पिछले महीने मुंबई पर हुए हमले के बाद हालात कुछ-कुछ उसी राह पर जा रहे हैं, जो 2001 में संसद पर हमले के बाद बनी थी।
मतलब, पाकिस्तान पर फिर से आरोप लगाए जा रहे हैं और उसकी तरफ से कभी गुस्से से तो कभी नरमी से उन आरोपों से इनकार किया जा रहा है। दोनों देशों के बीच फिर से तनाव बढ़ चुका है। सेना को फिर से सीमाओं पर तैनात किया जा रहा है।
शांति प्रयासों में जुटे विदेशी राजनयिकों का आना-जाना भी फिर से शुरू हो चुका है। इसके बाद धीरे-धीरे शुरू होगा रिश्तों में जमी बर्फ का पिघलना। पिछली बार जब ये सारी घटनाएं एक साथ हुई थीं, तो उसका अंत एक शांति प्रक्रिया के साथ हुआ था।
लेकिन इस बार हालात थोड़े अलग हैं। इस बार भारत सैन्य तरीके से जवाब देने के मूड में नहीं है, जबकि पाकिस्तान में जंग की चर्चा तेज हो गई है और उसने अपने फौजियों को हिंदुस्तानी सरहद पर तैनात करना भी शुरू कर दिया है। लेकिन सबसे बड़ा अंतर यह है कि इस बार हिंदुस्तानी सरकार जबरदस्त तरीके से गुस्से में है।
इसीलिए शांति और समझौते की बात तो लंबे वक्त के लिए भूल ही जाइए। इसीलिए राह चाहे पुरानी ही हो, लेकिन इस बार वक्त खुद को दोहराने वाला नहीं है।
हालांकि, भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र के खिलाफ सही मायनों में कोई सैन्य कदम तो नहीं उठा सकता है, लेकिन असैनिक जवाबों की कमी कतई नहीं है।
हम चाहें तो पाकिस्तान के साथ अपने राजनयिक संबंधों को भी तोड़ सकते हैं। हम कश्मीर के मुद्दे पर वार्ता की ओर बढ़े अपने पैर भी वापस खींच सकते हैं।
हम अंतराष्ट्रीय समुदाय पर इस बात का दबाव डाल सकते हैं कि वह पाकिस्तान को वित्तीय मदद देना बंद करे, ताकि वह सही तरीके से बर्ताव करना सीख सके।
ऊपसे से, हम नदियों के मुद्दे पर वार्ता की तरफ बढ़े अपने कदम वापस खींच सकते हैं। इसलिए पाकिस्तान बहुत बड़ी गलती कर रहा है, अगर वह यह सोच रहा है कि इस घटना का असर उस पर नहीं होगा।
गहरे जख्मों को वह सिर्फ एक ही तरीके से भर सकता है, अगर वह अपनी सीमा के भीतर मौजूद तत्वों के खिलाफ सख्त कदमों को उठाए।
लेकिन बीते दिन इस बात की गवाही देते हैं, इस बारे में ज्यादा उम्मीदों को रखने का फायदा नहीं है। सबसे बड़ा खतरा तो यह है कि पाकिस्तान, खास तौर पर आईएसआई और सेना, भारत को भड़काना चाहते हों। जिससे तनाव का दूसरा दौर शुरू होगा।
इस वजह से खुद भारत पर ही ठोस कदमों को उठाने का बोझ बढ़ जाएगा। यह मुमकिन है कि पाकिस्तान अमेरिका पर दबाव बनाने का जुआ खेल रहा है।
वह अमेरिका में ओबामा और उनकी टीम को यह बताना चाहता है कि वह भारत की तरफ से मौजूद खतरे की वजह से अफगानिस्तान सीमा से अपनी फौजों को हटाकर हिंदुस्तानी सरहदों पर लगा रहा है।
वह साफ संकेत देना चाहता है कि अगर उन्होंने ज्यादा दबाव डालने की कोशिश की तो अफगानिस्तान मामले में पाकिस्तान अपने हाथ खींचने से भी गुरेज नहीं करेगा।
इस संकेत को और भी पुख्ता तरीके से पेश किया है पाकिस्तान में हालिया दिनों में पश्चिमी मुल्कों के सैन्य साजो-सामान पर हुए हमलों ने।
वैसे भारत को हर हालात का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। इसी तरीके से मुल्क खुद को और नागरिकों को सुरक्षित रख सकता है।