हर देश की अपनी अलग पहचान होती है। और पहचान बनती है कुछ खास चीजों से, कुछ खास परंपराओं से, कुछ खास घटनाओं से, कुछ खास शख्सियतों से और कई अलग-अलग तौर तरीकों से। हमारे देश का इतिहास काफी पुराना है।
वक्त के कई पहलुओं को देखा है इस देश ने। कुछ खास चीजें इसकी पहचान को मुकम्मल बनाती हैं। पीढ़ियां जवान हो जाती हैं औैर जवान होकर फिर बूढ़ी लेकिन मुल्क की पहचान से जुड़े कुछ निशान और जवान होते जाते हैं।
बिजनेस स्टैंडर्ड की हमारी टीम ने देश की पहचान से जुड़े कुछ प्रतीकों को पेश करने की कोशिश की है। जाहिर है सबको समेटना तो बहुत मुश्किल है। इनमें से कुछ का जिक्र हम यहां कर रहे हैं।
योग
फिट रहने के लिए योग एक नया मंत्र बन गया है। हर कोई योग की बात कर रहा है।
दरअसल, यह अरसे तक अपने ही देश में उपेक्षित रहा जहां पर इसकी शुरुआत हुई। लेकिन पश्चिमी देशों में लोकप्रिय होने के बाद अपने मुल्क के बड़े शहरों में इसको बड़े पैमाने पर अपनाया जाने लगा।
मैडोना जैसी बड़ी सेलेब्रिटी योग की काफी हिमायत करती नजर आती है। कोई भी आपको योग करने की सलाह दे सकता है। वाकई में यह घर पर आराम से की जानी वाली क्रिया है जिसके लिए आपको बड़ी जगह की तलाश नहीं करनी पड़ती जिसकी कि कंक्रीट के जंगलों में तब्दील हो चुके बड़े शहरों में बड़ी किल्लत है।
डोसा
डोसे के साथ दक्षिण भारतीयों खासकर मद्रासियों की पहचान जुड़ी हुई है। अब लोग इसको लेकर तरह-तरह के प्रयोग भी करने लगे हैं। मसलन इस विशुद्ध दक्षिण भारतीय खाने में उत्तर भारतीय खाने के खास हिस्से पनीर का भी इस्तेमाल होने लगा है। और डोसे की लोकप्रियता बढ़ती जा रही है।
असली का बोलबाला
अगर महबूब खान की 1957 में आई मदर इंडिया ने नरगिस को एक आदर्श के रूप में स्थापित किया तो तकरीबन 10 साल में बनकर तैयार हुई के. आसिफ की मुगले आजम ने कमाई के नये रिकॉर्ड बना दिए जिसके रिकॉर्ड को 15 साल बाद रमेश सिप्पी की शोले ने तोड़ा।
राज कपूर की बॉबी में मिनी स्कर्ट्स में नजर आने वाली डिंपल कपाड़िया और रंगीन कमीजों के साथ बैलमॉटम पहने ऋषि कपूर बॉलीवुड में रोमांस का संदेश लेकर आए। कुल मिलाकर, भावनाओं, ड्रामा, एक्शन का बॉलीवुड का सफर बेहतरीन रहा है और यह बदस्तूर जारी है।
शानदार डिजाइन
अगर भारतीय डिजाइन की बात करें तो लोटे का डिजाइन कमाल का साबित होगा। दरअसल, यह गोलमटोल आकार का पानी का बर्तन पीतल, तांबा, चांदी और यहां तक कि स्टील का भी बनने लगा है। यह सदियों से काम में लाया जा रहा है।
इसका सादा आकार और कहीं भी लाने ले जाने की सुविधा इसे इक्कीसवीं सदी का बेहतरीन डिजाइन बनने पर मुहर लगाती हैं। यह भारत की शानदार परंपराओं का गवाह रहा है। लोटे को कई अलग-अलग कामों में इस्तेमाल किया जाता है औैर देश के एक बड़े तबके में लोटे का काफी चलन है।
आयुर्वेद
कई लोगों का मानना है कि आयुर्वेद इलाज की सबसे पुरानी पद्धति है। आयुर्वेद दो शब्दों से मिलकर बना है पहला तो ‘आयु’ जिसका मतलब है जीवन और दूसरा ‘वेद’ यानी ज्ञान या विज्ञान।
इस तरह आयुर्वेद का अर्थ निकलता है जीवन के बारे में जानने वाला विज्ञान। आज की तारीख में आयुर्वेद देश का सबसे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक निर्यात है।
आयुर्वेद का चलन इतना बढ गया है कि दुनिया भर में इसे लेकर शोध होने लगे हैं। चिंता इस बात की है कि कुछ चीजों का पेटेंट पश्चिमी देश अपने नाम करा सकते हैं।
जबकि वह चीजें काफी अरसे से देश में उपयोग होती रही हैं। फिलहाल तो आयुर्वेद कमाई का एक बड़ा जरिया बना हुआ है। विदेशी लोग और देसी धनाढय भी ऑयल मसाज या फिर आयुर्वेदिक स्पा के लिए मोटी रकम चुकाने से परहेज नहीं करते।
डब्बावाला
दौड़ते भागते मुंबई शहर में डब्बेवालों ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। हंसते-हंसते बेहतरीन काम करने की अपनी आदत की वजह से न केवल ब्रिटेन के प्रिंस चार्ल्स बल्कि वर्जिन अटलांटिक समूह के मुखिया रिचर्ड ब्रैनसन जैसी कई शख्सियते इनसे प्रभावित हुई हैं। इनका नेटवर्क जबदस्त है और खाना पहुंचाने में इनकी सर्विस लाजवाब है।
फोर्ब्स मैगजीन भी इनकी पीठ थपथपा चुकी है। इनके यहां गलती की गुंजाइश न के बराबर है और इस मामले में डब्बेवाले- मोटोरोला, जेनपैक्ट, विप्रो, इन्फोसिस और आईबीएम जैसी कंपनियों के प्रदर्शन से भी आगे हैं। वक्त के ये बड़े पाबंद हैं। अब ई मेल और एसएमएस के जरिये भी ऑर्डर ले रहे हैं।
आउटसोर्सिंग
बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (बीपीओ) पिछले दशक की एक बड़ी आर्थिक उपलब्धिओं में से एक रही है। बीपीओ ने कॉलेज की शिक्षा खत्म करके निकले उन तमाम युवाओं के सपनों में पंख लगाने में मदद की जो जल्द से जल्द बहुत कुछ हासिल कर लेना चाहते हैं।
फिलहाल यह कारोबार 12.5 अरब डॉलर तक का हो गया है और इसके जरिये सात लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। हालांकि मंदी में कुछ आशंकाएं जताई जा रही हैं ।
लेकिन उम्मीद यही की जा रही है कि देसी बीपीओ उद्योग पर इसका ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा और 2010 तक यह 73 से 75 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा।
ढाबा
हाईवे पर खाने-पीने की जगहों को आमतौर पर ढाबा कहते हैं। वैसे ढाबे की उत्पत्ति का श्रेय पंजाब को दिया जा सकता है। अब ढाबे हाईवे की सीमा को लांघ चुके हैं और शहरों की खास जगहों पर बड़े रेस्तरां अपने आप को ‘ढाबे’ का नाम दे रहे हैं।
ढाबे के माहौल ने कई बड़े नामी गिरामी होटलों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। ‘ढाबे’ की थीम को लेकर कई बड़े-बड़े फूड फेस्टिवल तक अब आयोजित किए जा रहे हैं।