सेबी की सात महीने पहले शुरू हुई स्टॉक लेंडिंग एंड बॉरोइंग (एसएलबी) स्कीम की नाकामयाबी पर किसी को कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए।
वजहों को समझने में किसी को ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं है। दरअसल, इसमें उधार लिए गए शेयरों को वापस लौटने के लिए सिर्फ सात दिनों का वक्त दिया गया था। इस वजह से लोगों के पास पैसा बनाने के लिए काफी कम वक्त था।
अगर उन सात दिनों में कीमतों में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ तो इसका सहारा लेने वाले लोगों के पैसे भी डूब जाते थे। अब इस समय सीमा को बढ़कर 30 दिनों का कर दिया गया। इससे यह कुछ हद तक तो आकर्षक हो चुका है, लेकिन फिर भी पंटरों के लिए यह ज्यादा अच्छा सौदा नहीं है।
दरअसल, वे इसके बजाए अब शेयर के वायदा बाजार में जा रहे हैं। यहां वे कभी भी अपने शेयर बेच सकते हैं। और तो और यहां वे 200 से ज्यादा कंपनियों के शेयरों में कारोबार कर सकते हैं, जिनमें से ज्यादातर मुनाफा ही देकर जाते हैं।
ऊपर से एसएलबी भी इन्हीं शेयरों पर लागू होती है। इसलिए वे एसएलबी की मुश्किल और काफी वक्त लगाने वाली प्रक्रिया से गुजरने के बजाए आसान रास्ता लेना ही बेहतर समझते हैं। ऊपर से मुश्किल और ज्यादा वक्त लेने वाला रास्ता उन्हें ज्यादा फायदा भी तो नहीं देता।
शेयरों को उधार लेने या देने को अमेरिका जैसे उन बड़े बाजारों में एक अहम चीज समझा जाता है, जहां सिंगल स्टॉक में वायदा कारोबार नहीं होता। भारत में वायदा कारोबार का सहारा लेना काफी आसान और सस्ता होता है। बस आपको हर रोज मार्क टू मार्केट मार्जिन चुकाने हैं और अगर आपकी मर्जी हो तो आप सौदे के खत्म होने के बाद बाजार से बाहर भी निकल सकते हैं।
अगर एसएलबी स्कीम में जान फूंकनी है, तो शेयरों को उधार पर लेने-देने के वक्त को काफी आगे बढ़ाने होगा। विकसित मुल्कों में तो शेयरों को छह महीनों तक के लिए उधार पर लिया जा सकता है। साथ ही, वहां इसका कारोबार भी काफी लचीला है, जिसमें आप जब चाहें शेयरों को वापस ले सकते हैं।
दूसरे शब्दों में वहां शेयर को उधार लेने या देने वाला चाहे तो शेयरों को बेचकर या पैसों को मांगकर, समय पूरा होने से पहले ही सौदा पूरा कर सकता है। अपने मुल्क में भी इस सौदे को और लचीला बनाने की जरूरत है। लोगों को 30 दिनों के भीतर अपने पैसे मांगने के लिए बातचीत का पूरा अधिकार देना चाहिए।
दूसरी तरफ, एसएलबी को कामयाब बनाने के लिए इसमें बीमा कंपनियों और म्युचुअल फंडों जैसी बड़ी खिलाड़ियों की हिस्सेदारी जरूरी है। आज मुल्क में सबसे ज्यादा शेयर जीवन बीमा निगम (एलआईसी) के पास हैं। जब तक एलआईसी शेयरों को उधार पर देने की शुरुआत नहीं करती, तब तक शेयरों की सप्लाई कम ही रहेगी।
इस वजह से पैसा चुकाने की इच्छा रखने वाले लोग शेयरों को उधार पर नहीं ले पाएंगे। शेयरों को उधार पर लेने की कीमत भी ठीक-ठाक होने चाहिए। ऐसा नहीं हुआ तो कारोबारियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान इसी स्कीम को होगा।
इस वक्त कोई भी संस्थान शेयरों को उधार पर नहीं ले सकता है। उन्हें इसके लिए इजाजत लेनी होगी। इससे भी इस स्कीम का भला नहीं होने वाला। सरकार को शेयरों को उधार पर लेने देने के लिए पैसों को भी आसान शर्तों पर लेन-देन की इजाजत देनी चाहिए। एक बेहतर एसएलबी ढांचा बाजार के लिए वरदान होता है।