से ऐसा हो पाना मुमकिन हुआ है। कोविड-19 महामारी ने तो हमारी जिंदगी पर इंटरनेट के प्रभाव को और गहरा करने का काम किया है। इस नई दुनिया में एक मीडिया कंपनी क्या है? इसके जवाब का तकनीक, कंटेंट या वंशावली से कोई लेना-देना नहीं है।
मीडिया क्षेत्र में कदम रखने वाली कई कंपनियों के बड़े, लाभ कमाने वाले एवं रेखीय कारोबार हैं। मसलन, डिज्नी के पास तीन ओटीटी प्लेटफॉर्म (डिज्नी प्लस हॉॅटस्टार, डिज्नी प्लस एवं हुलू) होने के साथ ही दुनिया के सबसे बड़े फिल्म स्टूडियो में से एक और भुगतान-आधारित टीवी कारोबार भी हैं। इसी तरह गूगल का वीडियो प्लेटफॉर्म यूट्यूब 2 अरब उपयोगकर्ताओं एवं 20 अरब डॉलर राजस्व के साथ नेटफ्लिक्स (2.1 करोड़ उपयोगकर्ता एवं 25 अरब डॉलर राजस्व) का सबसे बड़ा प्रतिद्वंद्वी है। सबसे बड़ी ऑनलाइन खुदरा विक्रेता एमेजॉन के पास प्राइम वीडियो सेवा ग्राहकों को अपने प्लेटफॉर्म पर लाकर खरीदारी के लिए प्रोत्साहित करने का ही जरिया है। एमेजॉन के संस्थापक जेफ बेजोस ने एक बार कहा था कि गोल्डन ग्लोब पुरस्कार जीतने पर कंपनी को ज्यादा जूते बेचने में मदद मिलती है। भारत में भी फ्लिपकार्ट एवं जोमैटो ने लोगों को ऑनलाइन खरीदारी एवं फूड डिलिवरी के समय अपने पोर्टल पर देर तक रोके रखने के लिए 2019 में वीडियो कंटेंट परोसना शुरू किया था। मीडिया कंपनियां अब खुदरा विक्रेता एवं तकनीकी जानकार बनती जा रही हैं जबकि विक्रेता एवं तकनीकी विशेषज्ञ दर्शकों को अपने साथ बनाए रखने के लिए मीडिया के क्षेत्र में आ रही हैं।
भौगोलिक क्षेत्रों, तकनीकों, भाषाओं, मिजाज, स्वरूप एवं उपकरणों से परे अपने लिए दर्शकों की यह खोज ही आज के दौर में एक मीडिया कंपनी को परिभाषित करती है। और यह पहलू मीडिया व्यवसाय की गतिशीलता में भी बारीक बदलाव ला रहा है।
मसलन, आंकड़ों की भरमार एवं पारदर्शिता का शोर होने के बावजूद यही लगता है कि ऑन-डिमांड व्यवस्था में यह चीज उतनी अहम नहीं रह गई है। दुनिया की बड़ी कामयाबियों में शामिल नेटफ्लिक्स या स्पॉटिफाई बुनियादी संख्या से इतर बहुत कम ही कुछ सूचनाएं साझा करती हैं। क्या ऐसा विज्ञापनों पर निर्भर न होने के कारण है? नेटफ्लिक्स को अपना सारा राजस्व ग्राहकों से प्राप्त शुल्क के रूप में मिलता है। लेकिन स्पॉटिफाई और एमेजॉन प्राइम वीडियो में भुगतान और विज्ञापन शुल्क दोनों का ही मिला-जुला रूप है। गूगल एवं यूट्यूब काफी हद तक विज्ञापन से संचालित हैं लेकिन उनके सारे आंकड़े सार्वजनिक नहीं हैं। दर्शकों की गिनती का इस्तेमाल विज्ञापन जुटाने के लिए करने के बजाय अब सेवा को सीधे उपभोक्ता तक पहुंचा देने का ढांचा सामने आया है। विज्ञापनदाता भुगतान पारिस्थितिकी से बाहर होने लगे हैं, लिहाजा प्रीमियम दर्शक भी गंवा रहे हैं। दूसरी तरफ भुगतान-आधारित सेवा का मतलब है कि आपको कंटेंट में काफी विविधता देखने को मिलेगी और सृजनात्मक आजादी भी। हालांकि नई व्यवस्था के तमाम पहलू काफी हद तक नियमन के दायरे में नहीं हैं। हालांकि कारोबार व्यवस्थित होने पर कुछ बदलावों के स्थिर हो जाने की उम्मीद है लेकिन भुगतान एवं विज्ञापन के बीच का संतुलन शायद बना रहेगा। बहरहाल हम जिस मीडिया कंपनी को जानते रहे हैं, वह तो अब खत्म हो चुकी है।