इस समय रिटेल कारोबार को लेकर देश में बड़ी बहस छिड़ी हुई है। बड़ी-बड़ी देसी और विदेशी कंपनियां इस बाजार में पैठ बनाने की कवायद में जुटी हुई हैं।
दूसरी ओर, छोटे कारोबारियों के सामने भी अपने धंधे को बचाने की चुनौती है। इसी विषय पर है आज की जिरह
फायदे का सौदा है रिटेल
डा. अमित मित्रा
महासचिव, फिक्की
पिछले कुछ सालों में दुनिया भर में रिटेल उद्योग के स्वरूप में व्यापक बदलाव आया है। न केवल विकसित देशों में बल्कि उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों में भी रिटेल बाजार में इस दौरान बड़ा परिवर्तन आया है। भारत में भी इस उद्योग में बेहद संभावनाएं देखी जा रही हैं।
दरअसल भारत में मध्य वर्ग के पास खर्च करने की जो नई ताकत आई है, उसने रिटेल उद्योग के लिए नये दरवाजे खोल दिए हैं। पिछले पांच साल में भारत में रिटेल उद्योग में बहुत ज्यादा तेजी आई है। एक अनुमान है कि वर्ष 2010 तक पूरे रिटेल बाजार में संगठित रिटेल क्षेत्र की हिस्सेदारी 20 फीसदी तक पहुंच जाएगी और पूरे सेक्टर का कारोबार लगभग 13,120 अरब रुपये से बढ़कर लगभग 17,200 अरब रुपये तक पहुंच जाएगा।
इसमें भी गौर करने वाली बात यह है कि रिटेल सेक्टर में जो निवेश हो रहा है उसमें से 92 फीसदी तो शहरी क्षेत्र में हो रहा है और बाकी 8 फीसदी निवेश ग्रामीण क्षेत्र में किया जा रहा है। शहरों में भी जो निवेश हो रहा है उसमें से 38 फीसदी हाइपरमार्केट में और 21 फीसदी सुपरमार्केट में हो रहा है। इस पूरे निवेश में से भी 62 फीसदी निवेश बड़े शहरों में किया जा रहा है।
अतरराष्ट्रीय परामर्शदाता कंपनी ए.टी.केयर्ने अपने ग्लोबल रिटेल डेवलपमेंट इंडेक्स (जीआरडीआई) में 25 आर्थिक बिंदुओं के आधार पर उभरती हुई अर्थव्यवस्था वाले देशों की रैंकिंग करती है। पिछले तीन साल में भारत दुनिया भर में सबसे बेहतरीन रिटेल बाजार के तौर पर उभरा है। इसलिए दुनिया भर की बड़ी रिटेल कंपनियां यहां कारोबार की संभावनाएं तलाश रही हैं।
रोजगार देने के मामले में भी रिटेल सेक्टर बहुत आगे है। एनएसएसओ के 2004-05 के सर्वेक्षण के अनुसार देश भर में रिटेल क्षेत्र के जरिये तकरीबन 3.56 करोड़ लोगों को रोजगार मिला हुआ है जो कि देश के कुल रोजगार का 7.3 फीसदी है।
फिक्की ने अपनी रिटेल संबंधी रिपोर्ट में कई सिफारिशें की हैं। जो इस प्रकार हैं।
इस सेक्टर को उद्योग का दर्जा दिया जाए
इसमें प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी जाए
करों को तर्कसंगत बनाया जाए
कर्मचारियों को प्रशिक्षित किया जाए
लाइसेंस के लिए आवश्यकताओं को कम किया जाए (अभी फिलहाल एक स्टोर के लाइसेंस के लिए 30 से ज्यादा औपचारिकताओं को पूरा करना होता है)
इक्रियर की हाल ही की रिपोर्ट के मुताबिक संगठित रिटेल कारोबार उपभोक्ताओं, उत्पादकों किसानों, छोटे कारोबारियों के साथ-साथ बिचौलियों को भी फायदा पहुंचा रहा है। इस रिपोर्ट में जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात सामने आई, वह यह है कि बड़े-बड़े रिटेल स्टोरों की वजह से छोटे कारोबारियों को कोई नुकसान नहीं पहुंच रहा है। असल में उसमें कहा गया है कि अतिरिक्त मांग पूरी करने के लिए रिटेल के दोनों तरीकों की जरूरत है।
इन सिफारिशों के अलावा कुछ और कदम भी रिटेल कारोबार की रफ्तार को और बढ़ा सकते हैं। जैसे-गैर जरूरी कानूनों को हटाना, जीएसटी लागू करना, रिटेलरों को उनके नियम खुद बनाने देने की छूट देना और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के जरिये बेहतरीन बुनियादी सुविधाएं विकसित करना।
यदि इस ओर ध्यान दिया जाए तो सबको फायदा पहुंच सकता है। रिटेल कारोबारी, किसान, उपभोक्ता सभी इससे लाभान्वित होंगे। इसके अलावा इससे रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
रिटेल लाएगी बेरोजगारी
बनवारी लाल कंछल
राज्य सभा सदस्य
खुदरा व्यापार के क्षेत्र में कॉरपोरेट घरानों को इजाजत देश के लिए आत्मघाती कदम होगा। पश्चिमी देशों की नकल में भारत सरकार एक ऐसा कदम उठा रही है जिसके दूरगामी नतीजे अच्छे नहीं होंगे। हमारी अर्थव्यवस्था का मॉडल औरों से अलग है।
