वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम करने के लिए तिलहन का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। परंतु महज कुछ ही दिन के भीतर सरकार ने तिलहन और खाद्य तेल की स्टॉक होल्डिंग पर रोक बढ़ाने का निर्णय लिया है। यह निर्णय उस चेतावनी की भी अनदेखी करता है जो आर्थिक समीक्षा में दी गई थी और कहा गया था कि अनिवार्य वस्तुओं की कीमतों में उतार-चढ़ाव से जुड़े ऐसे कदम उत्पादकों को गलत संकेत देते हैं। यह कदम कई वजहों से गलत समय पर उठाया गया है। मिसाल के तौर पर गत अक्टूबर में जब भंडारण सीमा की घोषणा की गई थी तभी से अधिकांश खाद्य तेलों की कीमत या तो स्थिर है या उसमें गिरावट का रुख है। बहरहाल, छह राज्यों उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान और बिहार ने केंद्र सरकार के निर्देशों का पालन किया और उस स्टॉक को अधिसूचित किया जो कारोबारी रख सकते हैं। अब सरकार ने एक कदम आगे बढ़कर शेष राज्यों पर भी प्रतिबंध लागू करने की घोषणा कर दी है। इससे पहले भी एक गलत कदम उठाते हुए आयात शुल्क समाप्त करने और खाद्य तेलों पर लगने वाले कृषि उपकर को 20 फीसदी से कम करके केवल पांच से 7.5 फीसदी करने की घोषणा की गई थी।
इस मोड़ पर व्यापार प्रतिबंधों की जरूरत इसलिए भी नहीं है क्योंकि रबी सीजन में तिलहन का बंपर उत्पादन होने की आशा है। रबी सीजन में तिलहन की प्रमुख फसल सरसों का रकबा 23 फीसदी अधिक होने का अनुमान है और अनुकूल मौसम होने के कारण फसल भी बहुत अच्छी होने की आशा है। शुरुआती अनुमानों के मुताबिक सरसों का उत्पादन 1.1 करोड़ टन से अधिक होगा जो पिछले वर्ष के 85 लाख टन से काफी अधिक है। ऐसे में अगर भंडारण पर कोई रोक लगाई जाती है तो खरीदार बाजार से दूर हो जाएंगे। इसका फसल कटाई के बाद के मौसम में कीमतों पर बुरा असर होगा जो उत्पादकों के लिए अच्छा नहीं होगा।
अगर किसानों को कमजोर कीमत मिलती है तो किसान अगले खरीफ सत्र में भी तिलहन की खेती करने से हिचकिचाएंगे और विदेशों से खरीद पर निर्भरता बनी रहेगी। पशुओं के भोजन के लिए इस्तेमाल होने वाले जीन संवद्र्धित सोयामील के आयात का हालिया निर्णय भी स्थानीय उत्पादन को हतोत्साहित करने वाला है। हमारा देश पहले ही दुनिया का सबसे बड़ा खाद्य तेल आयातक बन चुका है। हम अपनी 2.5 करोड़ टन तेल की आवश्यकता पूरी करने के लिए सालाना करीब 1.4 से 1.5 करोड़ टन खाद्य तेल का आयात करते हैं।
व्यापक खपत वाली खाद्य तेल जैसी वस्तु के मामले में आयात पर इतनी अधिक निर्भरता उचित नहीं है क्योंकि ज्यादातर पाम ऑयल इंडोनेशिया और मलेशिया से आयात किया जाता है। आपूर्ति में किसी भी तरह की बाधा भारत के लिए दिक्कत पैदा कर सकती है। इतना ही नहीं, हमारे देश में अपनी जरूरत का तिलहन और खाद्य तेल उत्पादित करने की पर्याप्त क्षमता है। सन 1980 के दशक के मध्य में तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना की गई थी जिसने इस दिशा में राह दिखाई थी। इसके तहत बाजार में तब तक किसी तरह का हस्तक्षेप करने से इनकार किया गया जब तक कि कीमतें एक तय दायरे में रहें और उत्पादकों तथा ग्राहकों के बीच संतुलन कायम रखें। बहरहाल, सन 1990 के दशक में इस नीति को त्याग दिया गया और मिशन का अच्छा काम अधूरा रह गया। एक बार फिर ऐसी ही नीति की आवश्यकता है ताकि घरेलू उत्पादन बढ़ाकर तिलहन एवं खाद्य तेल क्षेत्र के सभी अंशधारकों को लाभान्वित किया जा सके। इसमें उत्पादक, प्रसंस्करण करने वाले और उपभोक्ता सभी शामिल हैं।
