संसद का शीतकालीन सत्र समापन की ओर अग्रसर है लेकिन हंगामा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। सत्र समापन के पांच दिन पहले एक असाधारण चेतावनी देते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अध्यक्ष के आसन के सामने एकत्रित होने वाले विपक्षी नेताओं से कहा, ‘सदस्यों याद रखिए! यदि लोकसभा की परिसंपत्तियों को कोई नुकसान होता है तो इसकी जवाबदेही आप सब की होगी। यदि सदन की परिसंपत्ति नष्ट होती है तो उसके लिए आप उत्तरदायी होंगे।’
इस सत्र को हालिया इतिहास में सरकार और विपक्ष के रिश्तों के मामले में सबसे बुरे सत्रों में से एक माना जाएगा। कारण? इसकी वजह है सदन में हंगामा और सत्ताधारी तथा विपक्षी दलों के बीच के रिश्तों की कड़वाहट। राज्य सभा के 12 सदस्य शायद सत्र के किसी हिस्से में शामिल न हो सकें क्योंकि उन्हें मॉनसून सत्र में अनुचित व्यवहार के कारण निलंबित कर दिया गया था। विपक्ष का मानना है कि सभापति एम वेंकैया नायडू का यह आचरण विधि विरुद्ध था।
लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी का कहना है, ‘ऐसा लग रहा है कि सरकार-विपक्ष गतिरोध की वजह राज्य सभा सदस्यों का निलंबन है। निष्पक्ष पर्यवेक्षकों के अनुसार यह काम नियमानुसार नहीं है। ऐसी धारणा है कि लोगों को नियमों से परे जाकर दंडित किया जा रहा है। जाहिर सी बात है कि इसे लेकर लोगों में गुस्सा होगा और वे उसे सदन में प्रकट करेंगे। विपक्ष में एक किस्म की लाचारी नजर आ रही है। निलंबित सांसद सदन के बाहर बैठे हैं। इन बातों से कड़वाहट और बढ़ेगी।’
राज्य सभा के मिजाज ने लोक सभा पर भी असर डाला। इसके परिणामस्वरूप प्रवर्तन निदेशालय तथा केंद्रीय जांच ब्यूरो के प्रमुखों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने संबंधी अहम अध्यादेशों को बिना किसी खास चर्चा के पारित किया गया। संसदीय प्रक्रियाएं अत्यधिक तनावपूर्ण माहौल में हुईं। हालांकि लोकसभा में खराब मिजाज के बावजूद कुछ कामकाज हुआ लेकिन राज्य सभा ज्यादातर वक्त स्थगित ही रही। 17 दिसंबर को यानी सत्र समापन के एक सप्ताह पहले उसे महज 19 मिनट की कार्यवाही के बाद स्थगित कर दिया गया।
लोक सभा और राज्य सभा के सचिवालयों में काम कर चुके पुराने लोगों का कहना है कि राज्य सभा के गतिरोध को दूर किया जा सकता था।
सचिवालय के एक पूर्व अधिकारी ने बताया, ‘लोक सभा अथवा राज्य सभा के पीठासीन अधिकारी को सांसदों को निलंबित करने का अधिकार नहीं है। इसके लिए सदन को प्रस्ताव पारित करना होता है। एक पीठासीन अधिकारी केवल उन लोगों का नामित कर सकता है जिन्हें निलंबित किया जाना चाहिए। इसका अर्थ यह है कि अगर सदन प्रस्ताव पारित करता है तो निलंबन समाप्त किया जा सकता है। यह प्रस्ताव सदन का कोई भी सदस्य रख सकता है। सरकार को इसे स्वीकार करना होगा और इस पर मतदान कराना होगा।’
गत सप्ताह राज्य सभा में विपक्ष के उप नेता आनंद शर्मा ने ठीक ऐसा ही किया: उन्होंने सांसदों का निलंबन रद्द करने की मांग करते हुए एक प्रस्ताव पेश किया लेकिन उसमें कोई कथ्य नहीं था। नायडू ने उस पर टिप्पणी की, ‘मुझे निलंबन रद्द करने का एक प्रस्ताव मिला है, लेकिन प्रस्ताव में कुछ लिखा नहीं है तो मैं क्या स्वीकार करूं?’ लिखित शब्दों के अभाव में चर्चा करने के लिए कुछ नहीं था। इस तरह राज्य सभा में गतिरोध जारी रहा और सरकार तथा विपक्ष असहमत बने रहे। सूचना प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने एक कार्यक्रम में कहा, ‘सदन में हंगामा आम हो गया और मेरे पास बहसों में शामिल होने के लिए वक्त ही वक्त था।’ राज्य सभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े से जब पूछा गया कि कामकाज कैसे सुचारु होगा तो उन्होंने कहा कि कोई माफी नहीं मांगी जाएगी।
हालांकि दिन के दौरान दोनों सदन कई बार स्थगित हुए लेकिन कुछ काम भी हुआ। लोक सभा में नौ नए विधेयक पेश किए गए। सदन में कोविड-19 और उसके नए प्रकार ओमीक्रोन पर चर्चा की गई। जलवायु परिवर्तन पर भी विमर्श हुआ। कुछ अहम मसलों को विशेष उल्लेख के रूप में उठाया गया।
शिवगंगा के सांसद कार्ति चिदंबरम ने कहा कि एक शैक्षणिक संस्थान शुरू करने के लिए ढेर सारी इजाजत और अनुपालन की जरूरत पड़ती है लेकिन कुछ ऑनलाइन शैक्षणिक फ्रैंचाइजी जिनका कारोबारी आकार कई छोटे राज्यों के शिक्षा बजट के बराबर है, उन्हें अपनी वेबसाइट के शिक्षकों के लिए किसी अनुपालन की आवश्यकता नहीं होती। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या इसका नियमन नहीं होना चाहिए? दोनों सदनों में सरोगेसी को लेकर तीखी बहस हुई। सोनिया गांधी ने लोक सभा में स्कूली परीक्षाओं में पूछे जाने वाले सवालों में पितृसत्तात्मकता का प्रश्न उठाया। दोनों सदनों में कृषि कानून समाप्त करने तथा ईडी और सीबीआई के प्रमुखों की सेवानिवृत्ति की आयु बढ़ाने को लेकर संक्षिप्त चर्चा हुई। राज्य सभा में भी कई कानून संशोधनों के साथ पारित किए गए लेकिन विपक्ष अनुपस्थित रहा।
सरकार इस बात को लेकर स्पष्ट है कि हालात चाहे जैसे भी हों शीतकालीन सत्र को संक्षिप्त नहीं किया जाएगा। विपक्ष भी स्पष्ट है कि जब तक सरकार निलंबन समाप्त नहीं करती, राज्य सभा काम नहीं करेगी।
पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च में लेजिस्लेटिव ऐंड सिविक एंगजमेंट के प्रमुख चक्षु रॉय कहते हैं, ‘लोकतंत्र में राजनीतिक दलों के बीच ईमानदार संवाद और समझौतों की भावना अहम है। इस सत्र की घटनाओं से संकेत निकलता है कि राजनीतिक दलों के बीच खाई बढ़ रही है। इसका अल्पावधि में विधायी प्रक्रिया पर बुरा असर होगा और दीर्घावधि में यह दो दलीय भावना को कमजोर करेगी जो हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है।’
जाहिर है 2021 का शीतकालीन सत्र निराश करने वाला रहा।
