पेटेंट कानून के मसले पर आर. ए. माशेलकर की अगुआई वाले टेक्निकल एक्सपर्ट ग्रुप (टीईजी) की संशोधित रिपोर्ट उस रिपोर्ट से कुछ खास अलग नहीं है जिसे ग्रुप को वर्ष 2007 में वापस लेना पड़ा था क्योंकि इसके कुछ हिस्से शब्दश: चोरी होने हो जाने पर विवाद पैदा हो गया था।
इस ग्रुप को सौंपे गए कुछ प्रमुख मुद्दों – सिर्फ नई केमिकल इकाई (एनसीई) तक पेटेंट सीमित करना और माइक्रो ऑर्गेनिज्म की पेटेंट क्षमता – पर नई रिपोर्ट में नया कुछ भी नहीं है, यानी यह पहले वाले रुख जैसा ही है। इसमें दवाओं केलिए अकेले एनसीई को पेटेंट प्रदान करने तक सीमित रखा गया है और जीवाणुओं को पेटेंट संरक्षण से अलग कर दिया गया है।
कहा गया है कि ये विश्व व्यापार संगठन के व्यापार संबंधी बौध्दिक संपदा अधिकार (ट्रिप्स) के प्रावधानों के अनुकूल नहीं हो सकता। इन निष्कर्षों से कई औद्योगिक वर्ग असंतुष्ट थे और इनमें तेजी से विकास कर रहा दवा उद्योग भी शामिल था। हालांकि ग्रुप के विचार के समर्थन में भी आवाजें उठी थीं।
सच्चाई यह है कि अगर हम माशेलकर रिपोर्ट के साथ जाते हैं तो अंतरराष्ट्रीय नियमों से कदमताल की खातिर 2005 में संशोधित नया पेटेंट कानून अब तक भी पूरी तरह ट्रिप्स के प्रावधानों की पुष्टि नहीं करता। क्योंकि यह ज्ञात चीजों के पेटेंट को रोकता है जब तक कि प्रभावोत्पादकता के स्तर पर यह अलग न हो।
दूसरी ओर जीवाणुओं के मामले में एक्सपर्ट ग्रुप ने वर्तमान कानून को ही आगे बढ़ा दिया है जो इसके पेटेंट की अनुमति देते हैं। हालांकि जनमत कहता है कि जीवाणुओं का पेटेंट नहीं हो सकता क्योंकि इन्हें प्रकृति ने सृजित किया है न कि ये मानव के आविष्कार हैं।
एनसीई के मामले में एक्सपर्ट ग्रुप ने जो तर्क दिए हैं, उनमें से एक के मुताबिक यह तकनीकी क्षेत्र के वैधानिक प्रतिरोध को बढ़ाएगा, जो कि ट्रिप्स का उल्लंघन करते हैं। दूसरा तर्क है नई व्यवस्था के मुताबिक उठाए गए कदम के अनुसार नए केमिकल स्ट्रक्चर सौगात की तरह हैं, लिहाजा वृध्दिशील आविष्कार को प्रोत्साहित करने की जरूरत है।
इसी समय हालांकि ग्रुप का कहना है कि भारतीय पेटेंट कार्यालय इसमें सक्षम है कि किस चीज का पेटेंट हो सकता है और मौजूदा तकनीक में सिर्फ हल्केबदलाव में किसकी भूमिका होती है, मान्य नहीं दिखता। क्योंकि इनमें मनमानेपन की काफी गुंजाइश है, ऐसे में कानूनी याचिकाओं की संख्या बढ़ सकती है।
जीवाणुओं के मामले में भी एक्सपर्ट ग्रुप का निष्कर्ष निर्विवाद नहीं है क्योंकि बायोटेक्नोलॉजी आधारित दवाओं के निर्माण में इसकी भूमिका महत्त्वपूर्ण हो गई है, ऐसे में इसका पेटेंट जीवाणुओं के इस्तेमाल को कुछ बहुराष्ट्रीय कंपनियों तक सीमित कर देगा।
भारत में वैज्ञानिकों की राय है कि जीवाणुओं का पेटेंट तब तक नहीं होना चाहिए जब तक कि मानव के हस्तक्षेप के जरिए इसमें बदलाव न लाया गया हो। जैव विविधता पर समझौते के तहत जीवाणुओं पर संप्रभु अधिकार उन्हीं देशों को दिया गया है जहां के ये हैं और इसका सम्मान किए जाने की जरूरत है।
एक्सपर्ट ग्रुप के नतीजों पर सहमति के अभाव को देखते हुए राष्ट्रीय हित में, ट्रिप्स के तहत मिले लचीलेपन और दोहा दौर की घोषणा के लिहाज से नई रिपोर्ट पर सही तरीके से बहस कराए जाने की दरकार है। इसके बाद ही वर्तमान स्वरूप में इसे स्वीकार कर लागू किया जाना चाहिए।