भारत में आज भी करीब 80 करोड़ लोग 20 रुपये प्रतिदिन पर गुजारा कर रहे हैं। बड़े घरानों के खुदरा व्यापार के क्षेत्र में प्रवेश के बाद न केवल छोटे व्यापारी बल्कि लाखों और बेरोजगार होंगे। बड़े शॉपिंग मॉल एक लाख की बिक्री पर 90 लोगों को बेरोजगार कर रहे हैं। इस देश के छोटे खुदरा व्यापारी औसत एक दिन में 2000 रुपये का कारोबार करते हैं और वह खुद को मिलाकर एक और को रोजगार देता है।
इस तरह छोटा खुदरा व्यापारी एक लाख की बिक्री पर 100 लोगों को रोजगार देता है। शॉपिंग मॉल चलाने वाले एक लाख की बिक्री पर कुल 10 लोगों को ही रोजगार दे रहे हैं। यहां एक खास बात यह भी है कि छोटे खुदरा व्यापारी अपने यहां अनपढ़ों को भी रोजगार देते हैं जबकि शॉपिंग मॉल में ऐसा नहीं है। बड़े कॉरपोरेट घरानों में बिना पढ़े-लिखे लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है।
बड़े शॉपिंग मॉल देश की कृषि भूमि का क्षरण भी करते हैं क्योंकि इनका निर्माण कई लाख वर्ग फुट क्षेत्र में होता है। छोटे व्यापारी मात्र 100 वर्ग फुट की जगह पर अपना कारोबार चला लेते हैं। लगातार कृषि भूमि के क्षरण से एक दिन देश में गंभीर खाद्यान्न संकट पैदा हो जाएगा। इसकी तरफ भी सरकार को ध्यान देना होगा।
इस सब के अलावा कॉरपोरेट घरानों के पास अकूत धन है जो कि जमाखोरी को बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए रिलांयस ने पिछले साल हिमाचल प्रदेश की मंडियों से सारा सेब 15 से 20 रुपये किलो के दाम पर खरीद डाला और बाद में उसे 100 रुपये किलो के भाव पर बेच कर खूब मुनाफा कमाया। यही काम डाबर ने देश भर की लीची खरीद कर किया था।
बड़ों के लिए सब माफ है जबकि छोटे व्यापारियों पर जमाखोरी का आरोप लगता है। अब बाजार की चाभी कॉरपोरेट घरानों के पास है और वे ही कीमतें तय करते हैं। दरअसल देश के 400-500 बड़े व्यावसायिक घराने मिलकर महंगाई बढ़ा रहे हैं। शॉपिंग मॉल बिजली की खपत भी बढ़ाते हैं। छोटे व्यापारी के यहां औसत खपत 30 यूनिट बिजली की होती है। देश के ऊर्जा संकट को देखते हुए यह सही भी है।
केंद्र सरकार सोचती है कि शॉपिंग मॉल बनाना जरूरी है तो इसके लिए छोटे व्यापारियों को ही इजाजत देनी चाहिए। ऐसे मॉल 3000 से 4000 वर्ग मीटर से ज्यादा जगह पर नहीं बनने चाहिए और इसे स्थानीय व्यापारी ही बनाएं। बड़े घरानों का इस्तेमाल सरकार को बड़े कामों के लिए करना चाहिए जैसे कि एयरपोर्ट, बिजलीघर, सीमेंट और लोहे के क्षेत्र में निवेश के लिए इन्हें प्रोत्साहित करें।
जरुरी है कि केंद्र सरकार एक शॉपिंग रेयूलेशन एक्ट बनाए । मलेशिया में भी पहले शॉपिंग मॉल को बढ़ावा दिया गया पर जब बेरोजगारी बढ़ी तो वहां सरकार को कानून बनाना पड़ा। भारत में ऐसे कानून की जरुरत है तभी छोटे व्यापारी का हित देखा जा सकेगा। पहले तय होना चाहिए कि कितनी आबादी पर कितने शॉपिंग मॉल बनें।
विदेशों की नकल में अंधाधुंध शॉपिंग मॉल खोलकर न तो व्यापारी वर्ग का भला होगा न ही उपभोक्ताओं का। उत्तर प्रदेश में जब व्यापारियों ने रिलायंस फ्रेश का विरोध किया तो कई जगह उपभोक्ता भी खुलकर हमारे समर्थन में आगे आये थे।
2007-12 में आने वाले नए संगठित रिटेल स्टोर
नया रिटेल औसत स्टोर
स्पेस स्टोर साईज की संख्या
( मिलियन वर्ग फुट) (वर्ग फुट)
हाइपर मार्केट – 218 80,000 2,725
सुपर मार्केट – 86 4,000 21,500
कैश ऐंड कैरी – 76 150,000 507
डिपार्टमेंटल स्टोर – 32 40,000 803
स्पेश्यिलिटी स्टोर – 75 4,000 18,725
स्रोत:- टेक्नोपार्क एनालिसिस ऐंड इंडस्ट्री एस्टीमेट
कुछ प्रस्ताव और खास बिंदु
कंपीटिशन कमिशन ऑफ इंडिया को संगठित क्षेत्र के रिटेलरों की कीमतें तय करने के लिए की गई साठ-गांठ पर जरूर नजर रखनी चाहिए।
कई छोटे खुदरा कारोबारी व्यवसाय में बने रहना चाहते हैं और प्रतिस्पर्धा को भी जारी रखना चाहते हैं। उनकी यह कोशिश है कि उनकी आने वाली पीढ़ी भी उनके इस काम को जारी रखे।
असंगठित क्षेत्र के लगभग 90 प्रतिशत खुदरा कारोबारी स्वतंत्र रूप से अपना कारोबार जारी रखना चाहते हैं।
कृषि उत्पाद विपणन समिति मंडियों को है आधुनिक बनाए जाने की जरूरत।